दरिया का दर्द : चोरी हुए नदी की कहानी
उड़ीसा ने लूट ली बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती
विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जल प्रपात का अस्तित्व खतरे में
बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र बाजपेयी की रिपोर्ट
जगदलपुर । आपने हर तरह की चोरी के किस्से सुने होंगे लेकिन किसी दरिया की चोरी ? आपके कानों को विश्वास न हो पर यह हकीकत है । बस्तर की जीवनदायिनी नदी इंद्रावती को जोरा नाला के माध्यम से उड़ीसा सरकार ने एक षड्यंत्र के तहत धीरे धीरे विलुप्त होने की कगार पर ला दिया है ।
उड़ीसा के कालाहाण्डी से निकली इंद्रावती बस्तर में लगभग 230 किमी का सफर तय कर गोदावरी में समाहित हो जाती है । बस्तर के 2 सौ से अधिक गांव की जीवनदायिनी और यहां का “नियाग्रा ” कहा जाने वाला विश्व प्रसिद्ध जलप्रपात चित्रकोट इस नदी पर आश्रित हैं । इसका अपहरण शनैः शनैः बस्तर सीमा से लगे उड़ीसा का जोरा नाला पिछले 44 सालों से करता आ रहा है ।
लेकिन यहां के जनप्रतिनिधियों और मोटी मोटी तनख्वाह पाने वाले ब्यूरोक्रेट्स ने इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया । वे आंख मूंदकर सांप सीढ़ी के खेल में लगे रहे जिसमे उड़ीसा के सांप इन्हें डसकर नीचे धकेलते रहे । अब जब इंद्रावती न केवल सूखने बल्कि विलुप्त होने की कगार पर है तो सभी अचानक से प्रगट हो सक्रियता के लिबास में नजर आ रहे हैं । स्पष्ट कहा जाए तो सांप निकलने के बाद लकीर पीटने में लग गए हैं ।आये दिन विज्ञप्ति बाजों की ओर से तरह तरह के आयोजनों की जानकारी मीडिया तक उड़ेली जा रही है ।
अब जानते हैं इस दरिया के दर्द की पैदाइश को।
सन 1975 में तत्कालीन मप्र के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी और उड़ीसा की सीएम नन्दिनी सतपथी के बीच इंद्रावती जल बटवारे को लेकर एक अनुबंध साइन हुआ जिसमे बस्तर को 45 टीएमसी पानी मिलने की शर्त थी अब यह पानी ऑफ सीजन में मिलेगा या रेनी सीजन में , इस पर एग्रीमेंट साइलेंट है । इंद्रावती से लगा एक नाला बहता है जिसका पानी आगे चलकर सुरली नामक नदी के जरिये खोलाब नदी जिसे शबरी भी कहते हैं , में मिलता है । इंद्रावती में जब वेग होता है तो जोरा शबरी की ओर बहने लगता है और शबरी जोर होने पर उल्टा बहकर इंद्रावती की ओर चल पड़ता है । इसीलिए इसे जोरा नाला कहते हैं । जिधर दम उधर जोरा ।
कुछ ज्ञानियों ने ये कहना शुरू किया कि एक अंग्रेज ने सालों पहले भविष्यवाणी की थी कि एक समय ऐसा आएगा जब इंद्रावती जोरा के रूप में और जोरा इंद्रावती का स्वरूप ले लेगा
इसका मनोवैज्ञानिक फायदा भी उड़ीसा के तंत्र ने उठाया । अब इन ज्ञानियो को कौन समझाए की इस तरह की उनकी बयानबाजी का लाभ उड़ीसा के तंत्रीय व्यवस्था ने ही उठाया । इन छद्म ज्ञान पुरुषों को जब इस भविष्यवाणी पर भरोसा था तो ऐसी गम्भीर स्थिति आने के पूर्व अपना ज्ञान सरकार और उसके अफसरों को क्यों नहीं दिया जो इंद्रावती और जोरा नाला को लेकर सालों तक सांप सीढ़ी के खेल में मशगूल रहकर हर बार नीचे आते रहे । लेकिन लगातार कम होते जलस्तर ने मजबूरी में सिंचाई विभाग के अकर्मण्य अधिकारियों को प्रेरणा दी कि कुछ करो नहीं तो बस्तर का अबोला आदिवासी कहीं उठ खड़ा हुआ तो ? लिहाजा मामला सेंट्रल वाटर कमीशन तक पहुँचा और उसने एक डिजाइन तैयार कर उसके अनुरूप नदी और जोरा के बीच एक कंट्रोल स्रुक्चर बनाने के निर्देश दोनों राज्यों को दिए । तब तक छग अलग राज्य बन चुका था ।
40 वर्षों के बीच इंद्रावती को बचाने और बस्तर की ओर इसकी पर्याप्त जलधारा को मोड़ने को लेकर यहां की जनता के प्रलाप का असर सिर्फ यही हुआ और किसी तरह स्रुक्चर बनाया गया । इसके लिए आवश्यक धनराशि छग ने मुहैया कराई । स्ट्रक्चर बना लेकिन पानी के वेग ने उसकी सूरत बिगाड़ दी और अब उसमें रिपेयर की जरूरत है । पर इसे कराए कौन ?
निश्चित रूप से बिना लागलपेट कहा जा सकता है कि उड़ीसा सरकार और वहां के एडमिनिस्ट्रेशन की भावना इंद्रावती को लेकर कलुषित है । वे लगातार बस्तर को ठगने प्रयासरत हैं ।
उनकी सोच अपने प्रदेशवासियों के फायदे के हिसाब से सही भी हो सकती है पर हम क्यों ठगे जाने को पलक बिछाए बैठे हैं उड़ीसा सरकार एवम वहां के प्रशासनिक अफसरों की बलिष्ठ भुजाओं में बस्तर की अबोली आदिवासी जनता की बिसात ही क्या , यह उन सबने दिखा
दिया । लेकिन हम सबने उड़ीसा का बिलबिलाना भी देखा है जब अजित जोगी ने महानदी के पानी को रोकने का बयान दिया था । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामचन्द्र सिंह जूदेव भी इंद्रावती के गम्भीर मसले को लेकर बेहद संजीदा रहे
इंद्रावती की दयनीय दशा से चिंतित कुछ जागरूक लोगों ने पिछले एक पखवाड़े से जल यात्रा की मुहिम चला रखी है जिसमे लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया ।
इस जल यात्रा की मुहिम में नर नारी , बाल अबाल और ग्रामीण बड़ी तादाद में नियमित रूप से जुड़ रहे हैं । देखना यह है कि इस जनांदोलन का शोर कब और कितना असर डालता है सरकारी नुमाइंदों व जन प्रतिनिधियों पर ।
लेकिन एक बात मैं अवश्य कहना चाहूंगा कि उड़ीसा सरकार और उसके तंत्र के आगे गिड़गिड़ाने की बजाय हमें अपने नए जल स्त्रोत के विकल्प अभी से तलाशने चाहिए । या फिर महानदी का एक बूंद पानी उड़ीसा न जाने दिया जाये । पता नहीं टेक्निकली यह कितना सम्भव होगा मैं नहीं कह सकता ।
राजेन्द्र बाजपेयी