एडेसमेटा में आदिवासियों के हुए नरसंहार की जांच के आदेश दिए सुप्रीम कोर्ट ने , जांच अधिकारी होंगे प्रदेश कैडर के बाहर के
एडेसमेटा गांव में सुरक्षा बलों ने 17 मई 2013 को बीज उत्सव मना रहे लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर तीन बच्चों सहित आठ लोगों को मार डाला था
रायपुर । सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के एड़समेटा कांड की जांच के निर्देश दिये हैं । इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध समाजसेवी व मानव अधिकार कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान द्वारा घटना स्थल की जांच और तथ्य इकट्ठा कर घटने के एक सप्ताह के भीतर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थी । इसी पर सुनवाई करते हुये आज सुप्रीम कोर्ट ने आठ आदिवासियों की कथित मुठभेड़ में मारे जाने की घटना की राज्य की बाहर की एजेंसी से जांच कराने के निर्देश दिये है ।
माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मामले की सीबीआई जांच हो सकती है व जांच अधिकारी छत्तीसगढ़ काडर से बाहर सीबीआई के ऑफिसर होंगे । राज्य कैडर से बाहर के अधिकारियों की एसआईटी बन सकती है । ध्यान रहे तब प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष स्व नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस खुद विपक्ष में रहते हुये इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करती रहा है ।
गौरतलब है कि 17 मई 2013 को बीजापुर जिले के गंगालूर थाना क्षेत्र के एड़समेटा में पुलिस और नक्सलियों के बीच कथित मुठभेड़ में नौ लोग मारे गए थे । इसमें आठ ग्रामीण और कोबरा बटालियन का एक जवान शामिल था । मारे जाने वालों में 3 बच्चे भी शामिल थे ।
ग्रामीणों का आरोप था कि वे सभी गांव के देवगुड़ी में बीज त्योहार मनाने के लिए शिकार के बाद एकत्र हुए थे। उसी दौरान पुलिस मौके पर पहुंची । इसके बाद पुलिस ने उन पर हमला कर आठ ग्रामीणों को गोलियों से भून दिया ।
इस घटने के बाद स्थानीय अखबारों में प्रकाशित खबरों की जांच के लिए कई जनसंगठनों ने एक फैक्ट फाइंडिंग टीम बनाई गई थी । इस जांच कमेटी में प्राथी डिग्री प्रसाद , ह्यूमन राईट लॉ नेटवर्क के अमरनाथ पांडेय , किशोरनाराण , बीजापुर के पूर्व विधायक राजाराम तोडेम , छमुमो के नकुल साहू , छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के अमन शर्मा , उत्तम नाग , जगह साहू और भावेश कोसा शामिल थे । जांच कमेटी ने पाया कि यह निर्दोष आदिवासियों का सामूहिक नरसंहार है , जो अपना पर्व मनाने इकट्ठा हुए थे । जबकि एक जवान भी पुलिस दल के क्रॉस फायरिंग में मारा गया था।
घटना स्थल से लौटते ही जांच दल की ओर से डिग्री प्रसाद चौहान ने 22 मई को ही स्थानीय पुलिस थाना गंगालूर में खुद इस घटना की प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कराने के दिये आवेदन में इसे आदिवासियों का नरसंहार बताते हुए दोषी लोगों पर हत्या और आदिवासी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत कार्यवाही की मांग की थी ।
प्राथमिक सूचना के अनुसार मारे गए ग्रामीणों में गुडू कारम ( 08 ), पाण्डू कारम (45), कारम बदरू ( 7), जोगा कारम (25), कारम सोमालु (29 ), पूनेम सोनू (40), पूनेम लखमा (15 वर्ष), कारम मासा (17 ) शामिल थे । इस घटना में बड़ी संख्या में ग्रामीणों के लापता होने की भी खबरें आई थी । कहा गया था कि कम से कम 22 गांव वाले लापता हैं ।
राज्य सरकार ने भी कराया था न्यायिक जांच, मुआवजा की भी घोषणा पर पीड़ितों ने नही लिया मुआवजा
इस मुठभेड़ को लेकर शुरु से ही विवाद था. कांग्रेस पार्टी के अलावा मानवाधिकार संगठन भी इस घटना को लेकर आक्रोशित थे । बाद में ग्रामीणों के लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद राज्य सरकार ने जस्टिस व्हीके अग्रवाल की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग भी गठित की थी । इसके अलावा रमन सिंह की सरकार ने मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये की सहायता राशि भी देने के निर्देश दिये थे । तब अजीत जोगी ने तब सवाल उठाये थे कि अगर राज्य सरकार मारे गये गांव वालों को माओवादी मानती है तो उन्हें फिर मुआवजा क्यों दे रही है , इसका मतलब सरकार ने माना कि निर्दोषों की हत्या हुई ।
बस्तर में पिछले अनेक वर्षों में इस तरह की कई सामूहिक नरसंहार , फर्जी मुठभेड़ और सर्चिंग के नाम पर आदिवासियों के साथ अत्याचार की घटनाएं घटी है और यह अब एक सामान्य बात हो चुका है । इन मामलों पर जांच कमेटी भी बनती है , न्यायिक जांच के पुलिंदे धूल खाते पड़े हैं अनेक जांच पेंडिंग पड़े हुए हैं , मानव अधिकार आयोग , आदिवासी आयोग ने भी राज्य सरकार और पुलिस पर उंगली उठाएं हैं , पर आज तक किसी भी दोषी को कटघरे में नही खड़ा किया जा सका है । कई मामलों को सरकार द्वारा नैतिक स्वीकारिक्ति के तहत बस कुछ लाख का मुआवजा दे दिया जाता है । इन अत्याचारों के समर्थकों का कहना है कि इस तरह के मामलों पर कार्यवाही से पुलिस का मनोबल कमजोर होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से उत्साहित मानव अधिकार कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान ने इस मामले पर 6 साल की लंबी कानूनी लड़ाई में साथ देने वाले वाले विद्वान अधिवक्ता कोलीन गोंसाल्वे सहित उनकी पूरी टीम और ह्यूमन राईट लॉ नेटवर्क के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आशा व्यक्त की है कि अब शायद इस घटने की ईमानदारी से जांच होगी और दोषियों को चिन्हित कर दंड प्रक्रिया संहिता के तहत कार्यवाही होगी । उन्होंने इस आदेश को भी बस्तर के अत्याचार प्रभावित आदिवासियों की जीत बतासे हुए आशा व्यक्त की कि अब शायद फोर्स की मनमानी पर कोई असर हो ।
बीजापुर के पूर्व विधायक राजाराम तोडेम ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए अपेक्षा की है कि कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच होने से पीड़ितों को न्याय और दोषी जवानों को सजा मिल सकता है ।
बस्तर में रहकर यहां के आदिवासियों के हक और अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली सोनी सोरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खुशी जाहिर की ,पर उन्होंने पूर्व में हुए कई घटनाओं की सीबीआई जांच पर राज्य सरकार के असहयोग पूर्ण रवैया का जिक्र करते हुए बताया कि जब तक इस तरह की जांच में राज्य सरकार का सहयोग नही रहेगा तो ज्यादा अपेक्षा नही है । उन्होंने ताड़मेटला – तिम्मापुर में 300 घर जलाए जाने की घटना की सीबीआई जांच का उल्लेख करते हुए बताया कि तब तो सीबीआई के अधिकारियों को भी प्रताड़ना झेलना पड़ा था , तो आम आदिवासी इन जांच टीमो तक अपनी बात कैसे रख पाएंगे ?
डिग्री प्रसाद चौहान