शैलेश, घुप्पड़, किरणमयी, विकास, करुणा, धनेंद्र, बोरा, व चंदन कश्यप के नाम हो सकते हैं फाईनल
कांग्रेस आलाकमान के नियमों के खिलाफ जाकर विधायक व हारे हुए प्रत्याशी भी बनाये जा सकते हैं निगम- मंडल अध्यक्ष
बीजेपी के समय संसदीय सचिव पद के खिलाफ कोर्ट गई थी कांग्रेस, अब खुद गुटबाजी नियंत्रित करने बनाएगी संसदीय सचिव
रायपुर । छत्तीसगढ़ प्रदेश में सत्ता की राजनीति में दो धुरी अब पूरी तरह स्पष्ट हो गई है। इसी वजह से संसदीय सचिव व अन्य लाभ के पदों पर नाम तय करने में छत्तीसगढ़ कांग्रेस को विलम्ब हो रहा है । निगम, मंडल, आयोग के लिए नाम तय करने के दौरान विवाद खत्म करने के लिए आलाकमान की ओर से प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया कई बार गुप्-चुप व सार्वजनिक तौर पर छत्तीसगढ़ आ कर लौट चुके हैं, इस बीच कुछ नामों पर सर्व सहमति से कुछ नाम तय कर लिए जाने की भी खबर चर्चा में है ।
इन नामों में कई वर्तमान विधायक व पूर्व विधायकों के नाम भी शामिल है । इनमें हारे हुए प्रत्याशियों को भी शामिल किये जाने की खबर है । जबकि कांग्रेस आलाकमान की रणनीति के तहत वर्तमान विधायक और हारे हुए प्रत्याशियों को आयोग और मंडल से दूर रखने का था । खबर तो यह भी है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति करेगी. पिछली भाजपा सरकार द्वारा की गई संसदीय सचिवों की नियुक्ति को कांग्रेस ने गलत बताया था और नियुक्ति खत्म करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. संसदीय सचिवों की नियुक्ति मामले में भूपेश सरकार में मंत्री मो. अकबर ने सरकार की ओर से स्थिति स्पष्ट किया. मंत्री अकबर ने कहा कि उनकी सरकार में भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति की जाएगी. ज्ञात हो कि मोहम्मद अकबर ने ही कांग्रेस की ओर से तब याचिका लगाया था ।
चर्चा है कि ढाई- ढाई साल मुख्यमंत्री के कथित गणित को प्रभावित करने का “दाऊ फार्मूला” निगम, मंडल आयोग व संसदीय सचिव तय करने के आलाकमान के फार्मूले के आड़े आ रहा है । बाबा कूटनीति और चालबाजी के आगे पस्त हो चुके हैं, जबकि करोड़ों रुपये खर्च कर मीडिया के माध्यम से सीधे, सरल छतीसगढिया की छवि बना लेने वाले दाऊ बाजी मार चुके हैं । बाबा इसलिए भी हताश हैं कि जन घोषणा पत्र के नाम से उनका नाम ही वोटरों के सामने था, जबकि अब प्रदेश सरकार उनमें से अधिकांश घोषणाओं से मुकर चुकी है या उनकी रफ्तार की नकेल कछुवा को थमा दिया है ।
हालांकि नाराजगी के सुर कुछ और सत्ता सुख वंचित पॉवरफुल नेताओं के भी हैं । पता चला है कि दो वरिष्ठ नेता व विधायक सत्यनारायण शर्मा व अमितेश शुक्ला ने अपने या अपने सन्तानों के नाम से निगम अध्यक्ष का पद अस्वीकार कर अपनी बाजी मुट्ठी में बंद रख प्रदेश सरकार को डरा रखा है । चर्चा है कि इस बीच पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व मंत्री रह चुके धनेंद्र साहू ने सहमति देकर राजनीति से समझौता कर लिया है ।
अंदुरणी सूत्रों के अनुसार निगम के लिए जिन नामों पर सहमति बन चुकी उसमें सुभाष घुप्पड़, किरणमणि नायक, शैलेश नीतिन त्रिवेदी , गिरीश देवांगन , बैजनाथ चन्द्राकर , मलकीत सिंह गैन्दू व राम सुंदर दास व करुणा शुक्ला का भी नाम फाईनल हो सकता है, वहीं विकास उपाध्याय, चंदन कश्यप, शैलेश पांडेय व अरुण बोरा को संसदीय सचिव बनाया जा सकता है । वैसे प्रदेश सरकार के मंत्री रवींद्र चौबे ने मीडिया से चर्चा में बता भी दिया है कि नाम तय हो चुके हैं और जल्दी ही घोषित भी हो जाएंगे ।