इस तरक्की पर नाज़ कीजिये कि एक आज़ाद मुल्क के एक गांव तक इलेक्ट्रिसिटी पहुंचने में 74 साल लग जाते हैं

यूकेश चंद्राकर (भूमकाल समाचार ) – ‘पामेड़’ छत्तीसगढ़ का एक गांव है । छत्तीसगढ़ का एक ऐसा इलाका, जो है तो छत्तीसगढ़ का लेकिन निर्भर है तेलंगाना पर । यूं समझिए इसे, आपके घर का एक कमरा है कमरे में आपके परिवार के सदस्य हैं लेकिन अगर आप तक किसी को पहुंचना है या आपको वहां पहुंचना है तो पड़ोस के घर से होकर ही पहुंचना होगा । आप पड़ोस के घर में घुसेंगे, उसे घुसने का कारण बताएंगे फिर उसके दूसरे दरवाज़े से निकलकर आप अपने घर के कमरे में दाखिल होंगे । ऐसा नहीं है कि घर के अंदर के हॉल से वह कमरा लगा हुआ नहीं है या कमरे में दरवाज़ा नहीं है कि सीधे सीधे नहीं पहुंच सकते ! लेकिन नहीं पहुंच सकते, क्यों नहीं पहुंच सकते अब इस पर एक नज़र डालिये और समझने की कोशिश कीजिये ।
बहुत ज़्यादा पुरानी बात नहीं है लेकिन जो बीत गई वो बात गई, वो सड़क जंगलों के बीच ऐसे गायब हो गई है जैसे धीरे धीरे दीमकों ने एक पेड़ निगल लिया हो । पामेड़ तक पहुंचने के लिए एक सड़क थी जो पामेड़ होते हुए आंध्र (आज पृथक तेलंगाना) को छूती थी । आज भी तेलंगाना को ये सड़क छूती है लेकिन पहले की तरह ये अपने केंद्र से नहीं छूती । ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ साल पहले नक्सलियों ने इस सड़क को पूरे 112 जगहों से काट दिया था । इस सड़क के कट जाने के बाद से सड़क को बनाने की तरफ कोई प्रयास किसी ने नहीं किये लेकिन हां इस इलाके में पुलिस फोर्स के नक्सल विरोधी गतिविधियों में काबिले तारीफ तेज़ी ज़रूर आ गई । कई मुठभेड़ हुए, कई मारे गए, कई गिरफ्तारियां हुईं लेकिन इस पूरे इलाके की कई समस्याएं भी बढ़ती ही चली गईं ।


आज़ादी के हकदार होने की बात लगभग बेमानी जैसी है इस इलाके के बाशिंदों के लिए । आज़ादी की कीमत जिन्होंने 1947 तक चुकाई थी उसका सूद ये इलाका अपनी आज़ादी के लिए भर रहा है ! अगले महीने हम फिर से आज़ाद होंगे, जश्न मनाएंगे और हम सब एक दिन के लिए हिन्दू-मुस्लिम भाई भाई हो जाएंगे । इस बार जब हम 74 वीं दफे आज़ाद होने का जश्न मनाएंगे तब भी पामेड़ के इलाके में आज़ादी की रौशनी नहीं पहुंचेगी। पामेड़ में छत्तीसगढ़ का एक थाना है, छोटा सा अस्पताल है, पोटा केबिन हैं और यहां के बाशिंदे हैं । बीते साल पामेड़ को तेलंगाना से जोड़ने वाली सड़क का डामरीकरण कराया गया था इस साल यहां बिजली पहुंचाई गई है, पामेड़ रौशन होगा ।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बीजापुर में हुए पत्रकार वार्ता में बताया था कि पामेड़ में बिजली की आपूर्ति के लिए तेलंगाना सरकार से करार कर लिया गया है और आज कलेक्टर रितेश अग्रवाल ने खुद इस खबर को तस्वीरों के साथ शेयर किया कि पामेड़ में बिजली पहुंच गई है । बस्तर आईजी ने पामेड़ तक पहुंचने वाली सड़क का ज़िक्र करते हुए जानकारी साझा की थी कि बहुत जल्द इस सड़क का निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया जाएगा , सुरक्षा बलों की तैनाती के लिए नए कैम्प्स खोलने के लिए जगह भी चिन्हित कर लिए गए हैं । उन्होंने ज़िक्र किया था कि पुलिस के सामने अभी ग्रामीणों का विश्वास जीतना चुनौती है जिसमें वे सफल भी हो रहे हैं ।
“पामेड़ की गुहार” दशकों से चली आ रही थी , आज़ादी के बाद पहली दफे पहुंची रौशनी से इस इलाके के बाशिंदों की ज़िंदगी पर छाया गुलामी का अंधेरा छंटने की उम्मीद नज़र आ रही है । पामेड़ इकलौता ऐसा गांव नहीं है जो आज़ादी के बावजूद अंधेरे में जी रहा था, पामेड़ से लगे लगभग 2 दर्जन से अधिक गांव ऐसे हैं जहां रौशनी के नाम पर दिन के समय सूरज बादलों में न छिपे या अमावस की रात में टोरे के तेल के दीप न जलें ।
पामेड़ तक रौशनी पहुंचना वाकई हमारी अब तक की सरकारों की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मान ली जानी चाहिए । मुल्क जब आज़ादी के 74 वें साल से चंद रोज़ दूर है तब इस गांव में रौशनी पहुंच रही है । ये हमारी तरक्की है, इस तरक्की पर नाज़ कीजिये कि एक आज़ाद मुल्क के एक गांव तक इलेक्ट्रिसिटी पहुंचने में 74 साल लग जाते हैं । आप नाज़ कीजिये आप भारत में हैं ।

यूकेश चंद्राकर

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