विधायक से मंत्री भी बन गए अब तो पुल बनवा दो सरकार
युकेश चंद्राकर @ बीजापुर
सदियाँ बीती युग बीता पर बस्तरिया आदिवासियों की तकलीफें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं । छत्तीसगढ़ सरकार में लगातार विधायक बनाकर भेजे जाने वाले बीजापुर जिले के विधायक आज सरकार में कद्दावर मंत्री हैं । छत्तीसगढ़ सरकार की बस्तर के विकास हेतु करोड़ों अरबों रूपयों की सैंकड़ों योजनायें चल रहीं हैं । मगर प्रदेश के वन, विधि एवं विधायी मंत्री महेश गागड़ा के विधानसभा क्षेत्र बीजापुर के 5 ग्राम पंचायत के 30 आश्रित गाँवों में निवासरत हज़ारों आदिवासियों तक ये योजनायें सिर्फ एक पुल के न होने की वजह से पहुँचने से पहले ही दम तोड़ रहीं हैं ।
भोपालपटनम के 5 ग्राम पंचायत के 30 गाँवों में निवासरत हज़ारों आदिवासी आज़ादी के बाद से ही अपने जान जोखिम में डाल आदिम युग के नाव में सवार होकर नदी पार करते हैं । दरअसल सरकार की बेरूखी का शिकार हुए इन मासूम आदिवासियों के गाँव तक पहुँचने से पहले रामपुरम के पास चिन्त्तावागु नाम की नदी पड़ती है । नदी के उस पार बामनपुर, अटुकपल्ली, चंदूर, भद्रकाली, और कोत्तुर ग्राम पंचायत के 30 गाँव के हज़ारों आदिवासी सदियों से निवासरत हैं । इस नदी पर हमारी संवेदनशील सरकारों की नज़र आज़ादी के बाद से अब तक नहीं पड़ी । इस नदी पर एक पुल बनवाने की सरकार को अब तक कभी ज़रूरत ही महसूस नहीं हुयी । बीजापुर विधायक महेश गागड़ा को जब आज से 2 साल पहले कैबिनेट में वनमंत्री बनाया गया तो यहाँ के निवासियों में एक आस जागी कि, संभवतः अब हमारी मुसीबतों का निदान होगा । हमारी दुश्वारियां कुछ कम होंगी । अब हमारे गाँव तक पहुँचने के लिए एक पक्की पुल भी बनेगी । मगर आज तलक स्थिति जस की तस बनी हुयी है ।
मजबूर ग्रामीणों को अपनी ज़रुरतें पूरी करने के लिए आज भी लकड़ी के बने पतले से नाव में बैठकर नदी पार कर अपनी ज़रूरत का सामान लेने भोपालपट्टनम आना होता है । और फिर इसी नाव पे बैठकर वापस अपने घर को जाना होता है ।
छत्तीसगढ़ सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले 2 रूपये किलो चांवल के लिए भी इन ग्रामीणों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है । गर्मी के मौसम में ही इन इलाकों में निवासरत ग्रामीणों के लिए जुलाई, अगस्त और सितम्बर माह तक का राशन भिजवा दिया जाता है । मगर सितम्बर के बाद चावल के लिए इन ग्रामीणों को भोपालपट्नम आना होता है । 10 से 20 किलोमीटर के सफ़र के बाद ये ग्रामीण चिन्त्तावागु नदी को पार कर भोपालपटनम आते हैं । यहाँ से चावल खरीद कर फिर इस पतले से नाव में चावल का बोरी डालकर नदी पार करते हैं । फिर किसी तरह इनके घर का चुल्हा जलता है और इनकी पेट की आग बुझती है ।
इस नदी में नाव चलाने के लिए बाकायदा ग्रामीणों को प्रशासन से अनुमति लेनी होती है । और 6000 रूपये का रकम भी देना होता है । फिर खुद से बनायी लकड़ी के नाव को चलाना होता है । सरकार इस नदी में पुल तो नहीं बना पायी मगर एक बोट का व्यवस्था तो करवा ही सकती थी ।
लेकिन इस इलाके के ग्रामीणों की बदकिस्मती कि इनको सरकार ने एक बोट भी मुहैय्या नहीं करवायी है । इस नदी में नाव चलाने वाले नाविक ने बताया कि, हर रोज़ इस नदी में 400 से 500 ग्रामीण नदी पार करते हैं । जिसमे नदी उस पार बसने वाले स्कूलों में पदस्थ शिक्षक, स्वास्थ्य कर्मचारी, बच्चे, बूढ़े, और महिलाएं भी शामिल होतीं है। हर एक नाव सवार से 10 रूपये का किराया लिया जाता है और यदि मोटरसाइकिल भी साथ हो तो 30 रूपये किराए के तौर पर लिया जाता है। नाविक के मुताबिक़ नाव सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक नदी में चलाया जाता है और यदि रात में कोई इमरजेंसी पड़े तो रात के अँधेरे में टोर्च की रौशनी में लोगों को नदी पार करवाया जता है। नदी पार करने वाले लोगों की भीड़ इतनी होती है कि, अपनी बारी आने के लिए लोगों को 1 से 2 घंटे का लंबा इंतज़ार करना होता है।
इस पूरे मामले में जिला कलेक्टर डॉ. अय्याज़ तम्बोली का कहना है कि, इस पुल के लिए टेंडर निकल चुका है और ठेकेदार भी तैयार है। बारिश का सीजन ख़त्म होने और नदी में पानी कम होने के बाद पुल का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जाएगा ।