राजकीय दमन का एक और नमूना
सीमा आजाद
कल हम सब उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा उठाए गए चार लोगों के कुछ पता न चलने से परेशान थे, आज सुबह अखबारों से पता चला कि उत्तर प्रदेश एटीएस ने भोपाल से उत्तरप्रदेश के मनीष श्रीवास्तव और अमिता श्रीवास्तव को नक्सल लिंक बताकर गिरफ्तार किया है। पुलिस अपनी स्टोरी में बता रही है कि उनके पास मनीष और अमिता के जंगल में गुरिल्लाओं से बात करते वीडियो है। हमेशा की तरह पुलिस की यह कहानी झूठी है। मनीष और अमिता राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, अपनी आजीविका के लिए अमिता भोपाल के एक स्कूल में पढ़ाती थी, और दोनों ही व्यावसायिक तौर पर अनुवादक है। मनीष मेरा भाई और अमिता मेरी भाभी है। दोनों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है, दोनों बहुत अच्छे विद्यार्थी रहे हैं। मनीष ने इलाहाबाद विश्ववद्यालय से बीएऔर गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया है, अमिता ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ओरल हिस्ट्री में पीएचडी की है। दोनों छात्र जीवन से ही सामाजिक राजनैतिक कामों में सक्रिय रहे हैं, और इलाहाबाद और गोरखपुर दोनों जगहों जाने जाते हैं। अमिता कहानीकार कवि और गायिका भी हैं। उनकी शिरीन नाम से कविताएं, कहानियां विभिन्न साहित्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उन्होंने बोलीविया के खदान में काम करने वाली मजदूर डोमितिला की खदान का जीवन बयान करने वाली किताब let me speak का हिंदी अनुवाद किया है। मनीष और अमिता दोनों ने मिलकर हान सुइन की ऐतिहासिक किताब morning deluge का हिंदी अनुवाद किया है जो कि शीघ्र प्रकाश्य है, Margaret Randall की पुस्तक Sandino,s daughter,s का हिंदी अनुवाद किया है। अमिता श्रीवास्तव ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर की पेशेंट है दोनों टाइम इंसुलिन लेना पड़ता है, मनीष को सर्वाइकल की समस्या है। पुलिस की कहानी फर्जी है और यह गिरफ्तारी लेखकों बुद्धिजीवियों राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर बढ़ते दमन का एक और नमूना है।