ऐसा रहा ‘कोरोना’ का कहर- एक मरीज़ की ज़ुबानी
अनिरुद्ध दुबे
7 जुलाई का दिन और दिनों की तरह बेहतरीन गुजरा। 7 की वो शाम भी सुनहरी थी। उसके बाद पूरी रात करवटें बदलते गुजरी। कारण अज्ञात था। 8 जुलाई को दिन में अपने काम में लगे रहा। रात को नींद नही होने से उंघना जरूर हो रहा था, पर सब ठीक-ठाक चल रहा था। शाम तक सब ठीक ही रहा। फिर 8 की रात भी नींद गायब थी। तब अहसास होने लगा कि भीतर ही भीतर कुछ ठीक नहीं चल रहा। 9 जुलाई का दिन बेहद थकावट भरा था, इसके बाद भी रोजमर्रा के काम निबटाते रहा। शाम तक कुछ खास महसूस नहीं हुआ। रात में जब वॉश रूम गया और पैरों में पानी डाला, बेहद ठंडा लगा तब समझ में आया अब तो बुखार ने अपनी चपेट में ले लिया है। 10 जुलाई को सीधे बिस्तर से नाता जुड़ चुका था। इधर, खबर आई कि ठीक बगल में निवास करने वाले बड़े भाई श्री अरुण दुबे की भी तबियत खराब चल रही है। उनके लक्षण मुझसे मिलते-जुलते ही सुनने में आए। 11 तारीख को खबर आई कि बड़े भाई, भाभी श्रीमती संध्या दुबे व ड्राइवर प्रकाश को कोरोना पॉजिटव रिपोर्ट आने के कारण एम्स ले जाया गया है। यह खबर लगने के बाद मुझे अहसास हो चुका था कि अब मेरी बारी है, इसलिए कि 10 तारीख से खांसी शुरु हो चुकी थी और महसूस हो रहा था कि छाती में कुछ फंसा हुआ सा है। इसके साथ ही मुंह का स्वाद जा चुका था, यानी खाना भी बंद। ताकत के लिए थोड़ी किशमिश खाकर व इलेक्ट्राल लेकर काम चलाते रहा। अब एक-एक दिन भारी पड़ने लगा था। जिस तरह के लक्षण सामने थे, पत्नी व बेटी चाहकर भी माथे पर हाथ लगाकर पूछ सकने की स्थिति में नहीं थे कि अब कैसा लग रहा है। दिमाग में पूरे समय अब कोरोना जो घुमने लगा था। शायद आप मेरी बातों पर यकीन ना करें लगातार खांसी और बेस्वाद मुंह वाली स्थिति के शरीर के भीतर से एक अजीब तरह की गंध को मैं स्पष्ट रूप से महसूस कर पा रहा था, जिसे लेकर मेरा यही अनुमान रहा कि यह उसी चीज की गंध है जो चाइना के वुहान शहर से होकर विश्व भ्रमण करते हुए मुझ तक चली आई है। उधर, बड़े भाई व्दारा दी गई जानकारी के आधार पर स्वास्थ्य विभाग की टीम 15 जुलाई को फोन से सूचना देकर घर आ गई। मेरे परिवार व आसपास रहने वाले रिश्तेदारों कुल 18 लोगों का टेस्ट हुआ। 17 की दोपहर खबर आई की सारे के सारे 18 कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। अस्पताल जाने का तैयारी करके रखें। 18 की रात मैं मेरी पत्नी व बेटी समेत 12 लोगों को एम्स ले जाकर दाखिल किया गया। बाकी 6 लोगों को 19 की सुबह माना हॉस्पिटल ले जाया गया।
18 की रात से लेकर 27 की रात तक एम्स में जो समय गुजरा वह हमेशा जेहन में रहेगा। हम 12 लोग एम्स के सी ब्लॉक के वार्ड वन- C1 में एडमिट थे। 18 की मेरी पूरी रात खांसते हुए गुजरी। जिस ब्लॉक में मुझे रखा गया था वहां पहले से बस्तर के कोयलीबेड़ा क्षेत्र में पदस्थ बीएसएफ के 4 जवान स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे थे। मेरी लगातार खांसी से उस रात चारों को मानसिक कष्ट झेलना पड़ा होगा। 19 की सुबह चारों जवानों से बात हुई तो उन्होंने बताया कि हम जब यहां आए ना उस समय बीमार महसूस कर रहे थे ना अब कर रहे हैं। आराम से खाना-पीना और सोना हो रहा है। इससे मैं समझ पाया कि कोरोना का हमला भी अलग-अलग तरीके से हो रहा है। किसी को वह छूकर निकल रहा है तो किसी के शरीर को भेदकर उसमें पूरी तरह समा चुका है। मेरी गिनती तो बाद वाली श्रेणी में ही होगी। 19 की सुबह एम्स की टीम युद्ध स्तर पर अपने काम में जुटी नजर आई। हम नये मरीजों का ब्लड टेस्ट लिया गया। ब्लड प्रेशर देखा गया। तापमान लिया गया। ईसीजी हुआ। साथ में यूरिन टेस्ट भी। इससे यह ज्ञात हुआ कि हर आने वाले कोरोना मरीज की बारीकी से स्टडी होती है। सारे टेस्ट के बाद मेरे पास सीधे डॉ. अजीत कुमार का मोबाइल कॉल आया। उन्होंने विस्तार से जानकारी ली। एम्स में ही पता चला कि डॉ. अजीत कुमार की हर केस पर बड़ी गहरी नज़र रहती है। भले ही वे सामने नज़र ना आएं। काफी स्टडी के बाद वे तय करते हैं कि किस मरीज को क्या दवा देना है। एम्स में कुछ मामलों में अनुशासन बड़ा सख्त है। आप को जिस ब्लॉक में भी रखा जाए उसके प्रवेश व्दार को आप छू भी नहीं सकते। प्रवेश व्दार के पास माइक की व्यवस्था है। अपनी बात माइक पर कह दीजिए, समाधान निकलना होगा तो निकल आएगा। ये एक अच्छी बात है कि कोरोना वार्ड के भीतर मोबाइल के इस्तेमाल पर कोई रोक-टोक नहीं है। इससे आप अपने घर-परिवार, ईष्ट-मित्रों से जुड़े रह पाते हैं। लेकिन कभी-कभी मोबाइल का इस्तेमाल कुछ दूसरी तरह से भी हो जाता है। मेरे ठीक बाजू वाले बेड में कोयलीबेड़ा के बीएसएफ के जो एक जवान थे उन्हें फिल्म देखने का बड़ा शौक। वे फूल साउंड में साउथ की एक्शन व मारधाड़ वाली मूवी देखा करते, जिससे मेरे आराम में खलल पड़ती रही। किस्मत अच्छी थी, दो दिन बाद मेरा बेड चेंज हो गया और मैं सामने वाले क्यूबिकल में चला गया, लेकिन वहां भी एक्शन व मारधाड़ की हल्की गूंज सुनाई दे ही जाती थी। एक वार्ड में 5 क्यूबिकल और चार रूम्स थे। एक क्यूबिकल में 6 बेड थे। रूम्स एम्स के कोविड प्रभावित कर्मचारियों के लिए आरक्षित थे। बहरहाल एम्स में सुबह और रात दोनों समय ब्लड प्रेशर, टेम्प्रेचर व ऑक्सीजन लेवल चेक होता था। दोनों टाइम बराबर दवाएं दी जाती थीं। सुबह-शाम चाय व नाश्ता, दो समय खाना, दो टाइम दूध मरीजों को रोज देने का नियम था। फल भी दिया जाता था। खाना सादा दिया जाता था ताकि मरीजों के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हो। घर से कोई खाना मंगाए तो मनाही नहीं थी लेकिन ब्लॉक तक पहुंचने में काफी वक्त लग जाता और उतना धैर्य रख पाना बेहद कठिन होता। सेनेटाइज़र की पूरे समय व्यवस्था रहती। जब मौका पड़े हाथ में लीजिए और मलते रहिए। मरीजों को रोज नया मास्क भी दिया जाता, ताकि स्वच्छता बनी रहे। मास्क की अनिवार्यता इस कदर तय करके रखी गई थी कि यदि आप सोए भी रहें तो वह आपके चेहरे पर चढ़ा नजर आना चाहिए। यह कड़ा अनुशासन मरीजों के हितों को ध्यान में रखते हुए रखा गया था।
हमारे वार्ड में रायपुर ग्रामीण के विधायक श्री सत्यनारायण शर्मा के पीएसओ रामबदन शुक्ला, बिल्डर राकेश लखवानी एवं भिलाई के राजेश सिन्हा का उपचार चल रहा था और ये तीनों वहां समाजसेवी की भूमिका निभाते नजर आए। बाहर से माइक पर कोई नाम पूकारा जाए या फिर चाय-नाश्ता, भोजन आए, साथी मरीजों तक जानकारी पहुंचाने में ये तीनों काफी अग्रणी थे। इससे यह साबित होता है कि चारों तरफ से बंद जगह पर भी आप अपने साथ अन्य लोगों का भी ख्याल रख सकते हैं। बस इसके लिए बड़ा दिल और हौसला चाहिए। वार्ड के भीतर एम्स का जो भी स्टाफ स्वास्थ्य परीक्षण करने व दवा देने के लिए आता सर से पॉव तक ढंकी रहने वाली पीपीई किट पहनकर आता। उनकी आंखों के सिवा कुछ नहीं दिखता था। आप केवल उनकी आवाज़ सुन सकते थे। वार्ड में दस-दस दिनों के अंतराल में ड्यूटी बदलती है। एम्स के एक बेहद जिम्मेदार स्टॉफ शांतनु (बदला हुआ नाम) ने जब वार्ड के लोगों को बताया कि उनके दस दिन पूरे हुए और अब वे क्वॉरंटीन पर जा रहे हैं मरीजगण यह सुनकर भावुक हो गए। शांतनु व उनके अन्य साथी लगातार मरीजों का ख्याल जो रख रहे थे, ऐसे में उनके प्रति मन में सम्मान उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था। वार्ड में सफाई व्यवस्था ठीक थी। पुरुष व महिलाओं के लिए अलग-अलग वॉश रूम थे। दोनों में इंडियन व वेस्टर्न दोनों तरह के टॉयलेट थे। पुरुषों के लिए बने इंडियन टॉयलेट में बल्ब नहीं जलता था। शिकायत के बाद भी वहां रौशनी नहीं हो पाई, हालॉकि वहां मिल रही बड़ी सुविधाओं के सामने यह एक छोटी सी चीज थी। भिलाई की पारुल अपनी दादी के साथ आकर एडमिट हुई। दादी की उम्र 70 से ऊपर रही होगी। एम्स क्या कोई भी अस्पताल हो कोरोना के वृद्ध मरीजों के लिए वक्त मुश्किल भरा होता है। कॉलेज की छात्रा पारुल जैसे-तैसे अपनी दादी को संभाल पा रही थी। विशेषकर किसी उम्रदराज व्यक्ति की बिस्तर से उठकर वॉश रूम तक जाने की जो यात्रा होती है उसका यहां पर वर्णन कर पाना कठिन है। मेरी अपनी सोच है कि यदि कोई मरीज 65 या उससे ऊपर का हो तो अस्पताल में उन्हें विशेष सहूलियत दी जानी चाहिए। यहां यह बताना ज़रूरी लग रहा है कि एम्स में सरकार व्दारा कोरोना मरीजों के इलाज की निशुल्क व्यवस्था है।
24 जुलाई को मेरा, पत्नी व बेटी का कोरोना टेस्ट हुआ। वहां व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए हमें रिपोर्ट नहीं बताई गई, लेकिन अन्य सूत्रों से पता चला कि तीनों की रिपोर्ट पॉजिटव है। अब हमारी चिंता बढ़ गई थी। फिर दूसरा टेस्ट 27 की सुबह हुआ। उसी शाम एम्स की एक जिम्मेदार मैडम खबर लेकर आईं कि दुबे फैमिली कौन है, उनका रिपोर्ट नेगेटिव आया है। हो सकता है आज छुट्टी मिल जाए। मैडम की जुबां से यह शुभ खबर सुनकर मेरे दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में उठ गए। थोड़ी देर में सही में खबर आ गई कि तैयारी कर लीजिए आप लोगों को घर निकलना है। रात 11.30 बजे हम तीनों और परिवार के अन्य तीन सदस्य यानी छह लोग घर वापसी के लिए बस में बैठ चुके थे। बस में चढ़ने से पहले एम्स की उस ‘सी’ बिल्डिंग को मैं जी भर कर निहारा, साथ ही वहां के कैम्पस को भी। जब भी एम्स के सामने से गुजरना होगा आयुष भवन और सी बिल्डिंग से जुड़ी स्मृतियां जरूर दिमाग में तैरेंगी। एम्स में जब तक रहा, 3 हस्तियों के नाम बराबर सुनने मिलते रहे- एम्स डायरेक्टर डॉ. नितिन एम. नागरकर, नोडल अफसर डॉ. अजय कुमार बेहरा एवं डॉ. अजीत कुमार। कोरोना के खिलाफ इस महायुद्ध में इन तीनों विभूतियों के मोर्चे पर डटे रहने की चर्चा निरंतर बनी हुई है। यह भी ज्ञात हुआ कि एम्स में नेपथ्य में शिवानंद उपाध्याय का भी व्यवस्था सम्भालने में बड़ा रोल है। एम्स केन्द्र सरकार की यूनिट है, अगर बात छत्तीसगढ़ की करें तो चीफ मेडिकल हेल्थ ऑफिसर डॉ. मीरा बघेल तथा राज्य कोरोना नियंत्रण कार्यक्रम प्रभारी डॉ.सुभाष पांडे जो इस महा अभियान में पूरी तत्परता के साथ बहुत से घटनाक्रम को फेस कर रहे हैं, उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जा रहा है।
भारत का एक आम नागरिक होने के नाते और कोरोना का हमला झेल चुके होने के कारण मेरा आप सबसे यही अनुरोध है कि जब तक यह कोविडरूपी तूफान नहीं थमता भीड़ में जाने से बचें। सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन करें। ज़रूरत ना हो तो यात्रा पर ना जाएं। सभा-समारोह में जानें से बचें। शादी हो या बर्थडे पार्टी बहुत सोच समझकर फैसला लें। सर्दी, बूखार, खांसी, मूंह का स्वाद नहीं होना, सुगंध या दुर्गंध का अहसास ना होना ऐसे किसी भी तरह के लक्षण हों तो डॉक्टर से संपर्क करने में देर ना लगाएं। आप की सूरक्षा आपके हाथों में है।
अनिरुद्ध दुबे रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं