कोरोनाकाल में फ़ेक समाचारों को ऐसे पहचानिए
स्कन्द शुक्ला
1) समाचार का स्रोत देखिए। बताने वाला कौन है, उसकी विषय-योग्यता क्या है। प्रस्तोता और विषय की जाँच से यह पहचान शुरू होती है।
2 ) ख़बरों के केवल शीर्षकों पर न जाइए। अनेक बार लोग ख़बर को चटपटा बनाने के लिए ऊटपटांग हेडलाइन गढ़ रहे हैं।
3 ) आॅफ़िशियल सह-स्रोत भी पढ़ें। एक जानकारी अनेक स्रोतों से होने पर स्पष्टतर होती है और सच-झूठ खुल जाता है।
4 ) कहीं ख़बर मज़ाक या व्यंग्य तो नहीं। अनेक बार हास-परिहास में भी बातें कह दी जा रही हैं।
5 ) आपके पूर्वाग्रह , आपके पूर्वविश्वास आपकी राय तय कर सकते हैं। आपकी राजनीतिक विचारधारा , आपकी सामाजिक स्थिति और आपके परिवार का प्रभाव भी आपपर पड़ता है।
6) विशेषज्ञों से प्रश्न भी करिए। विश्वसनीय स्रोतों से अापको सवाल करने चाहिए।
7) कुछ भी शेयर करने से पहले जानिए कि आप पैंडेमिक ही नहीं, इन्फोडेमिक से भी जूझ रहे हैं। जिम्मेदार नागरिक का कर्त्तव्य निभाइए ।
फ़ेक समाचार तीन प्रकार के हो सकते हैं : 1) पूर्णतः फ़ेक समाचार , जो एकदम कोरोनावायरस-अनजान लोगों को ठगने और गुमराह करने के लिए बनाये जाते हैं। इनके शिकार अवैज्ञानिक फंन्तासी-फ़िल्मी सोच वाले लोग होते हैं।
2) सत्य आँकड़ों और जानकारियों को आड़े-तिरछे और ग़लत ढंग से निष्कर्ष निकालकर परोसने वाले फ़ेक समाचार। इनके टारगेट पर पढ़े-लिए , किन्तु अवैज्ञानिक सोच वाले लोग होते हैं। ध्यान रहे : डिग्री पा जाना और साइंटिफिक टेम्पर का विकास कर पाना — दोनों एकदम अलग हैं। इस समय ढेरों सम्भ्रान्त लोग ज्ञानलिप्त फ़ेक समाचार पढ़कर उन्हें सच मान बैठे हैं।
3) यह भी हो सकता है कि समाचार प्रस्तुत करने वाला कुछ कहना चाह रहा हो और आप कुछ और समझ रहे हों। अगर आप डाॅक्टर या वैज्ञानिक नहीं हैं, तो ऐसा होना लाज़िमी है। जिन बातों को ये लोग सालों-साल पढ़ते-समझते हैं, उन्हें आप एक लेख या पोस्ट से कैसे समझ सकते हैं ? इसलिए बार-बार पढ़िए। अनेक स्थानों से पढ़िए। किन्तु विश्वसनीय स्रोतों से पढ़िए , सनसनीखेज स्रोतों से नहीं।
यह भी हो सकता है कि विज्ञान ही नयी जानकारी मिलने पर विषय को बेहतर समझ कर कुछ और राय देने लगे ? ध्यान रहे : इस समय दुनिया-भर की प्रयोगशालाएँ और अस्पताल शोधरत हैं और लगातार नयी जानकारियाँ पायी जा रही हैं। ऐसे में पुरानी जानकारी का परिष्करण, मण्डन और खण्डन , तीनों सम्भव हैं। विज्ञान का तरीका यही है : वह स्वयं को तार्किक ढंग से तोड़ता-फोड़ता आगे बढ़ता है।
इस कोरोनाकाल में जितने प्रयोग विषाणु पर चल रहे हैं, उतने हम-मानवों पर भी चल रहे हैं। हम-आप कैसे सोचते हैं , किस तरह की ख़बरों में बह जाते हैं और कैसे लोगों के कहे में आकर अपनी-अपनी राजनीतिक विचारधारा से चिपक जाते हैं।
स्वयं से प्रश्न करिए : पैंडेमिक की आँच में कहीं आपके मनोविज्ञान को पकाया तो नहीं जा रहा ? यदि हाँ, तो आप किसका भोजन बनने जा रहे हैं ?
— स्कन्द शुक्ला