मुम्बई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के लिए महाराष्ट्र के समुद्री इलाकों के 54 हज़ार मैंग्रोव के पेड़ काटे जाएंगे , जिसे फिर से जगाया नही जा सकेगा
विकास का मतलब ही पेड़ों को काटना हो गया है
विक्रम सिंह चौहान
मुम्बई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के लिए महाराष्ट्र के समुद्री इलाकों के 54 हज़ार मैंग्रोव के पेड़ काटे जाएंगे । यह बस शुरुआत है उस कथित विकास का जिसकी कीमत बस कुछ वर्षों बाद पूरा मुम्बई और महाराष्ट्र चुकाने वाला है।एक रिपोर्ट में तो स्वीकार भी किया गया है इससे नवी मुंबई में बाढ़ आ सकता है। मैंग्रोव समुद्र के तटीय इलाकों में खारे पानी में उगने वाले पेड़-पौधे होते हैं। मैंग्रोव धरती और समुद्र के बीच एक बफर की तरह काम करते हैं।
मैंग्रोव की तकरीबन 80 प्रजातियां है। ये पौधे दलदल में उगने वाले होते हैं। जहां ऑक्सीजन की भारी कमी होती है। मैंग्रोव से बाढ़ का बचाव होता है। पर्यावरण के लिए समुद्र के किनारे मैंग्रोव बहुत जरूरी है। सरकार तर्क दे रही है जो प्रत्येक पेड़ काटे जाएंगे उसके एवज़ में हम 5 पौधे लगाएंगे।लेकिन यह झूठ है,प्राकृतिक तौर पर उगे पौधों का विकल्प ही नहीं होता।वह पर्यावास ही नहीं मिलेगा। लेकिन हमारे देश में इसे लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है। इसके उलट ऑस्ट्रेलिया में कोल परियोजना के लिए अडानी का भारी विरोध हुआ।दुर्लभ वृक्षों और सरीसृपों को बचाने के लिए जनमत सर्वेक्षण तक किया गया।
भारत ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित है।वैश्विक स्तर पर इससे निपटने वैज्ञानिकों ने 1000 अरब पेड़ पूरे विश्व में लगाने की सलाह दी है।मतलब लगभग अमेरिका जितना क्षेत्रफल में अगर पौधे लगे तो आशिंक तौर पर जलवायु परिवर्तन से बचा जा सकता है।लेकिन हम इसका उल्टा कर रहे हैं।इस वर्ष भारत के कई शहर गर्मियों में अधिक तपे
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के आंकड़ों के अनुसार भारत उन देशों में है जिनपर जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा प्रभाव पड़ने की आशा है.मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑन टेक्नोलॉजी (MIT) के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दुनिया कार्बन उत्सर्जन को सुझाए गए स्तर तक घटाने में सफल भी हो जाती है तो भी भारत के कुछ हिस्सों में गर्मी इतनी बढ़ जाएगी कि यह इंसानों के इतनी गर्मी में जिंदा रहने की परीक्षा लेगी.लेकिन इन रिपोर्ट्स से वर्तमान सरकार को कोई लेना देना नहीं है,क्योंकि वे तो जंगलों को कटाई के लिए अडानी को देने का मास्टरप्लान बनाया हुआ है।मसलन छत्तीसगढ़ का सुदूर सरगुजा क्षेत्र जहाँ वनों की कटाई शुरू कर दी गई है।एमआईटी का ही एक और रिसर्च कहता है कि भारत के 25 शहर अगले 50 सालों में नष्ट हो जाएंगे।चेन्नई के लिए ये मियाद 20 वर्ष का ही है।
पर्यावरण किसी के लिए मायने नहीं रखता। न मेरे न आपके। अगर होता तो हम सड़क के लिए 100 साल पुराने बरगद,पीपल के कटने का विरोध करते। हमने विकास का मतलब पेड़ो का कटना समझ लिया है। हरियाली का मतलब अब हरी रंगीन पेंट हो गया है।डिवाइडर पर विदेशी पौधे, ज़हरीले कनेर,नकली अशोक के वृक्ष,दमा अस्थमा को बढ़ाने वाला छातिम अब शहरों की शोभा बढ़ा रहा है।नीम पीपल बरगद हमारे दुश्मन थे ही अब इसमें मैंग्रोव भी जुड़ गया है।
* पर्यवारण है तो हम हैं, इसके बिना हम ज़िन्दगी की कल्पना भी नही कर सकते। पर्यावरण की दिशा में हमे एक क्रांति की ज़रूरत है जो लोगो के अंदर जागरूकता पैदा करे। विकसित देशों ने अपने पर्यावरण और जैव विविधता से कभी समझौता नही किया।ऑस्ट्रेलिया में अडानी का विरोध इसका एक उदाहरण है…..।
पर्यावरण बचाओ , ज़िन्दगी बचाओ । ( फेसबुक वाल में विक्रम के इसी महत्व पूर्ण लेख में शादाब अहमद की टिप्पणी ) *