बर्बरता और दरिंदगी के खिलाफ लड़ने की चुनौती
संजय पराते
कठुआ गैंग रेप का फैसला आ गया. अपराधियों को उम्र-कैद की सजा सुनाई गई है. इस केस को साहसिक ढंग से लड़ने के लिए वकील दीपिका राजावत और मुबीन फारूकी को बधाई दी ही जानी चाहिए. उन्होंने अपने पेशे को एक आदर्श के तौर पर स्थापित किया है. वे न झुकीं, न बिकी और पूरी निर्भीकता से भाजपाई सत्ता से संरक्षणप्राप्त बलात्कारियों के खिलाफ तनकर खड़ी रही. अपराधियों का यह गिरोह आज भी उन्हें सबक सीखाने के लिए घृणित हमले करने की धमकी दे रहा है और वह इसका मुकाबला कर रही है. बधाई क्राइम ब्रांच की डीएसपी श्वेतांबरी शर्मा को भी, जिन पर हिन्दू और ब्राह्मण होने का हवाला देकर अपराधियों को बचाने के लिए दबाव डाला गया था, लेकिन बहादुरी से अपने कर्तव्य पर डटी रही. पुरुष वर्चस्ववादी समाज में किसी महिला का अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए लड़ना कितना कठिन होता है!!
◆ पूरे मामले के मास्टरमाइंड सांझी राम ने बलात्कार के बाद हत्या करने की बात स्वीकार कर ली है, जिसके बाद अदालत ने भी उसको अपराधी करार दिया है. रेपिस्टों का यह वही गिरोह है, जिसके पक्ष में बर्बर संघी गिरोह ने उत्तेजनात्मक अभियान चलाया था और इन अपराधियों को फंसाये जाने की बात की थी. हाथ में तिरंगा लेकर और ‘वंदेमातरम’ का जयघोष करते हुए निकले जुलूस में संघी कार्यकर्ताओं और भाजपाई विधायकों-सांसदों ने शिरकत की थी. इन बलात्कारियों को बचाने के लिए सर्वोच्च कानूनी सहायता दिलाने के नाम पर हिन्दू जनता से करोड़ों रुपये वसूले गये, सो अलग.
◆ बहरहाल, निचली अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है और अब ऊपरी अदालत तक, न जाने कितने वर्षों तक, यह मामला चलता रहेगा. इन अपराधियों के समर्थन में संघी गिरोह और भाजपा का अभियान भी चलता रहेगा कि सर्वोच्च अदालत ने अभी उनको दोषी करार नहीं दिया है और निचली अदालत बिक गई थी. उनकी कृपा से शायद ये बलात्कारी जमानत में बाहर भी आ जाये, ताकि वे अपनी अतिरिक्त ऊर्जा और विशेषताओं को संघी गिरोह की सेवा में लगा सके.
◆ इसका मतलब है कि हमारे समाज को बर्बर, असभ्य, अमानवीय और बदतर बनाने का काम चलता रहेगा और पूरे जोर-शोर से चलता रहेगा. धर्म और नाम के आधार पर आसिफा की हकीकत के खिलाफ कभी किसी गुड़िया और कभी किसी ट्विंकल को खड़ा किया जाता रहेगा. एक विवेकहीन समूह चिल्लायेगा कि उन बलात्कारी मुस्लिमों का क्या हुआ और दूसरा बर्बर समूह पूछेगा कि बलात्कारी हिंदुओं को कौन छुएगा!! वे बलात्कार-बलात्कार का खेल खेलते रहेंगे, इस या उस सत्ता के संरक्षण में इन अपराधियों को पनाह भी मिलती रहेगी और बच्चियों और युवतियों और महिलाओं की अस्मिता को कुचला जाता रहेगा.
◆ अब समग्र भारतीय समाज के टूटने-बिखरने का खतरा पहले के किसी भी समय के मुकाबले ज्यादा मौजूं है. इससे बचने का एक ही तरीका है कि विवेकशील-तार्किक ताकतें पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरे और धर्म-आधारित घृणा के खिलाफ, बलात्कार और दरिंदगी को उसकी अमानवीयता के साथ चिन्हित किये जाने के लिए, मध्ययुगीन सामंती मानसिकता के खिलाफ प्रगतिशील-वैज्ञानिक विचारों को स्थापित किये जाने के लिए अभियान चलाए. इस अभियान में दाभोलकर-कलबुर्गी-पानसारे-लंकेश के बाद राम पुनियानी और कई लोग निशाना बन सकते हैं, लेकिन बिना आहुति कोई समाज आगे भी नहीं बढ़ा है. समय की चुनौती भी यही है कि फासिस्ट-बर्बरता के खिलाफ प्रगतिशील-जनवादी ताकतें इस आहुति के लिए सर पर कफन बांधकर आगे आएं.