रवीश हीरो बनाये नही, खुद बन गए हैं
रवीश कुमार को लेकर जब कोई कहता है कि वे हीरो क्यों बना दिए गए, मैं कहता हूं कि वे हीरो बनाए नहीं गए, कम से कम टीवी मीडिया में वे अकेले ऐसे हैं जो दृढ़ता से जनता के साथ खड़े दिखते हैं, इसलिए महत्वपूर्ण हो गए हैं. जैसे विकल्पहीनता ने मोदी की किस्मत चमका दी है, कुछ वैसा संयोग रवीश के भी साथ है. सरकार जो छुपाना चाहती है, रवीश उसे दिखाते हैं, बाकी ज्यादातर पत्रकार गैरपेशेवराना रवैया अपनाते हुए सरकार का पीआर करते हैं.
जब लगभग पूरा मीडिया देश को दो खांचे में फिट करने में लगा है, रवीश छोटे छोटे समूहों की आवाजों को दर्ज करते हैं, यही लोकतंत्र में उनका योगदान है.
शाहीन बाग की औरतें हफ्तों से सड़क पर हैं, लेकिन वहां कोई एंकर नहीं गया, रवीश आज पहुंचे हैं और महिलाओं से बात कर रहे हैं.
शाहीन बाग की एक महिला ने कहा, ‘अमित शाह कौन होता है हमसे कागज मांगने वाला? वह अपना कागज दिखाए पहले कि वो कौन है?’
एक लड़की ने कहा, ‘सरकार हमसे डर गई है इसलिए मिस्ड कॉल वाला फार्मूला लेकर आई है.’
एक लड़की ने कहा, ‘ये सेकुलर देश है और ये सिर्फ कहने के लिए नहीं चलेगा. हिंदुस्तान एक है एक रहेगा. यहां हमें धार्मिक नेताओं की जरूरत नहीं है.’
नोएडा से आईं एक मोहतरमा ने कहा, ‘मैं मुसलमान नहीं हूं लेकिन मैं और मेरी बेटी यहां हैं. यह हिंदू मुसलमान का आंदोलन नहीं है, यह भारत के लिए है.’
एक नकाबपोश महिला ने कहा, ‘रवीश के बच्चों को कोई तकलीफ होगी तो किससे कहेंगे? हमें परेशानी है तो हम प्रधानमंत्री से ही तो कहेंगे, वे क्यों नहीं सुनते?’
अब शाहीन बाग में देश के कई हिस्सों की महिलाएं शामिल हो रही हैं. तमाम हिंदू और मुसलमान औरतों की अगुआई में यह एक अद्भुत आंदोलन है. इस आंदोलन की आत्मिक शक्ति ऐसी है कि सरकार को इसे कुचलने की हिमाकत करने की जगह जनता की बात सुननी चाहिए.
कृष्ण कान्त जी के फेसबुक वॉल से