कार्पोरेट को छोड़ अब अमीर भी सुरक्षित नही है मोदी के देश में
संजय पराते
■ हमारे एक मराठीभाषी मित्र हैं। सरनेम है पार्लेवार #Parlewar. अपने बैंककर्मी सहयोगी के मकान में किराए से रहते थे। उनकी श्रीमतीजी को सरनेम उच्चारण में बड़ी मुश्किल होती थी और उन्हें हमेशा “पार्ले-जी” कहकर ही बुलाती रही।यह उदाहरण है कि ब्रांड-नेम किस तरह लोगों के दिल-दिमाग में छा जाता है।
■ पार्ले-जी बिस्कुट हम बचपन से ही खाते रहे है। यह हमारा प्रिय बिस्कुट था। शायद कुछ स्वाद के कारण और इससे ज्यादा इसके सस्तेपन के कारण। तब हमारे मां-बाप की औकात नियमित रूप से इससे महंगा खरीदकर खिलाने की नहीं थी। यह गरीब बच्चों का आज भी प्रिय बिस्कुट है। मेरे बेटे आख्यान को भी पार्ले-जी और क्रेकजैक छोड़कर और कोई बिस्कुट पसंद नहीं है।
■ लेकिन खबरें बता रही हैं कि देश में पसरती जा रही मंदी का असर इस बिस्कुट कंपनी पर भी पड़ रहा है। बिस्कुट बिकेगा नहीं, उसके बाजार में सिकुड़न आएगी, तो मजदूर भी काम से निकाले जाएंगे ही। सो, दस हजार मजदूरों के बेरोजगार हो जाने की खबरें आ रही हैं। ये सब गरीब ही होंगे, क्योंकि किसी टाटा-बिड़ला, अडानी-अंबानी, मोदी-शाह, सोनिया-चिदंबरम के बेटे को किसी कारखाने में मजदूरी करने का कोई किस्सा तो इस जिंदगी में मेरे सामने नहीं आया है।
■ ये गरीब मजदूर इसलिए बेरोजगार हो रहे हैं, क्योंकि अपने बच्चों को, और इनके जैसे दूसरे गरीब परिवारों के बच्चे इस सस्ते खाद्य पदार्थ का सेवन करने में असमर्थ है, हालांकि इस खाद्य पदार्थ का निर्माण वे स्वयं करते हैं। ये असमर्थता इसलिए भी है कि जिन कारखानों में ये नियमित रूप से बरसों से काम कर रहे हैं, न्यूनतम मजदूरी तक से वंचित है। यह वंचना और इससे कम होती उनकी क्रय-शक्ति उन्हें फिर बर्बादी और बेरोजगारी की ओर ढकेल रही है।
■ संदेश साफ है। जिन अमीरपरस्त नीतियों को मोदी सरकार लागू कर रही है, उसके कारण मजदूर न्यूनतम वेतन तक से वंचित होकर अपने मानवीय जीवन -यापन की क्षमता भी खो रहे हैं। इससे पसरती मंदी में अपने मुनाफे को बनाये रखने के लिए उद्योगपति मजदूरों को बेरोजगारी की आग में झोंक रहे हैं
■ मजदूर और आम जनता बर्बाद हो जाएंगे, वे बेरोजगारी और भुखमरी की कगार पर धकेल दिए जाएंगे, लाखों लोग इस संकट से त्रस्त होकर आत्महत्या करेंगे, लेकिन इस बर्बादी की कीमत पर भी अमीरों के मुनाफे, उनके ऐशो-आराम की जिंदगी सुरक्षित रहेगी। यही पूंजीवादी विकास है। विकास का यही मॉडल मोदी सरकार इस देश में पिछले 5 सालों से लागू कर रही है, उसके भयानक नतीजे अब दिखने लगे हैं।
■ लेकिन क्या वाकई इस देश के अमीर और उद्योगपति सुरक्षित है? खबरों पर ध्यान दीजिए, कॉरपोरेटों को छोड़ अब अमीर भी कहीं से सुरक्षित नहीं है। यही इस व्यवस्था का संकट है कि इस संकट से निकलने का कोई रास्ता उसके पास नहीं है।