छत्तीसगढ़ सरकार ने वनाधिकार एक्ट 2006 लागू कर जनजातियों को दिया जंगल पर अधिकार
नितिन सिन्हा
रायपुर/रायगढ़– छत्तीसगढ़ सरकार ने सत्ता सम्हालते ही वनवासियों और प्रदेश के वनों में रहने वाली पारंपरिक जनजातियों को वनों का प्रबंधन अधिकार कम्युनिटी फारेस्ट रिसोर्सेज राइट(सीएफआरआर) देने का निर्णय लिया था। जिसके तहत राज्य में
अब तक कुल चार लाख 84 हजार 975 व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार पत्रों का वितरण किया गया है।
प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल का स्पष्ट तौर पर कहना है कि ‘तकरीबन 32 फीसदी आदिवासी आबादी वाले हमारे प्रदेश में आदिवासियों तक उनके सभी तरह के अधिकारों की पहुंच सुनिश्चित किए बिना नया-छत्तीसगढ़ गढ़ने का सपना कभी साकार नहीं हो सकता। जिन वनों पर उनका जीवन और आजीविका निर्भर है,उन पर तो पहला अधिकार आदिवासियों का ही बनता है। जिसे आधार मानकर राज्य के वनवासियों को स्थाई वनाधिकार पट्टे दिए जा रहे हैं।।
रायगढ़ जिले के तहसील धरमजयगढ़ में नेवार एवं नर कालो ग्राम पंचायत को सामुदायिक वन प्रबंधन का वन विधायक कानून के तहत वन प्रबंधन का अधिकार दिया गया है।
इस विषय मे जनचेतना के राजेश त्रिपाठी का कहना है कि मुख्यमंत्री जी की सक्रियता से ही रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ तहसील में एक लंबी लड़ाई के बाद व्यक्तिगत पट्टे एवं सामुदायिक वन प्रबंधन के तहत ग्राम पंचायत नेवार एवं नरकालो ग्राम पंचायत को सामुदायिक वन अधिकार पट्टा विश्व आदिवासी दिवस के दिन मुख्य मंत्री जी के द्वारा दिया गया है।
ठीक इसी तरह अम्बिकापुर में भी दस ग्राम पंचायत को भी सामुदायिक वन प्रबंधन का अधिकार के तहत वन भूमि का पट्टा दिया गया है। जहां अंबिकापुर में चौपाल ग्रामीण विकास शोध संस्थान काम करता रहा है,वहीं रायगढ़ में जन चेतना रायगढ़ धरमजयगढ़ में विगत 20 सालों से खाद्य सुरक्षा कानून,रोजगार गारंटी कानून,सूचना का अधिकार, पेसा कानून और वन विधेयक कानून विषय को लेकर काम करता रहा है। इसी क्रम में एक लम्बी लड़ाई के बाद जहां व्यक्ति गत पट्टे आदिवासी समुदाय को दिलवाये गये हैं। वहीं सामुदायिक वन प्रबंधन के तहत पट्टे दिलवाने का सतत प्रयास किये जा रहे हैं।
जिले के वनांचलों में आदिवासियों को स्थाई वन पट्टा दिलाए जाने में सामाजिक कार्यकर्ता सजल मधू, काजल विश्वास,रीत विश्वास,राजेश त्रिपाठी, सुश्री सविता रथ,सुखीराम साय और जयलाल निषाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
कर्नाटका उच्च न्यायालय का यह ऐतिहासिक फैसला,काम आया
यह कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक मुकदमे का फैसला है जो 8 सितंबर 1993 को दिया गया था। इसमें भी स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि जमीन मालिक ही उस जमीन के नीचे पाए जाने वाले सभी प्रकार के खनिजों का असल मालिक है।
नितिन सिन्हा