कल्लूरी के किये की सजा भुगतेगी राज्य सरकार

झूठा मुकदमा गढ़ने पर नंदिनी सुंदर, संजय पराते सहित 6 को एक- एक लाख रुपया मुआवजा देने का आदेश NHRC द्वारा

रायपुर । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बस्तर पुलिस द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. नंदिनी सुंदर व अन्य पांच लोगों के खिलाफ बस्तर पुलिस द्वारा हत्या का झूठा मुक़दमा गढ़ने पर पीड़ितों को हुई मानसिक प्रताड़ना के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को एक-एक लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। अन्य लोगों में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की प्रो. अर्चना प्रसाद, माकपा के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव संजय पराते, बुद्धिजीवी-साहित्यकार विनीत तिवारी, भाकपा कार्यकर्ता मंजू कोवासी व इस दल में सहयोगी आदिवासी कार्यकर्ता मंगल राम कर्मा शामिल हैं। मानवाधिकार आयोग ने यह आदेश 13 मार्च को जारी किया था, जिसकी प्रति उनके अधिवक्ताओं के माध्यम से पीड़ितों को आज प्राप्त हुई है।
आयोग को बस्तर पुलिस द्वारा नागरिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किए जाने की कई शिकायतें मिली हैं, जिसमें एक मामला प्रो. नंदिनी सुंदर का भी था। गौरतलब है कि मई 2016 में यह 6 सदस्यीय दल बस्तर के हालत का अध्ययन करने के लिए क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों में गया था। यह दौरा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सलवा जुडूम को बंद करने के आदेश के बाद किया था। अपने दौरे में वे कांकेर, बीजापुर, दंतेवाड़ा व सुकमा के कई गांवों में गए थे, इनमें सुकमा जिले का नामा नामक एक गांव भी शामिल था। दौरे से वापस आने के बाद इस दल ने एक रिपोर्ट “दो पाटों के बीच पिसते आदिवासी और गैर-जिम्मेदार राज्य” भी लिखी थी, जिसे कई प्रतिष्ठित अख़बारों व पत्रिकाओं ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था।
अध्ययन दल के इस दौरे से नाराज तत्कालीन भाजपा सरकार ने इस दल के सदस्यों के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया था। बस्तर पुलिस ने राज्य सरकार के संरक्षण में नंदिनी सुंदर और अन्य लोगों के पुतले जलाये थे। भाजपा ने सभी सदस्यों को गिरफ्तार करने की मांग की थी, वहीं तत्कालीन आईजी एसआरपी कल्लूरी ने “अब की बार इन लोगों को पत्थर मार-मार कर सबक सिखाने” की बात कही थी।
नवम्बर 2016 में नामा गांव के ही नक्सल विरोधी कार्यकर्ता साम नाथ बघेल की हत्या के मामले में पुलिस ने इस अध्ययन दल के सभी सदस्यों के नाम एफआईआर में दर्ज कर लिए थे। सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप के बाद ही पीड़ितों को राहत मिली और उसके दिशा-निर्देश पर हुई जांच के बाद इन पीड़ितों के नाम प्रकरण से हटाने के लिए सरकार को बाध्य होना पड़ा। मानवाधिकार आयोग ने पूरे मामले में पीड़ितों को हुई मानसिक प्रताड़ना पर छत्तीसगढ़ सरकार को एक-एक लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश पारित किया है।
आयोग ने ऐसा ही आदेश नोटबंदी के दौरान हैदराबाद से प्राध्यापकों और छात्रों के एक अध्ययन दल को गिरफ्तार करने के मामले में भी पारित किया है। इस दल के सदस्यों को 7 माह जेल में रहना पड़ा था। मामला चलने के बाद न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया था।( जन चौक डॉट काम से साभार )

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