सत्ता का दोहरा चरित्र
देश भर में एक मुहिम चल रहा है। सरकार अपराध मिटाने के नाम पर नये-नये काले कानून बना रही है। अभी UAPA जिसके बहाने जमकर जनपक्षधरों पर हमले किये जा रहे हैं उसे और मजबूत बनाने के लिए नयी UAPA संशोधन बिल लाने की तैयारी चल रही है।
पुलिस चाहे किसी पर भी शक कर ले, उसे उठा ले और अब तो उसे आतंकवादी भी घोषित कर सकेगी। इन सभीके बहाने सबसे बड़ा शिकार प्रगतिशीलों व जनपक्षधरों को बनाया जा रहा है। नक्सल मुक्त अभिमान के नाम पर मार्क्स, लेनिन, माओ की विचारधारा को सही मायने में मानने वाले लोगों को या सही अर्थों में जनहित में काम करने वाले लोगों को देशद्रोही के रूप में चिन्हित कर उनकी गिरफ्तारी से लेकर कई तरह की धाराएं लगा रही है। समाज में डर का माहौल पैदा किया जा रहा है। जनता की सच्ची हितकर संगठनों पर नक्सल लिंक नाम पर बैन लगाने की मुहिम चलाई जा रही है।
इस बात को बिना बताए कि आख़िर इनके अर्थों में नक्सली कहते किसको है? क्यों मार्क्स, लेनिन, माओ की विचारधारा इन्हें देश के लिए खतरा नजर आती है?( क्योंकि जेलों में बंद लोगों में लेखक, कवि, पत्रकार, वकील जैसे लोग की भरमार है जो न्याय पसंद लोग हैं
…। ) जबकि जर्मन… फासीवाद से प्रेरित फासीवादी संगठन आरएसएस जो अपने हिंसक कृतों के लिए मशहूर है को खुली छूट है। इन्हें छूट है अपनी कट्टर विचारधारा को फैलाने की, बच्चो तक में हिंसक कट्टर भावना पैदा करने की, इसके लिए शाखा चलाने की और समय समय पर अपने कृत को अंजाम देकर बिना किसी कारवाई के फिर से समाज में जहर घोलने की। ये तलवार चला सकते हैं, बंदूक चला सकते है, गाय के नाम पर हिंसा फैला सकते है, मंदिर के नाम पर हिंसा कर सकते है, धर्म के नाम पर उन्माद फैला सकते है, लव जिहाद के बहाने महिलाओं की आजादी पर बैन लगा सकते है, हत्याएँ कर सकते हैं पर ना ही देश के लिए सरकार इन्हें खतरा बताती है , न ही इनके संगठन पर बैन का कोई मुहिम चला रही है । इन्हें अपराध करने की पूरी छूट दे दी गई है। सवाल है आखिर क्यों मार्क्स-लेनिन-माओ की विचारधारा पर इतने पहरे जिसने बंदूक तो दूर डंडा भी नहीं रखा उसे हिंसक गतिविधियों में संलिप्तता के शक के बहाने कैद और क्यों नाजी विचारधारा के हथियारबंद हिन्दू आतंकवादी संगठन को इतनी छूट………। जब इन्हें अपने विचार रखने, फैलाने की आजादी है तो बाकियों को क्यों नही?
~ Ilika Priy