महाअधिवक्ता पद से कनक तिवारी को हटाने महीनों से चल रही थी तैयारी , उनसे 5 माह तक नही मिले विधि सचिव
नए नियुक्त महाअधिवक्ता के कांग्रेस और राहुल विरोधी पोस्ट हुए वायरल
कांग्रेस के भीतर सुलग रहा लावा कभी भी फुट पड़ेगा
पढ़िए मात्र पांच महीने के भीतर कांग्रेस के भीतर शुरू हुए इस शक्ति प्रदर्शन की पूरी कहानी और प्रदेश की राजनीति में क्या होगा इसका प्रभाव इस विस्तृत रिपोर्ट में
कमल शुक्ला की रिपार्ट
रायपुर । मात्र पांच महीने के भीतर ऐसा कौन सा कारण उत्तपन्न हो गया कि छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया को सरकार के द्वारा नियुक्त संवैधानिक पद महाधिवक्ता को झूठ का सहारा लेकर असंवैधानिक रास्ता अपनाते हुए हटाना पड़ा । आगे चल कर यही निर्णय अब क्या इस सरकार के पतन का कारण बनेगा ? आईये जानने की कोशिश करते हैं कि क्या भारी बहुमत के बाद भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार स्थायी रहेगी ? क्या कांग्रेस में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है या जल्द आने वाला है कोई भूचाल ?
- यह सब हुआ कैसे ? *
” पत्रकार आवेश तिवारी के अनुसार हमने छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता आदरणीय कनक तिवारी जी को कुछ दिनों पहले फोन किया और कहा कि महोदय आपके कार्यालय द्वारा उच्चाधिकारियों को लिखी जा रही महत्वपूर्ण चिट्ठियां लगातार लीक हो रही हैं। आपने सीएम के प्रमुख सचिव को चिट्ठी लिखी वो लीक हो गई। आपने सरकारी अधिवक्ताओं के निलंबन की चिट्ठी लिखी वो लीक हो गई। यह कर कौन रहा है ? उन्होंने साफ कहा यह मैं नही कर रहा हूँ कौन कर रहा है यह भी नही पता।हांलाकि उन्होंने यह भी कहा कि कोई इन लीक पत्रों पर खबर छापेगा तो मैं नोटिस दूंगा। अब एक सप्ताह बाद इन्ही लीक चिट्ठियों में से एक को उनका इस्तीफा बता उसकी बिनाह पर उनका इस्तीफा स्वीकृत कर लिया गया है। जबकि कनक तिवारी बार बार कह रहे हैं कि हमने इस्तीफा नही दिया है।” “
इस चिट्ठी के विषय में कनक तिवारी जी कहते हैं कि मेरी नियुक्ति के पांच माह हो जाने के बाद भी एक बार भी विधि सचिव ने मुझसे मिलना गंवारा नही किया । उन्होंने बताया कि इस सम्बंध में मैंने मुख्यमंत्री महोदय को भी कई बार अवगत कराया पर उन्होंने ध्यान नही दिया । तब मैंने इस आशय का पत्र लिखा था कि विधि सचिव द्वारा जान बूझकर की जा रही उपेक्षा की वजह से मुझे अपने काम मे दिक्कत आ रही है , पर मैंने कोई त्याग पत्र नही लिखा है ।
*महाअधिवक्ता की नियुक्ति और बर्खास्तगी *
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार राज्यपाल द्वारा महाधिवक्ता की नियुक्ति की जाती है । राज्य का सर्वोच्च विधि अधिकारी महाधिवक्ता होता है। महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत कार्य करता है। (राज्यपाल उसे कभी भी उसके पद से हटा सकता है ) वह एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश बनने की क्षमता रखता है । महाधिवक्ता राज्य प्रमुख को विधि संबंधी सलाह देने का कार्य करता है वह राज्य के दोनों सदनों ( विधानसभा तथा विधान परिषद ) की कार्यवाही में तथा सदन में बोलने की शक्ति रखता है लेकिन वह मतदान नही कर सकता है। संविधान विशेषज्ञों के अनुसार महाधिवक्ता का चयन कैबिनेट की बैठक में होता है , जिसे राज्यपाल के पास अनुशंसा के लिए भेजा जाता है । फिर राज्य पाल द्वारा नियुक्ति आदेश जारी की जाती है । हटाये जाने की भी एक सम्मानजनक परम्परा होती है जिसके तहत उनसे राज्यपाल के नाम त्यागपत्र लिया जा सकता है , पर इस मामले में सरकार ने ऐसा न कर इस पद का अपमान किया है ।
अब झूठ कौन बोल रहा, भूपेश या तिवारी ?
महीने भर से कांग्रेस और सरकार के भीतर से ही महाधिवक्ता के संवैधानिक पद को लेकर स्तीफा की अफवाह उड़ाई जाती रही , पिछले दो दिन से तो हद ही हो गया । कानून मंत्री खुले आम कहते रहे कि कनक तिवारी जी ने खुद ही काम करने से मना कर दिया , मुख्यमंत्री सफाई देते रहे कि स्वास्थ्य गत कारणों से कनक तिवारी जी का त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया । जबकि कनक तिवारी जी सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया में घोषणा करते रहे कि वे स्वस्थ हैं और उन्होंने त्यागपत्र दिया ही नही तो कैसे स्वीकार कर लिया गया ? अब सवाल उठता है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को झूठ क्यों बोलना पड़ गया ?
सोशल मीडिया में इसे लेकर दो तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं , एक तो इसे सीधे भूपेश बघेल की तानाशाही और मनमानी बताते हुए जातिवादी और बाम्हण विरोधी राजनीति के तहत उठाया कदम बताया जा रहा है ।बताया जा रहा है कि शुरू से ही भूपेश बघेल को तिवारी के नाम से आपत्ति थी , शुरू में ऊपर से मिले निर्देश के तहत उन्हें बनाया गया था । कनक तिवारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अघोषित रूप से राजनीतिक सलाहकार के रूप में वे विधान सभा चुनाव में सीधे राहुल और उनके टीम के सम्पर्क में थे , और छत्तीसगढ़ में उनके भाषणों के स्क्रिप्ट तैयार करने में भी मदद की थी । इस वजह से उनके नाम का विरोध नही हो पाया । पर भूपेश और उनके सिपाहसलार शुरू से सतीश चंद्र वर्मा के पक्ष में थे , जिसका यथोचित कारण भी है कि भूपेश और विनोद पर जब बदले की कार्यवाही हो रही थी तो वर्मा ही उनके साथ मजबूती से खड़े थे ।*
जानकारों के अनुसार फिर इसीलिए तिवारी जी को लगातार उपेक्षित किया जाते रहा । सम्भवतः इसी वजह से उन्हें लगातार अपमानित करने के लिए विधि सचिव पर दबाव बनाया गया । हॉलांकि इस मामले में पूरी कहानी कनक तिवारी जी द्वारा किये गए पत्र व्यवहारों व वाट्सअप मैसेजों से भी स्पष्ट हो सकता है कि असली मामल क्या है ? फेसबुक में कुछ ने नए महाअधिवक्ता का भूपेश बघेल और उनके प्रमुख राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा का रिश्तेदार होने का भी संदेह जताया है ।
दूसरी ओर कुछ ने यह आशंका व्यक्त की है कि भूपेश सरकार द्वारा की जा रही कुछ बड़ी कार्यवाहियां जो कहीं न कहीं उन पर तत्कालीन सत्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से किये गए हमले के बदले से जुड़ी हुई हैं , उन पर हाईकोर्ट में मामलों का नही टिकना और पुनीत गुप्ता, मुकेश गुप्ता जैसे मामलों में आसानी से जमानत मिलने को लेकर मुखिया की नाराजगी से जोड़ा जा रहा है । इस सम्बंध में उच्च न्यायालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना है कि पुलिस ने नान घोटाला सहित सारे मामले इतने कमजोर बनाये हैं कि सरकार का पक्ष रखने के लिए महाअधिवक्ता कार्यालय के पास कुछ खास है भी नही , फिर यह अतिरिक्त महाअधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा की भी है जिन्हें तिवारी के स्थान पर नियुक्त किया गया है ।*
क्या नए महाअधिवक्ता कांग्रेस व राहुल विरोधी हैं ?
इधर नए महाअधिवक्ता नियुक्त हुए सतीश चंद्र वर्मा भी बनते साथ विवादों में फंस गए हैं । सोशल मीडिया में उनके फेसबुक आईडी के कुछ पोस्ट वायरल हो रहे हैं जिसमें उन्होंने खुले आम राहुल गांधी और कांग्रेस का मजाक उड़ा रहे हैं । इनमें से अधिकांश पोस्ट उन्होंने शेयर किए हैं जिनमे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित जवाहर लाल नेहरू , सोनिया गांधी का मजाक उड़ाया गया है । अधिकांश पोस्टों में कांग्रेस के सफाई की बात कही गयी है । इन पोस्टों को देखकर कोई भी बता सकता है कि कांग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त महाअधिवक्ता की सोच कांग्रेस विरोधी ही है । हालांकि ये पोस्ट वर्मा की जिस आईडी से है उसे फेसबुक से हटाया जा चुका है । इन पोस्टों को वायरल करने वालों ने बताया है कि वे इन्हें महीनों पहले मुख्य मंत्री और उनके सलाह कारों को भेज चुके हैं । अब यह आश्चर्य की बात है कि आरएसएस और भाजपा के खिलाफ लड़कर आये भूपेश बघेल की ऐसी क्या मजबूरी है कि उनके पास कांग्रेस की विचार धारा से जुड़े कोई दूसरा अधिवक्ता नही मिला अगर कनक तिवारी को हटाना जरूरी भी था तो ?
जो भी हो पर इस घटना ने साबित कर दिया कि छतीसगढ़ कांग्रेस और सरकार में अंदर ही अंदर भारी उथल- पुथल मची हुई है । प्रदेश सरकार द्वारा लिए कई महत्वपूर्ण निर्णयों को लेकर अन्य केबिनेट मंत्रियों की चुप्पी से भी लगता है कुछ न कुछ सुलग रहा है । चाहे मुकेश और पुनीत गुप्ता के खिलाफ कार्यवाही का मामला हो , या नान घोटाला का ऐसे मुद्दों पर बाकी कोई मंत्री भूपेश के साथ नही दिख रहा है । यह प्रदेश की सरकार के लिए आगे चल कर बड़ा खतरा साबित हो सकती है और ऐसे ही सब चलते रहा तो आगे चल कर लोकसभा चुनाव के परिणाम की छाया विधान सभा तक लम्बी अगर लम्बी हुई तो कांग्रेस फिर से दशकों के लिए हाशिये में जा सकती है ।
इस सम्बंध में फिर एक बार पत्रकार आवेश के वाल लिए चलते हैं देखिए वे क्या कह रहे – “छत्तीसगढ़ में कुछ ठीक नही चल रहा। 15 साल बाद सत्ता में आने के बावजूद कांग्रेस फांकों में बंटी हुई है।न तो सरकार चलाने में मंत्रियों में कोई उत्साह दिख रहा न नौकरशाहों में। सीएम पद के दावेदार मौक़ा मिलते ही भूपेश बघेल पर हमला करते हैं। सीएम भूपेश बघेल ,रमन सरकार में चर्चित पूर्व नौकरशाहों पर भरोसा किए हुये हैं। न तो नए प्रयोग संभव हो पा रहे हैं न ही जनता से सीधे कनेक्शन बन पा रहा है। यह सब आत्मघाती है। फिलहाल यह जरूरी है कि किसी का अपमान न हो। कनक तिवारी साहित्यकार, शिक्षाविद और पत्रकार भी हैं,उनका अपमान हम सबका अपमान है।”
इधर इस मुद्दे पर पूर्व मुख्य मंत्री रमन सिंह ने भूपेश सरकार को घेरते हुए ट्वीट किया है कि प्रदेश में संवैधानिक संकट उत्तपन्न हो गया है । उन्होंने आगे कहा है कि प्रदेश के राज्यपाल व महाअधिवक्ता कनक तिवारी ने अस्वीकार किया है कि त्याग पत्र नही दिया गया है तो अब मुख्य मंत्री भूपेश बघेल को बताना चाहिए कि उन्होंने किस प्रकार स्तीफा स्वीकृत किया है ।