बाढ़ और नक्सल मोर्चे पर जान की बाजी लगाकर हजारों आदिवासियों की जान बचाने में जुटे हैं स्वास्थ्य कर्मी
लोकेश झाड़ी की रिपोर्ट
बस्तर । बस्तर के बीजापुर में इन दिनों बाढ़ और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पदस्थ स्वास्थ्य महकमे के एक दो नहीं बल्कि 3 दर्जन से अधिक स्वास्थ्य कर्मचारी मौत का सामना करते हुए हजारों आदिवासी जिन्दगीयां बचाने में लगे हुए हैं ।
बीजापुर के उन इलाकों में जहां लोकतंत्र नहीं बल्कि लालतंत्र का है बोलबाला ऐसे दुर्गम इलाकों में अपनी जिन्दगी को दांव पर लगाकर स्वास्थ्य सुविधाएं पंहुचाते हैं । कभी नदी नालों में आए उफनते बाढ को लकडी के बने पतले से नांव में सवार होकर तो कभी पहाडी रास्ते पर कई किलोमीटर पैदल चलकर हजारों आदिवासीयों को मौत के मुंह से बाहर निकालते हैं । जी हां !! बीजापुर जिले में पदस्थ 3 दर्जन से अधिक स्वास्थ्य कर्मचारी आये दिन ऐसी ही मुसीबतों का सामना कर नक्सल प्रभाव वाले इलाके में पहुंचकर स्वास्थ्य सुविधाएं देते हैं। दरअसल बीजापुर का करीब 40 फीसदी इलाका ऐसा है जहां सीधे तौर पर माओवादियों की हुकूमत चलता है। ऐसे में इन इलाकों के वाशिन्दों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना बेहद कठिन होता है। इन इलाकों के आदिवासी जब बीमार पडते हैं तब ये अस्पताल नहीं जा कर गांव में ही जाड-फूंक का सहारा लेते हैं। जिस कारण कईयों दफे छोटी-छोटी बीमारियों की वजह से ये आदिवासी वक्त बेवक्त ही काल के गाल में समा जाते हैं। जिले के अलग अलग इलाकों में पदस्थ 3 दर्जन से अधिक स्वास्थ्य कर्मी ऐसे दुर्गम इलाकों में मौत का सामना करते हुए पहुंचकर जरूरतमंदों का ईलाज कर इन मरीजों को मौत के मुंह से बाहर निकालकर उन्हें एक नई जिंदगी देते हैं। जिले में पदस्थ स्वास्थ्य विभाग के सीएमएचओ बी.आर. पुजारी व डाक्टर पी विजय बताते हैं कि इन इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना बेहद चुनौतिपूर्ण कार्य होता है। मगर जिले में पदस्थ निष्ठावान कर्मचारियों की बदौलत ये काम आसान हो जाता है। वहीं जिले के जनप्रतिनिधियों का भी मानना है कि जिले में पदस्थ स्वास्थ्य कर्मचारी प्रतिकूल परिस्थितियों और विपरीत भौगोलिक विषमताओं के बावजूद ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। जिला पंचायत सदस्य कमलेश कारम का कहना है कि ऐसे निष्ठावान कर्मचारियों की दरकार आज न केवल जिले और प्रदेष को है बल्कि पूरे देष को ऐसे कर्मठ सरकारी कर्मचारियों की दरकार है।
लोकेश झाड़ी