दंतेवाड़ा पुलिस अभी भी कर रही पत्रकार प्रभात सिंह को परेशान , पिछली सरकार ने भी भेजा था जेल
पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए चलाये गए आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई थी प्रभात ने,
पत्रकार प्रभात सिंह ने मुख्यमंत्री बघेल को लिखा पत्र, पुलिस ने किया खंडन
उत्तम कुमार
रायपुर । पत्रकार प्रभात सिंह के साथ उनके परिवार और सम्पत्तियों की जानकारी पुलिस जुटा रही है। इस पर प्रभात ने एक लंबी चिट्ठी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लिखा है। पुलिस ने प्रभात सिंह के आरोपों का खंडन किया, यह तर्क देते हुए कि इस तरह की पूछताछ माओवाद प्रभावित क्षेत्र में एक नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है।
25 जुलाई को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के 35 वर्षीय स्वतंत्र पत्रकार प्रभात सिंह ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पांच पृष्ट का पत्र लिखा है। दक्षिण कोसल को भेजे गये पत्र में उल्लेख है कि बारसूर पुलिस उनके मित्रों और शहर के निवासियों के माध्यम उनके तथा उनके परिवार पर नजर रखते हुये जानकारियां एकत्र कर रही है।
बारसूर, दंतेवाड़ा से लगभग 32 किलोमीटर दूर है, जो वामपंथी माओवाद से लंबे समय से प्रभावित क्षेत्र है। जबकि सिंह अपनी पत्नी और सात वर्षीय बेटी के साथ दंतेवाड़ा में किराए के मकान में रहते हैं, उनके माता-पिता और दो भाई बारसूर में रहते हैं। पत्र में, पत्रकार ने आरोप लगाया कि सरेंडर किए हुए नक्सलियों के साथ मिलकर सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी, बारसूर में उनके घर, दुकानों और कार्यालय की जानकारी जुटा रहे हैं। सिंह का परिवार कस्बे में दो दुकानों का मालिक है।
दूसरी ओर, सिंह 2012 से विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में बतौर पत्रकार के रूप में प्रकाशित होते रहे हैं। उन्होंने पिछले साल मार्च में अपना स्वयं का समाचार पोर्टल ‘खबरी चिडिय़ा’ शुरू किया है और दंतेवाड़ा में कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक आइटम और फर्नीचर बेचने का एक अलग व्यवसाय भी करते हैं।
सिंह को पहली बार पुलिस द्वारा कथित रूप से नजर रखने और जानकारी इकट्ठे करने के संबंध में एक सप्ताह पहले पता चला। उनका मानना है कि यह पुलिसिया कृत्य क्षेत्र में माओवादी विद्रोह से निपटने में पुलिस की भूमिका पर उनकी हालिया रिपोर्टों से उपजा है।
पत्रकार प्रभात कहते हैं कि 22 से 24 जुलाई के बीच, मुझे बारसूर में अपने दोस्तों और स्थानीय लोगों से कई संदेश और कॉल मिले। उन सभी ने मुझे बताया कि पुलिस मेरे सहित परिवार के बारे में सवाल पूछ रही थी, उन्होंने दक्षिण कोसल को बताया कि मुझे यह भी बताया गया कि वे (पुलिस) हमारे घर और दुकानों पर नजऱ रखने के लिए घूम रहे थे। हां, समय और उचित स्थान पर हम इसकी जानकारी मुहैया करवा सकते हैं।
पुलिस ने पूछताछ में कई पहलुओं को छुआ है जिसके बारे में सिंह ने अपने पत्र में लिखा है कि उनके परिवार के सदस्यों की जानकारी, उनके व्यवसाय, उनकी आय के स्रोत, बैंक खातों का विवरण और परिवार के पास चल और अचल संपत्ति का विवरण शामिल है। उनकी बेटी के बारे में भी सवाल पूछे गए हैं। वह किस स्कूल में दाखिला ली है इत्यादि इत्यादि…
सिंह का इस पत्र को लिखे जाने का मकसद यह खुलासा करना है कि जो पुलिस मांग रही है उसके पास मौजूद हर वस्तुओं और कब्जे का विस्तृत ब्यौरा है, जो उनके निवास और वाणिज्यिक उद्यमों के विवरणों से लेकर उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक बैंक खातों तक, उनके रसोई घर के बर्तनों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लेकर घर और उनकी दुकानों की जानकारी पत्र में बताया गया है।
लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री को ही पत्र क्यों लिखा?
सिंह का तर्क है कि मौजूदा सरकार पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने से पहले हमारे जैसे पत्रकारों को सुरक्षा देने के लिए यह सब जानकारी जुटा रही है? यदि ऐसा है तो यह जानकारी सीधे मैं ही आपको प्रेषित कर देता हूं और यदि सुरक्षा की दृष्टि से मेरे बारसूर स्थित मकान, दुकान और कार्यालय में पुलिस की ड्यूटी लगाई गई है तो उनकी सूची मुझे उपलब्ध कराई जाए कि कौन कौन कब कब ड्यूटी करेंगे। उन्होंने लिखा है कि मुझे पुलिस जवानों द्वारा पूर्ण वर्दी में रहकर हमारे परिवार को सुरक्षा दिए जाने पर कोई भी आपत्ति नहीं होगी।
आवधिक खतरे का आकलन, पुलिस का कहना है
हालांकि, दंतेवाड़ा पुलिस ने सिंह पर नजर रखे जाने और जानकारियों के संबंध में आरोपों का खंडन किया है। दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव ने दक्षिण कोसल को बताया कि इस तरह की पूछताछ नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है।
उनका कहना था कि ऐसा कुछ भी नहीं है यदि है तो उन्हें (प्रभात) पुख्ता जानाकारी बतानी चाहिये कि किसने किस रूप में उनसे जानकारी मांगी है, और सामान्य तौर पर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था के लिये राजनेता, व्यापारी और पत्रकार के संबंध में जानकारियां रखी ही जाती है।
पल्लव का कहना है कि ऐसी कार्यवाहियों से किसी को डरना क्यों चाहिए और डरता वहीं है तो गलत हो। कोई बता दे कि हमने ऑपरेशन के नाम पर किसी के घर में जबरन घूसा है या छानबिन किया है। पुलिस को अनुमति के फोन टैपिंग, बिना वारंट के किसी के घर में घुसना या सडक़ के बीच में किसी को परेशान करना जैसी गतिविधियों से परहेज है।
पल्लव ने कहा दूसरों के माध्यम से एक व्यक्ति के बारे में पूछताछ करना असंभव है उतनी संख्या में हमारे पास बल नहीं है कि हम 10 दंतेवाड़ा और 10 बारसूर में सुरक्षा बलों को प्रभात से पूछताछ के लिये लगाये।
पल्लव ने आगे कहा कि जितने भी सामाजिक संगठन हैं ये सभी नक्सलियों के समर्थन में उठ खड़े होते हैं किसी ने भी अभी हमने जो आत्मससमर्थन की सूची जारी की है (जो 266 पृष्ट के हैं को समर्पण करवाने) में सहयोग नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि भ्रम का कोई इलाज नहीं है।
रायपुर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष और जाने माने पत्रकार प्रफुल्ल ठाकुर ने कहा है कि प्रभात सिंह पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। कुछ तो ऐसी कड़ी है जो प्रभात को पांच पेज का एक पत्र मुख्यमंत्री को लिखना पड़ा है। बस्तर जैसे माओवाद प्रभावित क्षेत्र में प्रभात जैसे गिने चुने पत्रकार पत्रकारिता का काम करते हैं आप उनके काम में अड़चन उत्पन्न कर यह चाहते हो कि वे नक्सलियों का आत्मसमर्पण करवा दे तो यह बेवकूफीभरा बात है। एक तो उन्हें पत्रकारिता के एवज में उचित मेहनताना नहीं मिलती है और उन जैसे पत्रकारों की सम्पतियों के संबंध में जानकारी लेना निश्चित रूप से बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों से खबरों को बाहर लाने से रोकने की कार्यवाही है। इसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है।
पत्रकार प्रभात का कहना है कि यदि पुलिस ने खुद की सुरक्षा के लिए उनसे जानकारी चाही है, तो उसने तर्क दिया कि वे सीधे उससे संपर्क क्यों नहीं करते? खैर शक और भ्रम की बुनियाद पर पुलिस भी काम करती है और पत्रकार भी!
डेटा एकत्र करने के इस गुप्त तरीके का मतलब क्या है? उसने पूछा। इसके अलावा, पूछताछ और सतर्कता बारसूर में की गई थी जहाँ उसके माता-पिता और भाई रहते हैं, दंतेवाड़ा में नहीं जहाँ वह रहता है, उन्होंने बताया। उसका क्या कारण है? उसने पूछा।
झूठे केस का डर
सिंह के अनुसार, पुलिस की गतिविधि उनकी हाल की कुछ रिपोर्टों का परिणाम हो सकती है। उन्होंने अपने इलाके में उग्रवाद से निपटने में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया है।
उदाहरण के लिए, पिछले साल सितंबर में एक रिपोर्ट में, सिंह ने दंतेवाड़ा पुलिस पर एक मुठभेड़ को नाकाम करने और दो आदिवासी ग्रामीणों को मारने का आरोप लगाया। अभी हाल ही में, इस साल 8 जून को, उनके पोर्टल ने सुकमा में एक सहायक उप-निरीक्षक और पुलिस के हत्थे चढ़े नक्सलियों को कारतूस की आपूर्ति की सूचना दी। 16 जुलाई को, उन्होंने स्थानीय व्यवसायियों, राजनेताओं और पुलिसकर्मियों के एक नेटवर्क के बारे में लिखा जो हथियारों, गोला-बारूद और संचार उपकरणों की आपूर्ति के साथ माओवादियों की मदद कर रहा था।
उसने कहा कि पुलिस की गतिविधियां संदिग्ध हैं, सिंह ने दोहराया कि उनके पास पारदर्शी तरीके से खुद के बारे में कोई जानकारी प्रस्तुत करने का कोई मुद्दा नहीं है। लेकिन कुछ तो हो रहा है कि मुझे कहीं किसी झूठे मामले में फंसाया जा सके?
प्रभात सिंह कहते हैं कि उनकी आशंका निराधार नहीं है, सिंह का पुलिस के साथ पुराना इतिहास रहा है। मार्च 2016 में, उन्हें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को व्हाट्सएप ग्रुप पर एक अश्लील संदेश के साथ कथित रूप से बदनाम करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा तीन अन्य मामले, जो पहले की तारीखों में दर्ज किए गए थे, उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था। परिणामस्वरूप, उन्हें जमानत प्राप्त करने से पहले लगभग तीन महीने जेल में बिताने पड़े। इनमें से एक मामला बारसूर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था, वही स्टेशन जो अब उसके बारे में पूछताछ कर रहा है,
प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर कहते हैं कि अगर पुलिस की गतिविधियों से प्रभात सिंह असहज महसूस करते हैं, तो उन्हें शिकायत उठाने का भी अधिकार है। आपको पत्रकारों के कामों से एतराज क्यों कर हैं। एक ओर आप दो सालों से पत्रकार सुरक्षा कानून को दबाये बैठे हैं और दूसरी ओर बस्तर से वहां की पुलिस और सरकार की नीतियों पर सवाल कर रहे पत्रकारों का उत्पीडऩ बर्दाश्त से बाहर है।
प्रफुल्ल कहते हैं कि बस्तर जैसे कॉन्फ्लिक्ट जोन में पत्रकारों को स्वतंत्ररूप से काम करना कठिन होता जा रहा है। हाल ही में माओवादियों के निशाने पर पत्रकार मंगल कुंजाम है जिसकी जानकारी पुलिस ने दी है और इसके बावजूद मंगल की सुरक्षा का कोई इंतजाम अब तक नहीं हुआ है। पत्रकारों को स्वतंत्ररूप से काम करने देने के लिये हालात उत्पन्न करने की जरूरत है। जिस तरह बस्तर क्षेत्र में सरकार और पुलिस अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रही है उसी तरह पत्रकार वहां से खबरों को राज्य सहित पूरे देश और दुनिया के लिये सूचनाएं पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उनके कामों में व्यवधान उत्पन्न करना चिंताजनक है।
उत्तम कुमार प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं व “दक्षिण कोसल” पत्रिका व पोर्टल के सम्पादक हैं