माओवादियों ने भीमा मंडावी की हत्या को जनयुद्ध का हिस्सा बताया ,पीयूसीएल ने अनावश्यक हिंसा बता निंदा की
माओवादियों ने विज्ञप्ति जारी कर भाजपा विधायक भीमा मंडावी की हत्या को कथित जन युध्य का हिस्सा बताया। साथ ही केंद्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे “समाधान” को जनता के विरुद्ध युध्द बताते हुए इसे हराने के लक्ष्य के तहत इसे ज़रूरी क़दम भी बताया ।
दक्षिण बस्तर डिविज़न कमेटी के सचिव साई नाथ ने आज जारी विज्ञप्ति में स्वीकार किया कि “पीएलजीए” द्वारा यह हमला किया गया, जिसमे चार अंगरक्षक के साथ भीमा मंडावी मारे गये और चार बंदूकें भी जप्त की। जारी विज्ञप्ति में सरकार द्वारा जनता पर कथित नाजायज़ युद्ध जारी रहने तक ऐसे हमले जारी रखने कि चेतावनी भी दी।
इधर पीयूसीएक कि छत्तीसगढ़ इकाई ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए नक्सलीयों कि इस हरकत को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा मानते हुए इस घटना कि कड़ी निंदद भी कि है। आज जारी विज्ञप्ति में पियूसीएल अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने कहा कि भीमा मंडावी कि हत्या कि ख़बर से लोकतंत्र और अमन पसंद लोगों को गहरा घात पहुचा है। साथ ही किसी भी समस्या को ख़त्म करने के लिये हिंसा एक मात्र विकल्प नहीं है इस बात पर भी जोर दिया है।
छत्तीसगढ़ सहित देश के 91 सीटों पर प्रथम चरण का मतदान शुरू हो चुका है । बस्तर में जबकि नक्सलियों ने आम चुनावों की घोषणा के साथ ही बैनर, पोस्टर और पर्चियों के माध्यम से चुनाव बहिष्कार का फरमान जारी किया है, ऐसी परिस्थितियों में यह रेखांकित करना आवश्यक है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनावी प्रचार के लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सुरक्षा के समुचित प्रबंधन में निर्वाचन आयोग और जिम्मेदार मशीनरी भी विफल साबित हुआ है ।
यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि बस्तर में नक्सलियों के गत तीस से भी अधिक वर्षों के प्रभाव के बावजूद
संसदीय लोकतंत्र अपनी तमाम कमजोरियों, ढेरों विफलताओं और हर तरह की बाधाओं को झेलते हुये आज भी जनता के अपेक्षाओं पर अधिक खरा है ।कारण स्पष्ट है भिन्न राजनीतिक दलों और विचारधारात्मक विविधताओं के मध्य असहमतियों पर परस्पर सहनशीलता संविधान और लोकतंत्र की मूल भावना है ।
पी यू सी एल छत्तीसगढ़ की राज्य इकाई जबावदेह सरकारों और संस्थानों से यह मांग करती है कि पूरी घटना की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्यवाही सुनिश्चित करते हुए संविधान और लोकतंत्र के प्रति लापरवाह तंत्र को दुरुस्त किया जावे । साथ ही संघर्ष क्षेत्र में अतिवादी- चरमपंथी ताक़तों को ताक़ीद करती है कि ऐसी घटनाओं के कारित होने से अंततः निरीह आदिवासी जनता ही उत्पीड़ित होगी ।