लियो तोल्स्तोय की जन्म-जयंती पर विशेष
अपनी मृत्यु के पहले तोल्स्तोय ने गांधी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था
कनक तिवारी
आज जन्म जयंती है काउंट लियो तोल्स्तोय की । गांधी 150 साल के होने जा रहे हैं उनमें एक गुरु ढूंढा जाए ।
नौजवान युवा गांधी एक साधारण एडवोकेट थे और दक्षिण अफ्रीका में बुनियादी इन्सानी हकों के लिए हिन्दोस्तानियों की जद्दोजहद की अगुवाई कर रहे थे। स्वाभाविक था कि दूर रूस के शिक्षक के साथ सम्पर्क स्थापित करें। उन्होंने टाॅल्स्टाॅय को विस्तार से 1 अक्टूबर 1909 को लंदन से पत्र भेजा। इसमें उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी नस्लवादी शासन में अपने हमवतनों की दूभर जिंदगी के बारे में तफ़सील से बताया। जोर देकर लिखा ‘‘मुश्किलें और मुसीबतें तो उठानी पड़ेंगी। हिन्दुस्तानियों को केवल क़िस्मत के आगे घुटने टेकने पर मजबूर नहीं कर सकतीं। ट्रान्सवाल (दक्षिण अफ्रीका) में लगभग पिछले तीन वर्षों से जो-कुछ चल रहा है उसके प्रति मैं आपका ध्यान आकर्षित करने की धृष्टता कर रहा हूं। उक्त उपनिवेष में ब्रिटिष भारतीयों की आबादी कोई 13,000 है। ये भारतीय विगत कई वर्षों से अनेक कानूनी निर्योग्यताओं से त्रस्त रहे हैं। उपनिवेश में रंग के, तथा कुछ बातों में एशियाइयों के विरुद्ध सख्त पूर्वाग्रह हैं। मुझे एक मित्र से भारत की वर्तमान अशान्ति के बारे में एक हिन्दू के नाम आपके लिखे गये पत्र की प्रतिलिपि मिली है। देखने में तो लगता है कि उसमें आपका मत ही प्रतिबिम्बित है। मेरे मित्र की इच्छा है कि वे अपने खर्च से उसकी 20,000 प्रतियां छपवाकर बंटवा दे और उसका अनुवाद भी करायें। आप उसे उपर्युक्त ढंग से प्रकाशित करने की अनुमति दे रहे हैं या नहीं तो मैं आभारी होऊंगा। मैं आपके निकट नितान्त अपरिचित हूं, फिर भी मैंने सत्य के हित को दृष्टिगत करके आपको यह पत्र लिखने की धृष्टता की है और उन समस्याओं के बारे में आपका मार्गदर्शन चाहा है जिन्हें हल करना आपने अपने जीवन का ध्येय माना है।‘‘ यह गांधी का तोल्स्तोय से एक अपरिचय परिचय था। {(अंग्रेजी से तोल्स्तोय और गांधी) डा. कालिदास नाग, प्रकाशक, पुस्तक भंडार, पटना, पृष्ठ 59-62)।
1 अक्टूबर 1909 को उन्होंने तोल्स्तोय के ‘लेटर टु ए हिन्दू‘ के प्रकाशन की अनुमति मांगी। पानी के जहाज ‘किल्डोनन कैसल‘ में गांधी ने तोल्स्तोय के ऐतिहासिक पत्र ‘लेटर टु ए हिन्दू‘ का अनुवाद भी किया था। गांधी कहते हैं कि ‘हिन्द स्वराज‘ को लिखने की प्रेरणा उन्हें मूलतः तोल्स्तोय के पत्र से मिली। तोल्स्तोय ने पत्र के प्रकाशन की अनुमति दे दी। तो गांधी ने ‘इंडियन ओपिनियन‘ के गुजराती और अंगरेजी संस्करणों में उस पत्र की 20 हजार प्रतियां दिसम्बर 1909 और जनवरी 1910 में छापीं। यह विरोधाभास भी है कि तारकनाथ दास ने भी तोल्स्तोय के पत्र को बोस्टन से निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘दि ट्वेन्टिएथ सेंचुरी‘ में उसके महत्व को नकारते प्रकाशित किया। वीरेन्द्रनाथ चटोपाध्याय ने भी अपने पत्र ‘वंदे मातरम्‘ में तोल्स्तोय की आलोचना की। उसे गांधी के दक्षिण भारतीय विरोधियों की मदद से डरबन से निकलने वाले साप्ताहिक पत्र ‘साउथ अफ्रीकन क्राॅनिकल‘ में भी प्रकाशित किया गया।
तोल्स्तोय ने भी संभवतः ऐसे किसी युवक, विचारक तथा पब्ल्कि एक्टिविस्ट की दक्षिण अफ्रीका की गतिविधियों को लेकर परिकल्पना नहीं की होगी। गांधी का पत्र मिलते ही तोल्स्तोय ने 7 अक्टूबर 1909 को अपना जवाबी खत भेजा। उन्होंने लिखा ‘‘मुझे अभी-अभी आपका अत्यन्त दिलचस्प पत्र मिला। उससे मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। भगवान हमारे ट्रान्सवाल के भाइयों तथा सहयोगियों की मदद करें। कठोरता से कोमलता का, दर्प तथा हिंसा से विनम्रता व प्रेम का ठीक वही संघर्ष यहां हमारे बीच भी प्रतिवर्ष अधिकाधिक जोर पकड़ता जा रहा है। यह जोर धार्मिक आदेश और दुनियावी कानूनों में चलने वाले एक तीव्रतम विरोध के रूप में, अर्थात् सैनिक सेवा से इनकार करने के रूप में, खासतौर से दिखलाई पड़ता है। सैनिक सेवा से इनकार करने की घटनाओं की संख्या रोज बढ़ती जा रही है। मैं भ्रातृ-भाव से आपका अभिनन्दन करता हूं और आपके साथ पत्र-व्यवहार होने की मुझे खुशी है।‘‘
तोल्स्तोय के विचारों से सीधे-सीधे मेल खानेवाली एक बात है। ‘निष्क्रिय प्रतिरोध‘ की अवधारणा को संसार में प्रचार के लिए गांधी एकदम जरूरी समझते थे। 10 नवंबर, 1909 के पत्र में उन्होंने तोल्स्तोय से अनुरोध किया कि वे दक्षिण अफ्ऱीकी आंदोलन का समर्थन और प्रचार करने के लिए अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव का उपयोग करें। उन्होंने लिखाः ‘अगर यह सफल होगा तो न केवल अविश्वास, घृणा और झूठ पर विश्वास, प्रेम और सत्य की विजय होगी, बल्कि बहुत संभव है कि हिन्दुस्तान और संसार के दूसरे भागों के करोड़ों लोगों के लिए, उत्पीड़कों के बूटों के नीचे दाबे जा सकने वाले लोगों के लिए उदाहरण बन जायेगा। हिंसा के ठेकेदारों की हार, कम से कम हिन्दुस्तान में उनकी हार में यह निश्चय ही बड़ी मदद देगा। अगर हम आखिर तक डटे रहेंगें, और मैं समझता हूं कि हम डटे रहेंगे, तो अंतिम जीत के बारे में मुझे तिल भर भी शुबहा नहीं है।‘
तोल्स्तोय के नाम तीसरा पत्र गांधी ने दक्षिणी अफ्रीका से, अप्र्रैल 1910 में लिखा। साथ ही अपनी किताब ‘हिन्द स्वराज‘ भेजी। गांधी ने तोल्स्तोय को ‘हिन्द स्वराज‘ भेजते हुए उनसे आशीर्वाद और समर्थन भी मांगा था। उन्हें मिला समर्थन गांधी को ‘हिन्द स्वराज‘ के लिए मिला सबसे बड़ा नैतिक प्रमाण पत्र हैै। गांधी ने अपनी अहिंसा की थ्योरी को तोलस्तोय की थ्योरी से समानांतर और प्रेरित माना है। तोल्स्तोय के रूस में उनकी थ्योरी और गांधी के भारत में गांधी की भी थ्योरी को बाद की पीढ़ियों ने खारिज कर दिया। उन्होंने तोल्स्तोय को अपना शिक्षक माना था। उनके विचार जानना गांधी के लिए महत्वपूर्ण था। गांधी ने सूचित किया कि तोल्स्तोय का प्र्सिद्ध ‘हिन्दू के नाम पत्र‘ उन्होंने अंगे्रजी और गुजराती भाषाओं में प्रकाशित कर दिया है। तोल्स्तोय से उन्हें मिला पत्र उन्होंने उसमें जोड़ दिया और पुस्तिका के लिए एक भूमिका भी लिखी। गांधी ने तोल्स्तोय को पश्चिमी जगत का एक सबसे महान विचारक, प्रतिभाशाली लेखक और ऐसा इन्सान बताया ‘जो जानता है कि हिंसा क्या है और उसका परिणाम क्या होता है।‘
गांधी ने तोल्स्तोय को अपना अंतिम पत्र 15 अगस्त 1910 को लिखा। उन्होंने सूचित किया कि मित्र कल्लेनबाख़ भी तोल्स्तोय के विचारों के अनुयायी बन गये हैं। उन्होंने मिलकर फ़ार्म स्थापित किया है, उसे तोल्स्तोय का नाम दिया है। पत्र में बताया गया ‘कल्लेनबाख़ पर किसी के भी लेखों का इतना शरी प्रभाव नहीं पड़ा जितना कि आपके लेखों का। जिन उसूलों का आप संसार में ऐलान करते हैं। उन्हें हासिल करने के वास्ते कोशिशों की हौसलाअफजाई करने के लिए उन्होंने अपने फा़र्म को आपके नाम से सम्मानित करने के बारे में मुझसे सलाह करना ठीक समझा।‘ इस चिट्ठी का भी लेव तोल्स्तोय ने दोस्ताना जवाब दिया। जब वह पत्र गांधी के पास पहुंचा, तोल्स्तोय का निधन हो चुका था।
तोल्स्तोय ने अपने पत्र में भारतीयों को सलाह दी थी कि अंगरेजों से अहिंसा के आधार पर ही लड़ें। मनुष्य जाति को एक नए तरह का संघर्ष-बोध पैदा करना चाहिए। गांधी ने तोल्स्तोय से प्रेरणा लेकर ही यह लिखा था कि अंगरेजों ने भारतीयों को गुलाम नहीं बनाया है। यह तो भारतीय खुद हैं जिन्होंने अंगरेजों को न्यौता दिया है। 11 नवंबर 1909 को गांधी ने उन पर उनके मित्र जोसेफ डोक द्वारा लिखित जीवनी तोल्स्तोय को भेजी। तोल्स्तोय ने 7 सितंबर 1910 को उस पुस्तक को लेकर अपना पत्र भेजा। वह शायद गांधी के लिए तोल्स्तोय का अंतिम पत्र था। तोल्स्तोय ने गांधी के द्वारा ट्रांसवाल में चलाए जा रहे अहिंसक आंदोलन की तारीफ की थी। 20 नवंबर 1910 को अपनी मृत्यु के पहले तोल्स्तोय ने गांधी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
कनक तिवारी