हरियाणा-पंजाब की जमीन के नीचे खनिज नही पर मुआवजा करोड़ों में , पर छत्तीसगढ़ में अरबों-खरबों की जमीन बदले मुआवजा बस लाखों में – राजेश त्रिपाठी
राजेश त्रिपाठी जी जन चेतना सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता हैं और पिछले लंबे समय से रायगढ़ में जमीन की मुद्दे पर लड़ाई लड़ रहे हैं । इन दिनों वे वे अपने तमाम साथियों के साथ रायगढ़ के तमनार में अडानी से सम्बद्ध कंपनी महाजेंको को हजारों ग्रामीणों के विस्थापन की कीमत पर स्थापित करने के सरकारी प्रयास के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे हैं । महाजेंको को जमीन उपलब्ध कराने की जबरदस्ती कोशिश के तहत क्षेत्र के हजारों लोगों को वहां से 120 किलोमीटर दूर बसाने की योजना चल रही है । इसी पहल के तहत इसी माह की 27 तारीख को जनसुनवाई रखी गई है इस जनसुनवाई का 30,000 से ज्यादा ग्रामीण विरोध कर रहे हैं । मगर सरकार की पहल को देखते हुए लगता है कि वह पूरी तरह से कार्पोरेट के साथ है । इस जनसुनवाई के विरोध के तहत पिछले दिनों रायगढ़ में जन संगठनों और ग्रामीणों की बैठक हुई इस बैठक में राजेश त्रिपाठी ने जो कहा वह हम आपके सामने ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं ।
” सामान्य तौर पर एक एकड़ भूमि से लगभग 85 करोड़ का कोयला निकलता है,पर आपके हिस्से में 8 से 10 लाख रुपये उद्योपतियों के आगे नतमस्तक सरकारें देती है। इसके पीछे आप को विस्थापन(घर,जमीन,खेती बाड़ी और पुरखों के बसाए गाँव को छोड़ना पड़ता है),बेरोजगारी,व्यक्तिगत या सामाजिक पहचान खत्म होने के अलावा जो कुछ लोग जो विस्थापन के बाद आसपास के क्षेत्र में बच जाते है उन्हें धूल,धुंवा,जानलेवा बीमारी,दूषित हवा,जलवायु परिवर्तन का दंश,सड़क हादसों में अकाल मौत और पीने के लिए जहरीले पानी जैसी परिस्थितयों का सामना करना पड़ता है।।
हरियाणा पंजाब के किसानों को यही सरकारें और उद्योगपति एक एकड़ भूमि के बदले करीब 3 करोड़ रुपये मुआवजे में देते है। जबकि वहां जमीन के अंदर खनिज नही पाये जाते हैं।। परन्तु सँगठित समाजिक और पंचायती व्यवस्था और जागरूकता के कारण उन्हें हमसे कई गुना अधिक प्रतिफल मिलता है।। जबकि हम छत्तीस गढ़ के लोग अलग-अलग विचारों में बंटे,छोटे निजी स्वार्थों से घिरे, अशिक्षा,जागरूकता की कमी के कारण अरबों-खरबो मूल्य की खनिज सम्पदा से भरी रत्नगर्भा भूमि से दुत्कार कर खदेड़ दिए जाते है।।
यह विडम्बना नही तो और क्या है.?,कि हम लोगों में बहुत से लोग इससे पहले तमनार क्ष्रेत्र के कई गांवों का हमने दुःखद अर्थहीन विस्थापन देखा है।। एक बार उजाड़ कर दूसरी जगह बसाए गए हजारों लोगों को किस हाल में है यह देखने के बाद भी अपनी जल,जंगल,जमीन देने को तैयार है।। आपने देखा होगा कि उन विस्थापित लोगो का दर्द बांटने कभी कोई सरकारी नौकरशाह नहिबजाता है, न ही कभी कोई उद्योगपति उनसे सहानुभूति रखता है।। विकाश अगर देश का हो तो हम सहर्ष यह बलिदान देने को तैयार है, परन्तु चंद मुठ्ठी भर पूंजी पतियों और उद्योगपतियों के लाभ के लिए हम हजारों परिवारों का भविष्य और प्रकृति की बेहिसाब बर्बादी कैसे देख सकते हैं.”
*राजेश त्रिपाठी*