मुठभेड़ की सच्चाई को उजागर करने से रुष्ट पुलिस ने बदले की कार्यवाही करते हुए बेला – सोनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की
दंतेवाड़ा जिला के किरंदुल थाना क्षेत्र में गुमियापाल के जंगल में हुई मुठभेड़ मामले में एक के बाद एक खुलासों के साथ मुठभेड़ को सही बताने की कोशिश में घटना को नया रूप देते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस ने आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी और अधिवक्ता तथा शोधार्थी बेला भाटिया सहित पांच लोगों के खिलाफ जबरन एफआईआर दर्ज किया है। यह एफआईआर इन सभी के खिलाफ 16 सितंबर को लगाया गया है जबकि एफआईआर पुलिस को दोषी अधिकारी और मुठभेड़ में शामिल जावानों के विरुद्ध दर्ज करना था। इस मामले का समाधान न कर इसका अपराधीकरण की कोशिश हो रही है। विदित हो कि खुलासा यह हुआ था कि पुलिस ने इस मुठभेड़ में जहाँ दो 5-5 लाख के इनामी नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया था ठीक उलट सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकार की चार सदस्यीय टीम ने इसे फर्जी मुठभेड़ क़रार दिया था।
कुछ दिन पहले इस भयावह खबर को आपने पढ़ा होगा कि सुरक्षा बल-नक्सली मुठभेड़ को झूठा साबित किया, बेला सोरी की टीम घटना स्थल पहुँची, कहा- मुठभेड़ फर्जी, निर्दोष आदिवासियों की सुरक्षा बलों ने की हत्या।
चौकानेवाली खबर है कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की है। एफआईआर में प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता और शोधार्थी बेला भाटिया और दो आदिवासी सरपंचों को भी आरोपी बनाया है। एफआईआर इन सभी के खिलाफ धारा 188 के उल्लंघन के आरोप में दर्ज की गई है। वहीं पोदिया और 9 लोगों पर भारतीय दंड संहिता के 147, 148, 149, 307, तथा 25, 27 आर्म्स एक्ट में कार्यवाही का एफआईआर 15 सितंबर को हुआ है।
असल मामला यह है कि ये सामाजिक कार्यकर्ता आदिवासियों के विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुए थे। उद्योगपति अदानी को सरकार ने बस्तर के बैलाडीला पहाड़ में नंदराज पहाड़ खुदाई के लिए सौंप दिया है। इस पहाड़ के नीचे बेशकीमती लोहा है। अदानी ने वहां 10 हजार पेड़ काट डाले। जब आदिवासी युवाओं ने इसका विरोध किया तो पुलिस ने इन आदिवासी युवाओं की हत्या करनी शुरू कर दी। जब आदिवासियों ने इन हत्याओं के खिलाफ पुलिस थाने के सामने विरोध प्रदर्शन किया तो पुलिस ने सोनी सोरी समेत पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी।
असलियत यह कि सोनी सोरी और बेला भाटिया सहित आदिवासी कार्यकर्ताओं ने सुरक्षा बलों द्वारा दो आदिवासियों की हत्या तथा एक अन्य आदिवासी को कोर्ट में पेश करने के लिए 16 सितंबर को एक शांतिपूर्ण रैली निकाल कर आदिवासियों की हो रही हत्या पर किरन्दुल पुलिस को एफआईआर दर्ज करने इकट्ठा हुए थे इसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज न कर उल्टे इस घटना की सच्चाई उजागर करनेवालों पर बदले की कार्यवाही करते हुए एफआईआर कर दी है।
भारतीय दंड विधान की धारा 188 के तहत चुनाव आचार संहिता का आरोप मढ़ दिया है। जिन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है उसमें इन्हें छह महीने की कैद की सजा दी जा सकती है। ये वही बेला भाटिया हैं जिनके पक्ष में कभी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट की थी।
आपको बता दें कि सोनी सोरी को आदिवासियों के हक में आवाज़ उठाने के कारण भाजपा सरकार ने उन्हें थाने में ले जाकर बिजली के झटके दिए थे और उनके साथ अमानुषिक व्यवहार किया था। उस समय कांग्रेस विपक्ष में थी और कांग्रेस ने सोनी सोरी पर हुए अत्याचारों के खिलाफ आन्दोलन में भाग लिया था। कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद वादा किया था कि नई सरकार जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों को रिहा करेगी और सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों पर भाजपा सरकार द्वारा बनाये गये फर्जी मामले भी वापस लेगी।
लेकिन कांग्रेस ने बहरहाल नक्सल समस्या से जूझ रहे किसी भी व्यक्ति पर दर्ज मामले को अभी तक खत्म नहीं किया है। उलट कांग्रेस के शासन में आने के बाद सैंकड़ों की तादाद में निर्दोष आदिवासियों को जेलों में डाल दिया गया है तथा अनेकों फर्जी मुठभेड़ों में निर्दोष आदिवासियों की हत्याएं भी लगातार जारी हैं।
भाजपा राज में चलाये गये सलवा जुडूम जैसे बदनाम सैन्य अभियान में कांग्रेस के शामिल होने का दाग कांग्रेस पर अभी भी लगा हुआ है। कांग्रेस बार-बार सलवा जुडूम के नेता महेंद्र कर्मा की पत्नी को टिकट देकर सलवा जुडूम के लिए अपना समर्थन दर्शाती है और उन्हें शहीद का दर्जा देते हुए झीरम घाटी की रोना रोते हैं। विदित हो सलवा जुडूम के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का बहुत सख्त फैसला आ चुका है। सर्वोच्च न्यायालय ने सलवा जुडूम को संविधान विरोधी तथा मानवता विरोधी अभियान कहा था। उसके बावजूद कांग्रेस ने उसके लिए कभी आदिवासियों से सार्वजनिक माफी नहीं मांगी उल्टे इस तरह के कई छ्द्म अभियानों की शुरूआत हुई है।
इस मामले पर सोनी सोरी ने बातचीत में कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं तो आजाद भारत की भी जेल में रहूंगा। उसी तरह लगता है मैं कांग्रेस सरकार की भी जेल में रहूँगी। वहीं बेला भाटिया ने कहा है कि हमारी पुलिस शिकायत के आधार पर प्राथमिकी ना दर्ज करने के बजाय हम चार महिलाओं सोनी सोरी, हिड़मा मरकाम, पांडे कुंजामी और खुद मेरे खिलाफ मामला दर्ज किया है। जो हास्यास्पद है। 13 सितंबर की रात को गोमियापाल गांव के पोदिया सोरी और लच्छू मंडावी के फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ हमारी मांग है कि अजय तेलम जिन्हें 13 तारीख को गायब कर दिया गया था उसे रिहा किया जाए या अदालत के सामने पेश किया जाए।
हमारे खिलाफ एफआईआर दर्ज करके पुलिस ने प्रतिशोध का रास्ता चुना है। हम पर कुछ सौ लोगों को उकसाने और जुटाने का गलत आरोप लगाया गया है। फर्जी मुठभेड़ों के विरोध में और अवैध पुलिस हिरासत से अजय तेलम की रिहाई को सुरक्षित रखने के लिए किरंदुल थाना में अपनी मर्जी से सभी आदिवासी पहुंचे थे। यह कानून के प्रावधानों के दुरुपयोग और असहमति का एक और उदाहरण है। सरकार को इसे याद रखना चाहिए। नकली मुठभेड़ों के रूप में छोटी छोटी आपराधिक लीपा पोती करना और अहिंसक असंतोष को शांत करना यह समस्या समाधान नहीं बल्कि ठीक उलट समस्या को बढ़ा रहा है। इस तरह के मामले में देखा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को कुंद किया जा रहा है और पुलिस के खिलाफ मामलों में पुलिस को ही न्यायाधीश घोषित किया जा रहा है।