अजय को पत्र : उदय Che
मै पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम नही करुँगा – अजय देवगन
आज सुबह ये खबर पढ़कर बड़ा ही अजीब महसूस हुआ की क्या मैं उस अभिनेता का बयान पढ़ रहा हूँ जिसने कभी अपरहण, गंगाजल, आक्रोश, हल्ला बोल, सत्याग्रह जैसी सोशल फिल्में की और “दा लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह” में भगत सिंह का रोल किया था। उस रोल में आपने जान डाल दी थी। आपके मुँह से निकलने वाले वो प्रत्येक शब्द ऐसे लग रहे थे जैसे भगत सिंह ही बोल रहा हो।
लेकिन क्या ये आपका दूसरा रूप है। इसलिए मैं आपको एक पत्र लिखना चाहता हूँ।
प्रिय अजय देवगन,
मैं हरियाणा से हूँ और आपका वो फैन हूँ। जो एक रात में 4 फ़िल्म आपकी देखता था और फिर सुबह स्कुल में साथियों को पूरी फ़िल्म सुनाता था।
मुझे अच्छी तरह याद है की 1994-95 के दौर में हरियाणा के किसी भी गाँव में कलर TV नही होता था ब्लैक एंड व्हाइट TV भी गाँव में ढुंढने से मिलता था। उस समय रामायण देखने के लिए पूरा गाँव उस एक घर में इकठ्ठा हो जाता था जिसके घर में टीवी होता था। फ़िल्म टीवी पर आती ही नही थी। जो सायद बाद में शुरू हुई है शुक्र शनि और रविवार को।
उस दौर में पुरे गांव में एक और प्रचलन था की जिस भी परिवार में ख़ुशी का मौका हो जैसे शादी होना, बच्चे का होना या और कोई ख़ुशी तो उस समय वो परिवार शहर से कलर टीवी और VCR किराये पर लेकर आता था और साथ में लेकर आता था 5 फ़िल्म जो पूरी रात उस ख़ुशी के मौके पर चलनी होती थी। कलर टीवी को गली में या खुले मैदान में रख दिया जाता था। फ़िल्म देखने के लिए लगभग पूरा गाँव मतलब हजारो लोग आते थे। गाँव में धर्मेन्द्र, अमिताब, विनोद खन्ना, मिथुन उस समय के सुपर स्टार हीरो थे। राजेश खन्ना, संजीव कुमार इनको कोई नही देखता था क्योकि गाँव के लोगो को तो मार धाड़ वाली फिल्म पसन्द थी।
मिथुन एक ऐसा हीरो था जिसकी फ़िल्म मजदूर बड़े चाव से देखते थे। उसको अपना हीरो मानते थे। क्योकि वो अपनी फिल्मो में मजदूर का दुख दिखाता था और उसकी लड़ाई लड़ता नजर आता था।
अब आपको विस्वाश नही होगा की अगले दिन स्कूल लगता था तो स्कुल में छात्र नही कोई धर्मेन्द्र कोई मिथुन कोई राजकुमार जिसको जो पसन्द था वो बनकर आते वैसा ही दिखने की कोशिश करते वैसा ही बोलने की कोशिस करते। जो बच्चा किसी कारण रात के 5 फ़िल्म वाले सिनेमा को नही देख सका वो ऐसे उदास रहता जैसे उसको बहुत बड़ा नुकशान हो गया हो।
लेकिन एक सच्चाई ये भी होती की सभी हीरो बनते थे गुंडा कोई नही बनता था। लेकिन सभी ने अध्यापको के नाम जरूर गुंडों के नाम पर निकाले हुए थे।
उसके बाद के हीरो में दौर आता है जो इस कल्चर का लास्ट दौर था उनमे शनि देओल, अजय देवगन, आमिर खान, अक्षय कुमार , सलमान खान
जब हम 10-10 रुपया इकठ्ठा करके VCR लाते थे तो हम 5 फ़िल्म में से आपकी 3 या 4 फ़िल्म लाते थे।
मेरा बड़ा भाई शारुख खान का फैन था मैं और मेरे चाचा का लड़का आपके फैन थे। हमारा दोनों भाइयो में इस बात पर हर रोज झगड़ा होता था की अजय सुपर हीरो है वो लड़ता है गुंडों के खिलाफ और शारुख खान नही लड़ता इसलिए वो कमजोर हीरो है।
समय के साथ साथ वो VCR वाली कल्चर खत्म हो गयी। लगभग घरो में कलर टीवी आ गए केबल आ गयी अब सप्ताह में 3 फ़िल्म नही अलग अलग चैनल पर पुरे पुरे दिन फिल्म चलने लग गयी। हम भी स्कुल से collage में आ गए और कालेज में वामपंथियो से जुड़ाव हो गया। मेरा भाई फैक्टरी में काम करने लग गया। लेकिन मेरा फ़िल्म देखने का शौक कम नही हुआ इतना जरूर हुआ की अब मार धाड़ वाली फ़िल्म कम और आर्ट फ़िल्म ज्यादा देखने लग गया। जिसमे नसरुदीन, ओमपुरी, स्मिता पाटिल, शबाना अच्छे लगने लगे। लेकिन आप और आमिर खान अब भी अपनी जगह बनाये हुए थे। क्योकि आप दोनों ने कई फिल्म जातीय और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ बनाई थी। अब भी शारुख मेरा हीरो नही बन सका क्योकि वो ऐसी फिल्मो से दूर ही था।
आपकी वो भगत सिंह पर बनी फ़िल्म “दा लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह” उस समय की भगत सिंह पर बनी सर्वश्रेठ फ़िल्म थी क्योकि वो पहली फ़िल्म थी जिसमे भगत सिंह के सच्चाई के पहलु दिखाए गए। उस फ़िल्म को देख कर लगा जैसे भगत सिंह सच में हमारे सामने है। आपने कितनी आसानी से भगत सिंह के विचारो को जनता के सामने पेश किया की “मानव का मानव शोषण न करे”, “धर्म और जात के नाम पर साम्प्रदायिक झगड़े बन्द हो”,”मेहनतकश का राज आये”, सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक आजादी सबको मिले। हम फांसीवाद और साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए भगतसिंह के प्रोग्राम में आपकी ये फ़िल्म दिखाते थे।
इधर पुरे देश में भगत सिंह की विरोधी फांसीवादी विचार धारा, जिसका भगत सिंह ने मरते समय तक विरोध किया। भारत में नंगा नाच कर रही है। धर्म और जात के नाम सामूहिक कत्लेआम, एक विशेष धर्म के मस्जिद, चर्च पर हमले, धर्म के नाम पर दंगे और दंगो में होता महिलाओ का बलात्कार। फासीवादी यहां तक नही रुके उन्होंने मारना शुरू कर दिया देश के बुद्धिजीवीयो को, लेखको और प्रगतिशील लोगो को और इसका श्रेय जाता है भारत की फांसीवादी हिंदुत्ववादी संगठनों को जो फासीवादी हिटलर को अपना आदर्श मानती है। लेकिन मेरे सुपर हीरो चुप है। उनको कोई फर्क नही पड़ रहा है। वो कभी एक बयान भी नही देते इन अमानवीय कुकर्मो के खिलाफ। उनको इस बात से भी कोई फर्क नही पड़ रहा की पिछले 20 साल में 2 लाख किसान आत्महत्या कर गए। एक आदिवासी एम्बुलेंस न मिलने के कारण 10किलोमीटर तक अपनी पत्नी की लाश को कंधे पर लेकर जाता है। आपको शायद कोई फर्क नही पड़ता।
आप पाकिस्तान के कलाकारों का विरोध सिर्फ इसीलिए कर रहे हो ना की उनके देश के कुछ धार्मिक आंतकवादी संगठनों के लड़कों ने भारत में आंतकवादी कार्रवाइयां की लेकिन क्या उन आंतकवादी कार्रवाइयों के लिए ये कलाकार जिम्मेदार है। अगर ये कलाकार जिम्मेदार है तो फिर क्या हमारे देश की घटनाओं के लिए आपको जिम्मेदार क्यों न ठहरायाजाये।
- आपकी परिवारिक बैक ग्राउंड पंजाब से है। एक समय पंजाब में आतंकवाद चर्म पर था हर रोज सेना पर हमले हो रहे थे। क्या आपका किसी ने बायकाट किया। क्या बायकाट करना चाहिए था।
- बॉलीवुड का प्रत्येक अभिनेता-अभिनेत्री की दिली ख्वाइस होती है कि वो हॉलीवुड में काम करे। बहुत से अभिनेताओं व् अभिनेत्रियों ने काम किया भी है। क्या कभी हॉलीवुड ने आप पर बैन किया।
- भारत में एक सेंसर बोर्ड है जो फिल्मों को प्रमाण पत्र देता है। लेकिन यहाँ तो धार्मिक, जातिय, इलाकाई गुंडे प्रमाण पत्र देते है की कौन फिल्म रिलीज होगी, कौन नही होगी। क्या सेंसर बोर्ड को बंद कर देना चाहिए।
- यहाँ एक बलात्कारी, हत्यारा, गुंडा बाबा फिल्में बनासकता है। उसका कोई विरोध नही होता। क्यों
भारत और पाकिस्तान में जब भी आपसी तनाव होता है तो सबसे पहले कलाकारों की, खिलाड़ियों की ही बली क्यों चढ़ाई जाती है। अब सवाल ये है कि भारत में कौन कलाकार काम करेगा, कौंन खिलाडी खेलेगा, कौंन फिल्म रिलीज होगी या कौंन नही होगी इसका फैसला भारत का कानून करेगा या धार्मिक, जातीय लम्पट गुंडे।
मुझे बहुत ही ग्लानि महसूस हुई की मैंने ऐसे अभिनेता को अपना आदर्श माना जो ऐसे धार्मिक, जातीय, इलाकाई गुंडों का विरोध करने की बजाए। उनके शुर में शुर मिला रहा है। इनके हाथ व् कपड़े लाखो निर्दोष लोगो के खून से रंगे है। जो भगत सिंह की विचारधारा के खिलाफ काम करते है।
गर्व होता है मुझे उस शारुख खान पर जो आपकी तरह सामाजिक फ़िल्म तो नही करता लेकिन असली जिंदगी में उसने समय-समय पर फांसीवादी विचारधारा को और फांसीवादी धार्मिक गुंडों को करारा तमाचा मारा है व भगत सिंह के विचार के साथ खड़ा होकर उसको सच्ची श्रंधाजली दी है।
मुझे सच में तुमसे नफरत हो गयी।
Udey CHE
±918529669491
सही कहा भाई…..
उदय अच्छा जवाब है ऐसा ही जवाब मैं भी देना चाहता था लेकिन आप जैसी भाषा मुझे कम आती है। अजय का उस दिन का बयान पढ़कर मुझे भी यही लगा की ये वो कलाकार नहीं जिसने भगतसिंह का किरदार किया। सच में मुझे भी बहोत बुरा लगा की अजय की ऐसी मानसिकता है और ऐसी बुद्धि है की वो उन लोगो के कुचक्र को नहीं पहचान प् रहा जो इसे रच रहे हैं।