40 हजार बंदियों को जब एक साथ छोड़ा गया था
करीब 40 साल पहले हुसैनारा खातून बनाम बिहार गृह सचिव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. इसमें शीर्ष अदालत ने देश की जेलों में बंद 40 हजार कैदियों को फौरन रिहा करने का आदेश दिया था. इस मामले के बाद से देश में जनहित याचिका यानी पीआईएल का चलन आया. इसके तहत अगर किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है और वो गरीबी या अशिक्षा के कारण कोर्ट में केस नहीं कर सकता है, तो वो पोस्ट कार्ड या चिट्ठी लिखकर सुप्रीम कोर्ट को भेज सकता है.
अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि पोस्ट कार्ड या चिट्ठी लिखने वाले व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है, तो वो इसको पीआईएल मानकर संज्ञान ले सकता है. इस तरह न्याय को आम आदमी के लिए आसान बनाने का श्रेय पूर्व चीफ जस्टिस पीएन भगवती को जाता है. साल 1979 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस भगवती ने हुसैनारा खातून मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि संविधान में सभी को गरिमा के साथ जीवन जीने का मौलिक अधिकार दिया गया है. गरीबी या अशिक्षा के कारण किसी को न्याय से वंचित नहीं रखा जा सकता है.
जब सुप्रीम कोर्ट के सामने हुसैनारा खातून मामला आया, तो वो हैरान करने वाला था. इसमें कहा गया था कि बिहार की जेलों में कई हजार कैदी लंबे समय से बंद हैं. इनके मामले में न चार्जशीट दायर की गई है और न ही ट्रायल शुरू किया गया है. इन कैदियों को जिन अपराधों के आरोप में जेल में डाला गया है, ये उस अपराध के साबित होने पर मिलने वाली सजा से भी ज्यादा समय से जेल में बंद हैं.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को तलब किया था. इस पर बिहार सरकार का कहना था कि ये कैदी न वकील कर पा रहे हैं और न ही जमानत की राशि दे पा रहे हैं, जिसके चलते इनके मामले की सुनवाई आगे नहीं हो पा रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया था. इस मामले में बिहार की जेल में बंद कैदियों की पैरवी एडवोकेट पुष्पा कपिला हिंगोरानी ने की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति को किसी आरोप में गिरफ्तार किया जाता है, तो उसको उस अपराध के लिए निर्धारित सजा से ज्यादा समय तक किसी भी हालत में जेल में बंद नहीं रखा जा सकता है. यदि ऐसा किया जाता है, तो उस व्यक्ति के अनुच्छेद 21 में मिले मौलिक अधिकारों का हनन है. लॉ प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि मौलिक अधिकारों के हनन पर सभी को अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का अधिकार है. इसके अलावा मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का रुख किया जा सकता है.