किसानों की उधारी चुकाना क्या न्याय है ?
6 महीने से किसानों की उधारी बकाया, उसे भी दे रहे हैं किस्तों में, और योजना का नाम राजीव गांधी किसान न्याय योजना !!
शशांक शर्मा
रायपुर । कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता ने मांग की है कि केन्द्र सरकार छत्तीसगढ़ की तर्ज पर किसान न्याय योजना लागू कर गरीबों को नकद राशि देने की व्यवस्था करे। दरअसल छत्तीसगढ़ में जिस ढंग से राजीव गांधी किसान न्याय योजना को प्रचारित किया गया उससे किसी को भी भ्रम हो सकता है, संभव है यही स्थिति पार्टी के सर्वोच्च नेताओं की भी हो। पूरे देश में ऐसा प्रचारित हो गया है या जानबूझकर किया गया है कि किसानों को प्रति एकड न्यूनतम आय छत्तीसगढ़ सरकार दे रही है। जबकि वास्तविकता यह है कि योजना किसानों की उधारी चुकाने की है।
“प्रदेश के मुख्यमंत्री की छवि प्रदेश का जनसंपर्क विभाग और कांग्रेस के कार्यकर्ता किसान पुत्र भोले-भाले और सहज-सरल जैसे प्रचारित और प्रसारित करने में करोड़ों खर्च करने में लगे हुए हैं, जबकि कांग्रेस ने किसानों के भरोसे सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ा छल किसानों के साथ ही किया, ढेड़ साल बाद भी हजारों किसान ऋण माफी के लिए घूम रहे वहीं धान की 25 सौ रुपये प्रति किंवटल खरीद की घोषणा पर अभी तक अमल नही हुआ । केंद्र और राज्य की राजनीति में किसानों के हक के 685 रुपये अब तक जो बकाया था उसी का पहला किश्त जारी कर कांग्रेस ने फिर से अपनी पुरानी अपूर्ण घोषणा का नया नाम राजीव गांधी किसान न्याय योजना रख देश भर में करोड़ो खर्च कर इसका प्रचार करने में लगा दिया – संपादक”
ज्ञात हो कि काग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में धान के समर्थन मुल्य ₹ 2500/- प्रति क्विंटल देने की अपने दम पर घोषणा की गई थी , पर बाद में किसानों के बकाया राशि ₹ 685/- प्रति क्विंटल को राजीव गांधी न्याय योजना नाम देकर दिया जा रहा है। पुरानी शराब को नई बोतल में भरकर फिर लोकतंत्र के बाज़ार में बेचा जा रहा है, इसका अर्थ यह निकाल लें कि अगले साल से किसानों को धान की उपज पर न्यूनतम समर्थन मुल्य ₹ 2500/- नहीं मिलेगा। राजीव गांधी न्याय योजना के तहत किसानों को प्रति एकड़ ₹ 10,000/- हर साल मिलेगा, ऐसा कोई वचन अभी तक हाथ में गंगाजल लेकर किया नहीं गया है।
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कहा है कि गरीबों के खाते में नकद पैसा देने का काम भूपेश बघेल सरकार छत्तीसगढ़ में कर रही है, तो क्या यह न्याय योजना संकट काल में किसानों को मदद है या किसानों की मेहनत का मुल्य है जिसे किसानों को छह माह पहले ही मिल जाना था लेकिन केन्द्र सरकार की आपत्ति के कारण किसानों को यह बकाया राशि देने दूसरा रास्ता अपनाया गया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि न्याय योजना के अंतर्गत ₹5700/- की राशि 19 लाख किसानों तक पहुंचेगी और 90% लाभ लघु-सीमांत किसानों तक पहुंचेगा और यह योजना प्रदेश में गरीबी को खत्म करने की दिशा में बड़ी पहल है। क्या वाकई राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ गरीबों को मिलेगा? प्रदेश में कुल 37.46 लाख किसान परिवार हैं जिनमें से 76% मतलब प्रदेश के 28 लाख से अधिक किसान सीमांत या लघु किसान हैं जिनके पास औसत रकबा लगभग एक एकड़ है। कुल 19 लाख किसानों को न्याय योजना से मिलने वाला लाभ अगर 90% सीमांत-लघु किसानों तक पहुंचेगा तो 17 लाख किसानों के औसत ₹ 10,000/- प्रति एकड़ रकबे के हिसाब से कुल ₹ 5700/- की योजना में से केवल ₹ 1700 करोड़ रूपए ही सीमांत व लघु किसानों के खातों में जाएंगे। फिर शेष ₹ 4000 करोड़ रूपए किसके खाते में जाएंगे?
वर्ष 2010-11 में हुई कृषि गणना के अनुसार 2 लाख मध्यम जोत वाले किसान हैं जिनके पास औसत 5.71 हेक्टेयर माने 15 एकड़ खेत हैं और व बड़े किसानों की संख्या 28 हजार हैं जिनके पास औसत 16.30 हेक्टेयर या 40 एकड खेतिहर जमीन है। मतलब यह कि 5700 करोड़ रूपए में से 4000 करोड़ रूपए इन दो लाख अट्ठाईस हजार किसानों की जेब में जाने वाला है। अब कोई जानकार यह बताए कि इस योजना से ग़रीबों को कितना लाभ मिलेगा और इससे ग़रीबी उन्मूलन कैसे होगा ?
एक और बात, अगर न्याय योजना मात्र समर्थन मुल्य की शेष राशि को किसानों को देने तक सीमित है तो प्रत्येक वर्ष यह योजना स्थायी नहीं रहेगी। अगर चुनावी घोषणापत्र के अनुसार प्रदेश सरकार 2500 रूपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदेगी तो केन्द्र द्वारा घोषित समर्थन मुल्य भी तो हर साल बढ़ेगा ऐसे में अंतर कम होगा। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने न्याय योजना का वादा किया था, उस दृष्टि से छत्तीसगढ़ की योजना अभी अधूरी है। वैसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि भूमिहीन मजदूरों को भी राजीव गांधी न्याय योजना से जोड़ेंगे। यह भी बड़ा कदम होगा, परन्तु शहरों में रहने वाले गरीबों के लिए भी कोई कदम उठाने की जरूरत होगी। किन्तु नकद सहायता की योजना तत्कालिक लाभ इसके ज़रूरतमंदों तक पहुंचा सकती है, लेकिन इससे न तो गरीबों का कल्याण है और न ही ग़रीबी उन्मूलन संभव है।
कांग्रेस पार्टी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पिछले सत्तर सालों में से अधिकांश समय केन्द्र व राज्यों में सत्तारूढ़ रहीं और प्रारंभ से ही उद्देश्य गरीबों का कल्याण और ग़रीबी उन्मूलन रहा है। सह भी सच्चाई है कि भारत में अभी भी एक चौथाई आबादी गरीबी के हाल में है। पिछले तीस सालों में वोटबैंक की राजनीति ने गरीबों को नकद देकर उनका भला करने की सरकारी प्रयासों ने हालात और बदतर कर दिए हैं। गरीबी दूर करने के लिए जनता को श्रम और शर्म से जोड़ने की आवश्यकता है, देश के नागरिकों का ऐसा स्वाभिमान और सामर्थ्य हो कि अपनी आजीविका चला सके। देश के उत्पादन में अपनी भूमिका निभाए। इसके लिए शासन-प्रशासन स्तर पर नई सोच और प्रेरणादायी नेतृत्व की आवश्यकता है।
शशांक शर्मा