नंदराज के बाद अब मोरगा को बचाने एकजुट होने लगे आदिवासी।
आदिवासियों के आस्था का प्रतीक है मोरगा पहाड़
छत्तीसगढ़ के पहाड़ों पर जैसे आफत आई हुई है, अभी बस्तर के नंदराज पर्वत का मसला खत्म भी नहीं हुआ है कि रायगढ़ जिले के तमनार विकासखंड स्थित मोरगा पहाड़ पर संकट के घने बादल छा गए हैं। कहा जा रहा है कि इस पहाड़ को खोदकर अब सरकार कोयला निकलने की तैयारी की जा रही है। जल्द ही इस पहाड़ को केंद्र सरकार किसी कंपनी के नाम करने वाली है।
*विनय पाण्डे
रायगढ़। तमनार के कई गांव में पर्यावरणविद व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सामाजिक मुद्दों को पहुंचाने वाली सोशल एक्टिविस्ट सविता रथ ने स्थानीय लोगों से मोरगा पहाड़ बचाने एक बैठक ले रही हैं। लोग इस बात पर एकमत हो गए कि आखिर मोरगा पहाड़ बचाना ही चाहिए। मोरगा पहाड़ पर कई सरकारी, गैर-सरकारी कंपनियों की अब नजर है क्योंकि वहां अब पहाड़ खोदकर कोयला खनन किया जाना है।
जरहिडीह, मिलुपारा, कोडकेल के लोगों के साथ सविता रथ ने बैठक कर मोरगा पहाड़ को बचाने का संकल्प दिलाया। मोरगा पहाड़ रियासतकाल के मिलुगढ़ अभी मिलुपारा के राजा मदन सिंह प्रथम द्वारा स्थापित किया गया है।
यह आदिवासियों के आस्था का केंद्र रहा है। जहां आज भी रियासत कालीन ढोल, नगाड़ा आदि विद्यमान हैं। वहां आज भी पहाड़ के ऊपर बने तालाब में स्नान कर बाजे गाजे के साथ पूजा की जाती है। इस पहाड़ के बारे में यह भी आदिवासियों के बीच मिथक है कि इलाके में कोई मुसीबत आने पर पहाड़ पर रखा नगाड़ा खुद बजने लगता है। यह पहाड़ स्थानीय निवासियों के आस्था का केंद्र है। लेकिन तमाम पहाड़ों की तरह अब इस पहाड़ पर भी मुसीबत आन पड़ी है।
पहले ओडिशा के नियमगिरि पहाड़, फिर बस्तर का नंदराज पहाड़ के बाद अब रायगढ़ जिले का मोरगा पहाड़ खनन कम्पनियों के निशाने पर है। नियमगिरि पर्वत बाक्साइड के लिए, नंदराज पर्वत आयरन ओर के लिए बलि चढ़ रहे थे अब मोरगा पहाड़ को कोयला के लिए बलि चढ़ाने की तैयारी चल रही है। हालांकि इस पहाड़ को बचाने के लिए भी आंदोलन की तैयारी शुरू हो गई है। गांव गांव में इसके लिए बैठक शुरू हो गई है। इसी क्रम में आज करीब तीन सौ लोगों ने जरहिडीह में जुटे और अपने आस्था, संस्कृति और धरोहर के प्रतीक मोरगा को बचाने का संकल्प लिया।