“गोटुल” को गलत तरीके से पेश करने पर भड़का आदिवासी समुदाय, कहा- जिम्मेदार लोगों की तत्काल हो गिरफ्तारी
छत्तीसगढ़ (बस्तर/रायपुर)। छत्तीसगढ़ में इन दिनों बस्तर की संस्कृति “गोटुल” पर गलत व भ्रामक लेख लिखने को लेकर आदिवासी समुदाय भड़का हुआ है। लिहाजा उसने मीडिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के कांकेर, कोंडागांव, अंतागढ़, बालोद, भिलाई के जिला मुख्यालयों और ब्लॉक मुख्यालय के थानों समेत दर्जनों थानों और चौकियों में एफआईआर की अर्जियां दी गयीं। इतना ही नहीं उत्तर बस्तर के कांकेर में तो एक अखबार की प्रतियां भी जलाई गईं।
आदिवासी समुदाय द्वारा एफआईआर के लिए दिए गए आवेदन के अनुसार दिनांक 30 जुलाई 2019 को 09 बजकर 06 मिनट पर पत्रिका समाचार पत्र ने अपनी न्यूज बेवसाइट पर “गोटुल” को संबोधित करते हुए एक बेहद अपमानजनक व अश्लील शीर्षक के साथ पोस्ट डाला था। जिसका शीर्षक था “देश में सिर्फ यहां शादी से पहले मनाया जाता है हनीमून, माता पिता देते हैं इसकी इजाजत”। आवेदन में इसे आदिवासी समुदाय के लिए बेहद आपमनजनक बताया गया है। यह मामला किसी एक पेपर और वेबसाइट तक सीमित नहीं था बाद में यूट्यूब चैनल “Great Nation News ” ने भी इसको उठा लिया।
और उसने एक अलग हेडिंग “बस्तर का घोटुल: भारत में यहां शादी से पहले ही मनाई जाती है सुहागरात” के नाम से इसे प्रसारित कर दिया। आवेदनकर्ताओं ने कहा कि यह अनुसूचित जनजाति समुदाय को बदनाम करने की साजिश है। इससे उनकी आस्था और परंपराओं को ठेस पहुंची है। उनका कहना है कि इससे समुदाय के लोगों को बहुत बड़ा मानसिक आघात लगा है। लिहाजा उन्होंने पत्रिका समाचार समूह के वेब पेज व यूट्यूब चैनल “Great Nation News ” और उनके संचालकों व संपादकों के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की है।
कांकेर थाने में एफआईआर दर्ज कराने पहुंची आदिवासी युवती मीनाक्षी कोरेटी का कहना है कि “बस्तर में आदिवासियों और उनकी संस्कृति को तोड़ मरोड़ कर भ्रामक रूप से मीडिया प्रस्तुत कर रहा है, सोशल नेटवर्क, मीडिया, पुस्तकें हर जगह गोटुल को सेक्सुअल रिलेशनशिप बता कर पेश किया जाता है। जबकि वे लोग गोटुल को जानते ही नहीं हैं। आज हमारी संस्कृति एक पोस्टर बन कर रह गयी है। पत्रिका समाचार जैसे मीडिया हाउस हमारे शिक्षा के केंद्र को सेक्स केंद्र बताने में जुटे हैं।”
आपको बता दें कि आदिवासी समुदाय के विरोध के बाद पत्रिका समाचार छत्तीसगढ़ ने अपनी वेब साइड से आर्टिकल हटा दिया है। जबकि यूट्यूब चैनल में अभी भी वह वीडियो देखा जा सकता है।
गोटुल की सदस्य लक्ष्मी मांझी कहती हैं कि सबसे पहले “घोटुल” शब्द पर ही आपत्ति है। मीडिया गोटुल को घोटुल लिखता है। गोंडी भाषा हजारों साल पुरानी द्रवीड़ियन समूह कि समृद्ध भाषा है इसमें हिंदी के ऊष्म महाप्राण के
ध्वनि (ख,घ,छ,झ.आदि) गोंडी भाषा में नहीं हैं। ऐसे में गोटुल के संस्थापकों ने अपनी भाषा में भावार्थ के साथ गोटुल नाम रखा था जिसका संधि विच्छेद गो + टुल है। जिसका अर्थ गो = गोक, गो, अर्थात”ज्ञान”, “मन”,” मां” होता है, टुल = चरवाही डेरा अर्थात सार्वजनिक स्थान या बैठक का स्थान होता है। इसे अपभ्रंश करके घोटुल कहा गया है जो इसके मूल अर्थ व उद्देश्यों के बिल्कुल विपरीत है और हमारे लिए अपमानजनक है। यह हमारे समुदाय के लिए मानसिक आघात सरीखा है।
आदिवासी समुदाय द्वारा दर्जनों थानों में दिए गए एफआईआर के आवेदन में बताया गया है कि “पत्रिका समाचार” ने लिखा था कि भारत में यहां शादी से पहले ही मनाई जाती है सुहागरात। सबसे पहले तो गोटुल की स्थापना के मूल उद्देश्यों को समझना पड़ेगा। गांव की सुरक्षा, आपसी सहयोग करना, प्रेम-व्यवहार, भाई-चारे की भावनाओं को मजबूत करना, अपनी संस्कृति की रक्षा करना, प्रकृति के अनुसार चलना, सार्वजनिक कार्य हेतु सामाजिक एकता स्थापित करना, युवक-युवतियों को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक ज्ञान प्रदान करना, नैतिक चारित्रिक एवं अनुशासन का ज्ञान कराना, गीत, संगीत, नृत्य, कला, कहानी, कहावतें, पहेली आदि की शिक्षा देना, कर्तव्य बोध तथा सामूहिक उत्तरदायित्व का बोध कराना, अतिथि गृह के रूप में उपयोग कराना तथा पेन व्यवस्था आदि को समझने के उद्देश्य से हजारों वर्ष पूर्व जब मानव के लिए कोई ज्ञान का केंद्र नहीं था उस समय लिंगो पेन (आदिवासियों के देव) ने इसे स्थापित किया था ।