बारिश की अनियमितता और कारण
21वीं शताब्दी के दौर में जिस प्रकार से कई इलाके में बारिश और सूखे के प्रकोप का सामना लोगों को करना पड़ रहा है उसका भविष्य में और बढ़ा भयावह रूप होने की संभावना है।
यह कहना गलत नही होगा कि जिस प्रकार से मानव प्राकृतिक वस्तुओं का दोहन वर्तमान में कर रहा है उसका परिणाम कितना घातक सिद्द होने वाला है यह तो इंसान पर कष्ट पड़ने पर ही पता चलेगा और तभी उन्हें इस प्रकृत का महत्व उनके जीवन में महसूस होगा और तभी वे इस समस्या के लिए सजग होंगे।
सरकार के तमाम कोशिशों के बावजूद वृक्षों की कटाई अंधाधुंध हो रही है जिससे बारिश के पानी मे ठहराव नहीं हो पाता और पानी बहकर सीधे नदी,नालों में चले जाते हैं जिससे सूखे के हालात उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है,ठीक इसी प्रकार पानी के निकास का पूर्ण प्रबंधन न होने पर जलभराव जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे बचने के लिए अभी तक कुछ खास सुधार नहीं हो पाया है।
आज गाँव में एक तरह से आधुनिकता की दौड़ शुरू हो गयी है और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ सी लग गयी है जिसके परिणाम-स्वरूप गाँव पक्के,रेतीले और किसानों के लिए अयोग्य होते जा रहे हैं और साथ में पक्की भूमि हो जाने से,पृथ्वी में, पानी ग्रहण करने की क्षमता नष्ट होती जा रही है जिससे सूखापन और जलभराव की समस्या दिन-प्रतिदिन जगह-जगह बढ़ने लगी है जिससे भारी मात्रा में लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
बारिश की सारणीयता में जिस तीव्रता से परिवर्तन हो रहा है उसी तीव्रता से इस विषय पर ध्यान नहीं दिया गया तो इस संसार का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा,इसलिए सरकार को अब एक ऐसा मॉडल लाने की जरूरत है जो सतत विकास पर आधारित हो ताकि विकास के साथ-साथ अपने प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित और भविष्य के लिए संरक्षित कर सके जिससे प्राकृतिक की अनियमितता ज्यादा-से-ज्यादा दूर हो सके।
–Abhinav tiwari
(Dr.bhim rao ambedkar college)