मंत्री बनने के बाद अब आदिवासी समाज के नहीं रहे कवासी लखमा पद बचाने के लिए, जोकर की भूमिका निभा रहे
आदिवासी नेता व कार्यकर्ता फटक भी नहीं सकते, सप्लायर और ठेकेदारों की भीड़ से घिरे रहते हैं लखमा
रायपुर । बस्तर के एकमात्र आदिवासी मंत्री और सुकमा विधायक कवासी लखमा को सीधा और सरल समझने की काफी भूल की है, इनका चरित्र भानूप्रतापपुर उपचुनाव के दौरान तब सामने आया जब यह समाज के नेताओं को जो समाज के हित की मांग को लेकर सरकार से नाराज चल रहे थे , ये उन्हें पैसे से प्रलोभन देकर या धमकी देकर और तरह-तरह के सत्ता के हथियारों से डराने और घबराने की कोशिश की । लखमा ने भानूप्रतापपुर उपचुनाव के दौरान अपने सभी मंचों में आदिवासी सर्व समाज के नेताओं को तमाम प्रकार की गालियां दी, उन पर प्रलोभन में आने, पैसे में बिक जाने तक का आरोप लगाया ।
जबकि लखमा ही नहीं बस्तर के सभी आदिवासी विधायक बस्तर सहित पूरे छत्तीसगढ़ के सभी आदिवासी विधायक तब विधानसभा में चुपचाप खड़े थे, जब हाईकोर्ट की रोक को आधार बनाकर 14,, 16 और 20 के आंकड़े के आधार पर किसी छत्तीसगढ़ सरकार ने 106 से ज्यादा आदिवासियों के सीट पर गैर आदिवासियों का कब्जा जमा दिया और पिछले 2 माह के भीतर लगातार तमाम प्रकार के भर्ती और एडमिशन की प्रक्रिया जारी रखी । यह सब यह भूल जाते हैं कि भूपेश बघेल को इन्होंने बनाया है भूपेश बघेल ने इन्हें नहीं बनाया ।
लखमा तो अब फर्जी मुठभेड़ के बारे में, फर्जी गिरफ्तारी के बारे में , फर्जी आत्मसमर्पण के बारे में बोलना ही भूल चुके हैं । जबकि रिजर्व फॉरेस्ट, पेशा कानून को भी छोड़िए, आदिवासियों के हक के पट्टे की जमीन पर भी फर्जी तरीके से कब्जा करके बनाए जा रहे सेंट्रल पैर मिलिट्री कैम्प पर भी चुप हैं । इसके पीछे कारण क्या है इसका मूल्यांकन हम अगले पोस्ट में करने की कोशिश करेंगे ।
आदिवासी समाज के आक्रोश का कारण केवल आरक्षण का मुद्दा नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान कांग्रेस सरकार के आम चुनाव के समय जारी किए गए जन घोषणापत्र के हिसाब से पिछली सरकार द्वारा आदिवासियों पर किए गए अत्याचार के खिलाफ किए गए तमाम वादों की अनदेखी भी है ।
पेशा कानून की मांग में भी पूरी तरह से छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा धोखाधड़ी की गई, हंसते हुए पूरी तरह से अडानी को सौंप दिया गया 5000 से ज्यादा पेड़ काट डाले गए इन्हीं लखमा जी का वादा झूठा निकला और अडानी को 13 नंबर ब्लॉक सौंपने की पूरी तैयारी हो चुकी है । बोधघाट परियोजना जिसका कांग्रेस के घोषणा पत्र में उल्लेख ही नहीं था उसको लागू करने के लिए भी पूरे प्रदेश में लगातार बोर्ड लगे थे, जो आप भूले नहीं होंगे फर्जी मुठभेड़ अब भी जारी है, फर्जी गिरफ्तारियां भी जारी है, फर्जी आत्मसमर्पण भी अभी जारी है और 3000 से ज्यादा वे आदिवासी जो फर्जी मामलों में फंसाये गए हैं वह अभी भी जेल में बंद है । मगर अब कवासी लखमा प्रदेश सरकार के मंत्री का पद निभा रहे हैं , इसलिए कवासी लखमा अब एक नया चश्मा वहन चुके हैं जिसमें उन्हें अपने बंधु भाइयों की समस्याएं दिखना बंद हो गया है क्योंकि उनके आसपास तमाम कार्यकर्ता लगभग वही सलवा जुडूम के अत्याचारी गैर आदिवासी शोषणकर्ता लोग हैं जो तब आदिवासियों पर अत्याचार और खुद लखमा के ऊपर भी अत्याचार के दोषी रहे हैं ।
लखमा के इलाके में ही सिलगेर, गोम्पाड़, आदि दस से ज्यादा गांवों में लाखों आदिवासी अपने हक और अधिकार की लड़ाई को लेकर पिछले साल भर से आंदोलनरत हैं मगर कवासी लखमा मंत्री बनने के बाद मंत्री पद के लोभ में अपने ही आदिवासी भाइयों की मांग के प्रति पूरी तरह से उपेक्षात्मक रवैया अपना रहे हैं बल्कि उनसे जाकर बात करने में भी वे अपनी तौहीन समझ रहे हैं । एक बार लखमा का कार्यक्रम जब जगरगुंडा में हो रहा था तब सिलगेर का आंदोलन जारी था और मैं वहां पर मौजूद था, तब मैं नहीं उनसे निवेदन भी किया था कि मात्र 11 किलोमीटर दूर में भारी संख्या में आदिवासी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं मगर लखमा ने मेरी बात को अनदेखा किया कि वह सब माओवादी हैं और माओवादियों कि मैं परवाह नहीं करता, आदिवासियों के चुनने से मैं विधायक नही नही बना हुं । लखमा पर कई गंभीर आरोप हैं झीरमघाटी का कांड अभी भी जांच के दायरे में हैं, मामला कोर्ट में भी है लखमा पर माओवादी को सहयोग करने के लिए भी आरोप हैं मगर इन तमाम मामलों पर मैं अभी कोई बात नहीं करूंगा बस मैं इतना कहना चाहूंगा कि कवासी लखमा को वर्तमान प्रदेश सरकार बस्तर के उपचुनाव और प्रदेश के चुनाव के क्षेत्र में #जानी_वाकर की भूमिका में प्रयोग कर रही है । बाकी अभी बहुत कुछ है , जोगी जी धीरे धीरे – – – –
नोट : आदिवासी मंत्री कवासी लखमा के प्रमुख आदिवासी कार्यकर्ताओं के फोटो, जिनमें से एक तो उन्हें सलवा जुडूम अभियान के समय घुटने टेकवाने में प्रमुख भूमिका निभाया था और दूसरे एक अन्य ने तब के मंत्री केदार कश्यप की निकटता का फायदा उठाकर जगरगुंडा के जवानों के लिए सड़ा-गला राशन भिजवाने में प्रमुख भूमिका निभाया था