क्या बाज़ार आधारित बन रही दुनिया की नाकामयाबी की गाथा कोरोना वायरस ?

नोआम चॉम्स्की

कोरोना वायरस की एक ख़ासियत यह होगी कि यह हमें सोचने पर मजबूर करे कि हम किस तरह की दुनिया में रहना चाहते हैं। कोरोना वायरस का संकट इस समय क्यों है? क्या यह बाज़ार आधारित बन रही दुनिया की नाकामयाबी की गाथा है?

91 साल के मशहूर अमेरिकी भाषाविद् और राजनीतिक विश्लेषक नोआम चॉम्स्की के ने आज के संकट पर अमेरिका के एरिजोना के DiEM25 टीवी से बातचीत की है। इसकी बातचीत का संक्षिप्त संपादित अंश।

नोआम चोम्स्की (Noam Chomsky) की पैदाइश साल 1928 की है। दस साल की उम्र में नोआम चोम्स्की ने अपना पहला निबंध स्पेनिश सिविल वॉर पर लिखा था। नोआम चोम्स्की ने दूसरे विश्व युद्ध से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ गठन पर, बर्लिन की दीवार गिरने से लेकर शीत युद्ध पर, वियतमान वार से लेकर तेल संकट पर यानी सब पर लिखा। 1938 से लेकर 2020 तक दुनिया में उन तमाम महत्वपूर्ण घटनाओं पर जिसने दुनिया का रुख बदल दिया। इस इतिहास को समेटना बहुत मुश्किल है। लेकिन इससे यह अंदाज़ लगाया जा सकता है कि नोआम चोम्स्की के चिंतन का परिदृश्य कितना बड़ा है।

नोआम चोम्स्की कहते हैं कि मैं भी इस समय सेल्फ आइसोलेशन में हूँ। मैं अपने बचपन में रेडियो पर हिटलर के भाषण सुना करता था। मुझे शब्द नहीं समझ में आते थे फिर भी उस मूड और डर को महसूस कर लेता था जो हिटलर के भाषणों में मौजूद था। ठीक इस तरह से मौजूदा दौर में डोनाल्ड ट्रंप के भाषण होते हैं। इनसे भी ठीक वही प्रतिध्वनि महसूस होती है। इसका मतलब यह नहीं डोनाल्ड ट्रंप फासिस्ट हैं। डोनाल्ड ट्रंप फासिस्ट विचारधारा में धंसे हुए शख्स नहीं है। लेकिन सामाजिक तौर पर विकृत इंसान हैं। समझिये एक तरह के सोसिओपैथ जिसे केवल अपनी फिक्र होती है। इस महत्वपूर्ण समय में यही डराने वाली बात है कि डोनाल्ड ट्रंप अगुवाई की भूमिका में है।

कोरोनो वायरस काफी गंभीर है, भयानक है। इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं। लेकिन आगे जाकर हम इससे बच निकलेंगे। न्यूक्लियर वार का बढ़ता खतरा, ग्लोबल वार्मिंग और जर्जर होता लोकतंत्र मानव इतिहास के यह तीन ऐसे बड़े खतरे हैं जिनसे निपटा नहीं गया तो यह हमें बर्बाद कर देंगे। ख़तरनाक यह नहीं है कि अमेरिका की बागडोर डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में है। ख़तरनाक यह है कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश की बागडोर डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में है। यह देश दूसरे देशों पर प्रतिबन्ध लगाता है, लोगों को मरवाता है लेकिन दुनिया का कोई लोकतंत्र इसका खुलकर विरोध नहीं करता। यूरोप ईरान पर लगे प्रतिबन्ध को सही नहीं मानता है, लेकिन अमेरिका की ही बात मानता है। यूरोप को डर है कि अगर वह अमेरिका का विरोध करेगा तो उसे इंटरनेशनल फाइनेंसियल सिस्टम से बाहर कर दिया जाएगा।

ईरान की आंतरिक परेशनियां है लेकिन इस पर कड़े प्रतिबन्ध लगाए गए हैं। ऐसे प्रतिबन्ध लगाए हैं कि वह कोरोनावायरस के दौर में बहुत अधिक दर्द सह रहा है। वह क्यूबा जो अपनी आजादी के बाद से लेकर अब तक जूझ रहा है। इस दौर में क्यूबा यूरोप की मदद कर रहा है। यह अचरज भरी बात है। इस दौर में क्यूबा जैसा देश यूरोप के देशों की मदद कर रहा है। लेकिन यूरोप के देश ग्रीस की मदद नहीं कर रहे हैं। पता नहीं इसे क्या कहा जाना चाहिए?

दुनिया के सारे देशों के राजनेता वायरस से लड़ने को भी युद्ध कह रहे हैं। दुनिया के नेताओं की तरफ से यह एक तरह का रहेटोरिक (Rhetoric) है, जिसे बचाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इसका महत्व है। इस वायरस से लड़ने के लिए उस तरह की मोबलाइजेशन की ज़रूरत है जो युद्धों के समय की जाती है। समाज तक पहुंचने के लिए ऐसे शब्दों की जरूरत पड़ती है।

भारत के बहुतेरे लोगों की जिंदगी ऐसी है जैसे रोज कुआं खोदकर रोज पानी पीने का काम किया जाता हो। अगर यह आइसोलेशन में जाएंगे तो भूख इन्हें मार देगी। तब आखिकरकार क्या होना चाहिए। एक सभ्य समाज में अमीर देशों को गरीब देशों की मदद करनी चाहिए। अगर दुनिया की परेशनियां ऐसी ही चलती रहीं तो आने वाले दशकों में दक्षिण एशिया में रहना मुश्किल हो जाएगा। इस गर्मी में राजस्थान का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया। आगे यह और अधिक बढ़ेगा। पानी खराब होता जा रही है। पीने लायक नहीं बचा है।

दक्षिण एशिया में दो न्यूक्लिअर पावर वाले देश हैं। यह दोनों हर वक्त लड़ते रहते हैं। मेरे कहने का मतलब है कि कोरोना वायरस की परेशानी बहुत खतरनाक है। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े संकटों का बहुत छोटा सा हिस्सा है। इन संकटों से हम ज्यादा दिनों तक बच नहीं सकते हैं। हो सकता है कि दुनिया की कई सबसे बड़ी परेशनियां हमारी जिंदगी में उस तरह से छेड़छाड़ महसूस न करवाए जितनी कोरोना वायरस की वजह से हम अपनी जिंदगी में छेड़छाड़ महसूस कर रहे हैं। लेकिन दुनिया की यह सबसे बड़ी परेशनियां हमारी जिंदगी को इस तरह से बदलकर रख देंगी कि इस दुनिया में खुद को बचाना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे दिन ज्यादा दूर नहीं है, ये आने वाले ही हैं।

कोरोना वायरस की एक ख़ासियत यह होगी कि यह हमें सोचने पर मजबूर करे कि हम किस तरह की दुनिया में रहना चाहते हैं। कोरोना वायरस का संकट इस समय क्यों है? क्या यह बाज़ार आधारित बन रही दुनिया की नाकामयाबी की गाथा है? जब हम इस संकट से उबरेंगे तो हमारे पास कई विकल्प होंगे कि क्या एक तानाशाही सरकार की स्थापना की जाए जिसके पास सारा कंट्रोल हो या एक ऐसे समाज की जो मानवीय मदद पर आधारित हो।

हिमांशु कुमार के फेसबुक वाल से

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