अपने हक के लिए सोनभद्र के हर आदिवासियों को जाना पड़ रहा कोर्ट
पत्रकार आवेश तिवारी
समूचे सोनभद्र में आपको ऐसा एक भी आदिवासी नही मिलेगा जो जंगल विभाग से मुकदमा न लड़ रहा हो।वनाधिकार पट्टों को सरकारी मशीनरी भीख समझती है। भयावह यह है पुलिस जमीनों पर अधिकारों के मामले का निपटारा करने लगी है। मुरदिया में भी दो दिनों पहले यही हुआ है। प्रेस, प्रशासन और पुलिस तीनो मिलकर आदिवासियों किसानों के शोषण उत्पीड़न मे लगे है।नतीजा यह है कि आदिवासी जंगल जमीन से बाहर खदेड़े जा रहे है बाहर के बाजारू लोग उनकी जमीनों का सौदा कर रहे है।
यह क्या कम आश्चर्यजनक है कि आदिवासियों की जमीन का गलत तरीके से सौदा करके पिछले 25 सालों में गिट्टी बालू की खदानें सैकड़ों अस्तित्व में आई है। पहले कैमूर सर्वे एजेंसी ने धोखा किया अब सरकारी मशीनरी कर रही। मीडिया को सोनभद्र के आदिवासियों के दुख दर्द से पहले भी कोई मतलब न था न आज है।
यह तस्वीर मैंने सोनभद्र में 15 साल पहले एक कवरेज के दौरान खींची थी जिसमे आदिवासियों ने वन विभाग से तंग आकर जंगल के बीच मे गांव बसा लिया था और बोर्ड टांग दिया था यहां पुलिस और वन विभाग का प्रवेश वर्जित है।
आवेश तिवारी के फेसबुक वॉल से