कश्मीर में कुछ तो गलत हो रहा है कि दो आईएएस ने अपनी नौकरी कुर्बान कर दी

कश्मीर को लेकर अभी तक दो टॉप रैंक आईएएस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। पहले हैं 2010 बैच के टॉपर शाह फैसल , उन्होंने जनवरी में आईएएस से इस्तीफा देते हुए कहा था कि केंद्र सरकार कश्मीर में 10 हज़ार लोगों के नरसंहार के जिम्मेदार है । वे मौलिक अधिकारों के बहाली के लिए, कश्मीरियत के लिए राजनीति में आये।लेकिन सरकार द्वारा 370 अनुच्छेद खत्म करने के बाद वे अभी वे हिरासत में है,उन्हें नज़रबंद करने के बाद हिरासत केंद्र भेज दिया गया है।उन्हें अपने पिता,बच्चे और पत्नी से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है। दूसरे हैं कल चर्चा में आये केरल के आईएएस गोपीनाथ कन्नन। उन्होंने भी अपने इस्तीफे की वजह कश्मीर में मौलिक अधिकारों के हनन को बताया है। उनकी चार बातें किसी का भी जमीर जिंदा कर सकता है।उन्होंने कहा है कि ‘जब कोई पूछेगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने एक पूरे राज्य पर बैन लगा दिया ,लोगों के मौलिक अधिकार भी छीन लिए,तब आप क्या कर रहे थे।मैं कह सकूंगा कि मैंने विरोध में नौकरी से इस्तीफा दिया था।

दूसरा उन्होंने कहा कि’मुझे नहीं लगता मेरे इस्तीफा से फर्क पड़ेगा। पर सवाल उठेगा कि जब देश इतने कठिन वक़्त से गुज़र रहा था। तब आप क्या कर रहे थे। मैं ये नहीं कहना चाहता कि मैंने छुट्टी ली।और पढ़ने अमेरिका चला गया।बेहतर है कि मैं नौकरी छोड़ दूँ। तीसरा उन्होंने कहा कि’मैंने सिविल सर्विस इसलिए जॉइन किया था कि मैं खामोश किये जा चुके लोगों की आवाज़ बन सकूं। पर यहाँ तो मैंने खुद अपनी आवाज़ खो दी। आखिरी बात जो इस शेरदिल अधिकारी ने कहा कि ‘मैं आज़ाद रहना चाहूंगा। अगर मैं सिर्फ एक दिन के लिए भी जी सकूं, तो भी मैं खुद की पसंद से रहना चाहूंगा।

हम इसे पढ़ रहे हैं,लिख रहे हैं। पर हक़ीकत में यह कितना बड़ा फैसला है यह महसूस वहीं कर सकता है जो एक आईएएस बनने कितने सालों तक मेहनत करता है । 24 घँटे पढ़ाई करता है। फिर आईएएस बनता है। लेकिन इन दो आईएएस ने देश को बता दिया उनकी शिक्षा, उनका पद, आईएसएस का ओहदा तब बेमायने हैं जब देश के एक राज्य के नागरिकों का मौलिक अधिकार छीन लिया जाए।वे इन नागरिकों के तरफ आ गए हैं।बेशक गिनती में दो आईएएस हैं लेकिन इनकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है। ये इस दौर के हीरो हैं, नायक है ।

विक्रम सिंह चौहान

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