जातीय और सामंती लूट ने अंजाम दिया सोनभद्र जनसंहार
उत्तम कुमार
उत्तरप्रदेश के उप-मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने सोनभद्र जिलान्तर्गत मूर्तियां पंचायत के उम्भा और सपही गांव के गोड़ आदिवासियों की 638 बीघा ज़मीन की लूट और जनसंहार को मामूली घटना एवं आदिवासियों को मल-मूत्र उठाने और बेगार करनेवाला करार दिया है। 17 जुलाई का दिन आदिवासियों की जमीन लूटने के लिए देश के विभिन्न राज्यों में किये गये जनसंहारों के इतिहास में एक और भयावह अध्याय के रूप में जुड़ गया है। उत्तर प्रदेश के इस गांव के गोड़ आदिवासियों की जनसंहार में सत्ता चलाने वाले सवर्णों ने 32 ट्रैक्टर ट्रॉलियों, दो दर्जन हथियार बंद सहित 300 हमलावर 10 लोगों की निर्मम हत्या तथा 4 लोगों को गंभीर रूप से घायल एवं सैकड़ों लोगों को सुनियोजित ढंग से चोटिल कर आदिवासियों की जमीन कब्जा करने की नाकाम कोशिश की है।
गोड़ आदिवासी उक्त जमीन पर सदियों से मालिक हैं।जो सदियों से जमीन को जोतकर उत्पादन ले रहे हैं। यह इलाका जंगल का इलाका है, जहां वे रहते हैं। उनकी आजीविका खेती और वनोपज पर निर्भर है। आदिवासी उक्त जमीन का पट्टा भी मांगते रहे हैं लेकिन उन्हें पट्टा नहीं दिया गया। बल्कि सरकार के नौकरशाहों के द्वारा उक्त जमीन को कानूनी रूप से छीनने की पूरी कोशिश की गई। इसके लिए सबसे पहले ‘आदर्श काॅपरेटिव सोसाईटी’ का गठन किया गया। इसके बाद 17 दिसंबर 1955 को राॅबर्ट्गंज के तहसीलदार ने उक्त जमीन को उक्त सोसाईटी के नाम पर लिख दिया। लेकिन 1966 में सहकारिता समिति अधिनियम खत्म कर दिया गया। इस तरह से जमीन सोसाईटी से मुक्त हो गया।
इस बीच आईएएस अफसर प्रभात कुमार मिश्रा मीरजापुर के जिलाधिकारी बनाये गये। पहले सोनभद्र अलग जिला नहीं था बल्कि मीरजापुर के अन्तर्गत आता था। मिश्रा ने अपने पद और रूतवा का गलत इस्तेमाल करते हुए 6 सितंबर 1989 को उक्त जमीन को अपने पत्नी आशा मिश्रा, विनीत शर्मा और भानु शर्मा के नाम पर लिखवा लिया। लेकिन वे जमीन कब्जा नहीं कर सके। जब आदिवासियों को पता चला कि जमीन किसी और के नाम पर लिखवा लिया गया है तब उन्होंने इस मामले को अंचल के जिलाधिकारी एवं आयुक्त के पास दर्ज कराया। लेकिन सभी जगहों पर उनके दावों को खारिज कर दिया गया। मिश्रा ने अपने ताकत और पहुंच का खूब इस्तेमाल किया। बावजूद आदिवासियों के विरोध के कारण जमीन कब्जा नहीं कर सका तब मिश्रा ने एक नयी कुटनीति अपनायी। उन्होंने जमीन के एक हिस्से को स्थानीय दबंगों को बेचकर जमीन पर कब्जा शुरू करने की मुहिम छेड़ी।
17 अक्टूबर 2017 को प्रभात मिश्रा ने 140 बीघा जमीन को गांव के दबंग ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुजर को बेच दिया। 6 फरवरी 2019 को उक्त जमीन की सरकारी रजिस्टर में दाखिल खारिज कर ली गई। गुजर यहां पलायन करके आया था, जो अपने दबंगई के कारण गांव की जमीन कब्जाकर स्थानीय निवासी बन गया। लेकिन मिश्रा से खरीदने के बाद भी उक्त जमीन पर गुजर कब्जा नहीं कर पाया। जमीन को आदिवासी ही जोत रहे हैं। गुजर ने आदिवासियों से जमीन खाली करवाले के लिए प्रशासन का सहारा लिया लेकिन आदिवासियों की एकजुटता एवं प्रतिकार के सामने प्रशासन घूटने टेक दिया। अंत में गुजर और मिश्रा ने मिलकर जनसंहार का खूनी खेल रचा।
जनसंहार के बाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इसके लिए पूर्व के कांग्रेस सरकार को जिम्मेवार ठहराया है। अभीतक की मिली रिपोर्ट के अनुसार यह जनसंहार नौकरशाहों और भूमाफिया की मिलीभगत से आदिवासियों की जमीन हड़पने के तिकड़मों का नतीजा है। जनसंहार की इस घटना में 638 बीघा जमीन की कीमत 48 करोड़ रुपये से अधिक का बताया गया है। इस आदिवासी इलाके में राजस्व अधिकारियों द्वारा की गई धोखाधड़ी की जांच पड़ताल साफ साफ कहता है कि सरकार के चकबंदी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने इसे हड़पने की साज़िश रची। विडंबना देखिए कि जिन अधिकारियों को आदिवासियों के पक्ष में वन अधिकार अधिनियम और सर्वेक्षण निपटान की जिम्मेदारी दी गई थी वे वर्षो तक गरीब किसानों को छलते रहे।
बताया यह भी जा रहा है कि यगदत्त 10 आदिवासी किसानों की हत्या के अपराध में मुख्य आरोपी है। इस तरह राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी से जुड़े सैकड़ों दीवानी मुकदमे सोनभद्र की विभन्न अदालतों में लंबित हैं। बहरहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड की जांच के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है। यह समिति आदिवासियों की जमीन हड़पने के लिए जाली प्रविष्टियों की जांच करेगी। उन्होंने कहा कि रैकेट में संलिप्त पाए जाने वाले किसी भी नौकरशाह या राजनेता को बख्शा नहीं जाएगा और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल सवाल यह है कि क्या आदिवासियों की जमीन पर कब्जा के लिए जनसंहार और न्यायालय की जरूरत होती है?
उत्तम कुमार संपादक दक्षिण कोसल