फूलन दलित महिला शोषण की वीभत्सता का जीता जागता दस्तावेज थी

बादल सरोज

इनके साथ ग्वालियर की जेल में न जाने कितनी कितनी बार गहरी बातें करने की स्मृतियाँ हैं ।
वे अंदर के फाटक के पास बनी जेल अदालत के बाहर यूं ही बैठी रहती थीं । हम हमसे मिलने आये मुलाक़ातियों से मिलने के बाद लौटते में या जेल अस्पताल के डॉक्टर से गपिया कर अपनी बैरक की तरफ जाते में उनके सामने से गुजरते थे तो बुलाकर चाय पिलाने बिठाकर खूब देर बतियाती थी !अपनी ठेठ जुबान में अपनी हौलनाक कहानियां सुनाती थी । कई बार जब हम मजमें में होते थे तो जोर से दूर से चिल्लाकर ही कह देती थी कि “अच्छा डंडा किये हो सरकार में” !!

● कामरेड शैली के प्रति खासा नेह था उनका और उनके कहने पर थोड़ा सकुचाती सी लोकगीत भी सुनाया करती थीं । जब पूरा होने पर हम तालियां बजाते थे बेहद शर्म से लाल पड़ जाता था उनका चेहरा । वे खाँटी देसी और भरपूर गंवई महिला थीं, कई बार जेल की महिला वार्डन्स के सर से जुंए बीनते या बिनवाते भी देखा है उन्हें !

● एक बार कुछ ज्यादा ही बड़ा दमन हुआ था …मम्मी गायत्री सरोज और मोहनिया देवी कुशवाह सहित अनेक महिला कामरेड्स भी जेल में गयी । 2-3 दिन इन्ही की बैरक में रही । फूलन देवी ने उनकी न सिर्फ खातिर की, ख्याल रखा बल्कि बाहर निकल कर महिला समिति में काम करने का वादा भी किया ! जो उन्होंने निबाहा नहीं । अपने दिल्ली प्रवास में उन दिनों हम पार्थो दा के यहां 42 या 44 नंबर अशोक रोड पर ठहरते थे ! ठीक बगल की कोठी सांसद फूलन देवी की थी ! एक दिन हम घुस गए, वे बाहर ही बैठी थी…अरे बाबू साब को चाय पिलाओ !! कहकर दमक उठी ! हमने कहा क्या हुआ महिला समिति में काम करने का वादा !! फूलन उदास हंसी से टाल गयी !

● इतने मन से और प्यार भरे सम्मान से आज उनकी याद इसलिए कर रहे हैं कि टटपूंजीए और कायर बतौलेबाज जो बोलें ….फूलन एक उत्पीड़ित और खुद्दार महिला थी ! उन पर बनी अच्छी फ़िल्म भी वह सब नहीं दिखा सकी जो उनके साथ हुआ और उन्होंने हमें सुनाया । उनकी बातें सुनकर सुनने वालों को रोते हुए देखा है ।

● फूलन भारत के गाँवों की गरीब और खासकर दलित महिलाओं के शोषण की वीभत्सता का जीता जागता दस्तावेज थी ! उनके प्रतिरोध की दमित कामना को साकार करने वाली थी !

● आप फूलन के हौलनाक प्रतिकार से असहमत हो सकते हैं, सभ्य समाज के सभ्रांत व्यक्ति है, लिहाजा होना भी चाहिये ! गुजरात के हत्याकांड को हत्याकांड नहीं कह सकते, महाराष्ट्र, बिहार, यूपी में कचर डाले गए दलितों की हत्या के दोषियों के मूंछों पर हाथ फेरते बाईज्जत बरी होने पर कुछ नहीं बोले, मॉब लिंचिंग के भेड़ियों और उनके नरभक्षी विचार पर मुसक्का मार बैठें हैं तो क्या बेहमई को तो कहना ही चाहिए । मगर उसके पहले बस थोड़ी देर के लिए आँख मूंदकर खुद को फूलन की स्थिति में देखकर सोचना भी चाहिए । फूलन की स्थिति में किसी अपनी नजदीकी स्त्री की कल्पना करनी चाहिए

● अर्जुन सिंह ने अपने दीर्घ राजनीतिक जीवन में फूलन के सरेंडर कराने से अधिक नेक काम शायद ही कोई और किया हो

● चिंदीचोरों के राज्याभिषेक के बाद से पुलिस और प्रशासन के संरक्षण में निरपराध और बेसहारा लोगो पर हमले कर रहे कायरों को देखकर फूलन देवी की बहुत शिद्दत से याद आती है । धर्मध्वजा में लिपटे बलात्कारियों की पौबारह के विरुध्द महिला सम्मान की भावनाओ को प्रोत्साहित करना है तो हर स्कूल में हर भाषा मे फूलन की जीवनी सामंती क्रूरता के पाठ के रूप में पढ़ाई जानी चाहिए !!!

बादल सरोज

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!