प्रगतिशील पत्रिका के सम्पादक को खुला पत्र : उदय Che
प्रिय,
सम्पादक महोदय,
मै लम्बे समय से आपकी पत्रिका पढ़ता आ रहा हूँ। आपको बहुत बार सेमिनार में बोलते सुना भी हैं। आपकी एक बुक भी पढ़ने का मौका मुझे मिला था जो साम्प्रदायिकता के खिलाफ थी। मेरी नजर में आप एक प्रगतिशील लेखक हो। दलित मुद्दों पर भी आप अच्छा लिखते रहे हो। जब किसी मेरे साथी ने मुझे पहली बार आपकी पत्रिका की एक कॉपी दी और जब मुझे पता लगा की इस पत्रिका के सम्पादक आप हो तो दिल को बहुत ख़ुशी हुई क्योकि हरियाणा में प्रगतिशील पत्रिकाएं बहुत ही कम निकलती है। कहा जाये की इस मामले में हरियाणा की भूमि बंजर है तो ये अतिश्योक्ति नही होगी। वहाँ ऐसा कदम ख़ुशी देता है।
आपकी पत्रिका ने बहुत हद तक प्रगतिशलता के पैमाने को बनाये भी रखा। साम्प्रदायिकता के खिलाफ, दलित, महिला, मजदूर, किसान उत्पीड़न के खिलाफ व् मजदूर-किसान की समस्याओं को पत्रिका ने बैखुबी उठाया है।
लेकिन आपकी पत्रिका ने ऐसे लेखों को भी जगह दी है जो प्रगतशीलता के एकदम विपरीत है।
पिछला अंक जो स्पेशल हरियाणा के 50 साल पूरे होने पर निकाला गया। उसमे हरियाणा के प्रत्येक क्षेत्र खेती से लेकर मजदूर-किसान-महिला के बारे में, आजादी के आंदोलन के बारे, खेल के बारे में लेख प्रकाशित किये गए। वही एक लेख “हरियाणा की शख्सियत” के नाम से प्रकाशित किया गया। जो सेठ (चौधरी) छाजूराम के बारे में था। लेख के अनुसार चौधरी छाजूराम के जीवन के संघर्ष को बताते हुए उसको बहुत बड़ा दानवीर बताया गया और हद तो तब हो गयी जब बड़े ही शातिराना ढंग से मनगढ़त कहानी बना कर उसको देशभक्त साबित किया गया।
लेख में बताया गया कि जब भगत सिंह सांडर्स को मारने के बाद दुर्गा भाभी के साथ लाहौर से कलकत्ता पहुँचे तो उनको चौधरी छाजूराम ने अपनी कोठी पर शरण दी। उन्होंने भगत सिंह को ढाई महीने अपनी कोठी पर रखा।
लेकिन सच्चाई इसके एकदम विपरित है।
भगत सिंह जब सांडर्स को मारने के बाद लाहौर से कलकत्ता गये तो चौधरी छाजूराम की कोठी पर वो सिर्फ 4 से 5 दिन रुके।
उन दिनों भगत सिंह के ग्रुप की साथी “शुशीला दीदी” छाजूराम के बच्चों को ट्यूशन बढ़ाती थी और रहने के लिए उनको कोठी में एक कमरा मिला हुआ था। सांडर्स वध के बाद पार्टी की गुप्त योजना के तहत दुर्गा भाभी उसका बेटा शची और भगत सिंह अंग्रेज फैमिली के भेष में, राजगरु इनके नोकर और चंद्रशेखर आजाद बाबा के भेष में पुलिस की कड़ी निगरानी से बचते हुए लाहौर से कलकत्ता के लिए रवाना हुए।
शुशीला दीदी ने छाजूराम की पत्नी से कहा कि मेरे रिश्तेदार कलकत्ता घूमने आ रहे है क्या मैं उनको कुछ दिन मेरे पास ठहरा सकती हूँ। छाजूराम की पत्नी ने उनको इजाजत दे दी। भगत सिंह 4 से 5 दिन वहाँ ठहरे। उसके बाद पार्टी के साथियों ने बड़े ही गुप्त तरीके से उनके रहने का प्रबंध “आर्य समाज मंदिर” में कर दिया। उस समय पार्टी के चुनिंदा कामरेड्स के अलावा किसी को भी नही मालूम था की भगत सिंह कलकत्ता में है। ये पूरी घटना भगत सिंह के साथी कामरेड शिव वर्मा, यशपाल ने विस्तार से लिखी है। प्रो. चमन लाल जिन्होंने भगत सिंह पर शोध किया है उन्होंने भी इस मनगढ़त कहानी को कोरा झूठ बताया है। चौधरी छाजूराम के परिवार को शुशीला दीदी के बारे में भी ये जानकारी नही थी की ये गुप्त क्रांतिकारी है।
ये झूठी मनगढ़त कहानी मै एक खास समुदाय के लोगों से लम्बे समय से सुनता आ रहा हूँ। भिवानी (हरियाणा) में एक चौक पर चौधरी छाजूराम की स्टेचू लगी हुई है वहाँ भी ये झूठी कहानी लिखी हुई है।
लेकिन आपकी प्रगतिशील पत्रिका ने जब इस झूठी कहानी को प्रकाशित किया। तो मैं अंदर से हील गया। क्योकि आज पुरे देश में कुछ लोग उन लोगो को महान बनाना चाहते है, देशभक्त क्रांतिकारी साबित करना चाहते है जिन्होंने उस समय अंग्रेजो का साथ दिया, क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाई दी, जेल में माफीनामे दिए या उस समय के बहुत बड़े सामन्त थे।
ऐसे लोगो की लिस्ट बहुत ही लम्बी है। जिनको या तो सम्मान मिल चुका है या मिलने के लिए प्रयास किये जा रहे है। चौधरी छाजूराम भी ऐसी ही सख्सियत थे जो बहुत बड़े सामंत, पूंजीपति और अंग्रेजभक्त भी थे। आज उनको भी ये सम्मान मिल जाये उसके लिए उसके समुदाय से सम्बंधित कुछ लोग ऐसी झूठी कहानियां बना रहे है।
लेकिन क्या आज क्रान्तिकारियो के वारिसों की ये जिम्मेदारी नही बनती की इस झूठ से पर्दा उठाया जाए, ऐसे मानवता विरोधी लोगो को रोका ही नही जाये बल्कि उनको मुँहतोड़ जवाब दिया जाये।
आजादी की लड़ाई न सिर्फ अंग्रेजो के साम्राज्यवाद के खिलाफ थी बल्की सामन्तवाद के खिलाफ, ब्राह्मणवाद के खिलाफ भी थी। आजादी की लड़ाई में क्रान्तिकारियो का नारा था “मिल मजदूर की और जमीन जोतने वाले की”
इंक़लाब जिंदाबाद जो क्रान्तिकारियो का मुख्य नारा था। उसकी व्याख्या शहीद-ऐ-आजम भगत सिंह और उसके कामरेड साथियों ने अदालत में बड़े ही विस्तार से पेश की है। इंक़लाब एक आवाज है शोषण के खिलाफ, इंक़लाब एक आवाज है प्रत्येक लूट के खिलाफ, इंक़लाब आवाज है साम्राज्यवाद के खिलाफ, इंक़लाब आवाज है साम्प्रदायिकता, जातिवाद, रूढ़िवाद के खिलाफ, इंक़लाब आवाज है मजदूर-किसान-महिला मुक्ति के लिये
चौधरी छाजूराम जिसके हजार एकड़ से ज्यादा जमीन थी। जो 16 लाख रूपये कम्पनियों के शेयर से कमाता था। जिसकी 40 मिलियन सम्पति थी। इनके पास कलकत्ता में 21 और हरियाणा के हांसी शहर के गांव अलखपुरा और शेखपुरा में 1-1 महलनुमा कोठीया थी। जिनकी कीमत उस समय में करोड़ो रूपये थी।
चौधरी छाजूराम के हजारों लोग मुजारे थे। उस समय स्वतंत्र जमीन का मालिक अंग्रेज सरकार को 5 रूपये सालाना लगान देता था लेकिन छाजूराम का मुजारा इनको 20 रूपये लगान देता था। मतलब 4 गुना ज्यादा लगान देना पड़ता था।
अंग्रेज सरकार ने अपने सत्ता के अंग प्रत्येक गांव में नम्बरदार, जेलदार के रूप में बैठाए हुए थे इसी प्रकार इन सामन्तों ने भी अपने नंबरदार और जेलदार अलग से बैठाए हुए थे। किसानों और मुजारों के सामने आंतक का दूसरा नाम नम्बरदार और जेलदार होते थे। स्वतंत्र किसान के हालात मुजारे के मुकाबले बेहतर थे लेकिन मुजारे की जिंदगी बहुत ज्यादा तखलिफ देह थी। वही मुजारे में दलित मुजारे की जिंदगी और भी ज्यादा दयनीय और पीड़ादायक थी। दलित को हर रोज नम्बरदार के घर हाजिरी देनी होती थी उसके यहाँ बेगार करनी होती थी। अगर उसको गांव से कही बाहर कोई काम से या किसी रिश्तेदारी में जाना होता तो नम्बरदार या जेलदार से मिन्नते करके जाने की इजाजत लेनी पड़ती थी। ऐसे ही स्वर्ण मुजारे को ये सब सामन्त के यहाँ करना पड़ता था।
चौधरी छाजूराम ने अलग-अलग संस्थाओं को चन्दा दिया, धर्मशाला, कुँए भी बनवाये। लेकिन क्या हम सबको ये नही मालूम की पूंजी सिर्फ मेहनतकश का शोषण करके ही इकठ्ठी की जाती है। दास मालिक से सामंत और पूँजीपति सभी कालों में मालिक मेहनतकश का शोषण करता है। मेहनतकश की मेहनत के मूल्य को लूटता है। मेहनतकश को बरगलाए रखने के लिए वो लूटी हुई पूंजी का बहुत ही छोटा हिस्सा चंदे (टुकड़े) के रूप में वापिस देता है। ताकि मेहनतकश आवाम की आँखों पर पर्दा पड़ा रहे वो मालिक को बहुत अच्छा मानता रहे और मालिक की लूट का विरोध न करे।
ब्रिटेन के राज को यहाँ सुचारू चलवाये रखने में उस समय के राजा, सामन्त, नंबरदार, जेलदार और पूंजीपति, तन-मन-धन से अंग्रेज सरकार की मद्त करते थे।
वही चौधरी छाजूराम ने पहले विश्व युद्ध में अंग्रेज सरकार की 1 लाख 40 हजार रूपये देखर बड़ी मद्दत की थी।*1
प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेज सरकार को हिसार जिले में मद्त करने वाले (दानी) व्यक्तियों की सूची*2
क्र. स. व्यक्ति का नाम राशि रु. में
1. सेठ सुख लाल, करनानी (सिरसा) 1000000
2. मैं. रामनारायण, जयलाल (भिवानी)
559750
3. ला. तारा चंद ( भिवानी)
540250
4. ला. जगन नाथ (भल)
141100
5. चौधरी छाजूराम (अलखपुरा)
140000
6. चौधरी शेर सिंह (हांसी)
135000
7. ला. रघुनाथ सहाय (हांसी)
115000
8. ला. राम सहाय राम सुख का परिवार (सिरसा)
106000
9. ला. बल्लू राम (हेतमपुरा)
104000
10. मैं. नरसिंह दास, भूरामल (भिवानी)
102000
1947 में देश को ब्रिटेन से आजादी मिल गयी। “डॉ भीम राव अम्बेडकर” के नेतृत्व में सविधान लिखा गया। उसमे भूमि बंटवारे का भी कानून बना। सामन्तशाही खत्म होने का प्रावधान किया गया। भूमि जोतने वाले की, का प्रावधान किया गया। जगह-जगह मुजारों ने जमीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। जिन सामन्तों ने मुजारों के कब्जो का विरोध किया किसानों ने ऐसे हजारों सामंतों को मौत के घाट उतार दिया।
चौधरी छाजूराम 1943 में मरने तक एक सामंत रहे। भूमि बंटवारे के समय उसके वारिसों और मुजारों के बीच खुनी जंग हुई। जिसमें उनके वारिसों की तरफ से एक शख्स मारा गया तो मुजारों की तरफ से भी एक योद्धा किसान “नत्थू गुर्जर” शहीद हुआ। उसके बाद इनके वारिसों ने मुजारों से बड़े ही शातिराना ढंग से एक समझौता किया कि एक एकड़ जमीन की कीमत लगभग 285 रुपये लगभग रखी गयी। जिसको 20 किश्तों में किसानों को अदा करना था। समझौते के बाद इनके वारिसों ने उस हजारो एकड़ जमीन जो अब किसानों की हो गयी थी से एक-एक पेड़ को कटवा लिया गया।
शहीदों की चिताओं पर लेंगेगें हर वर्ष मेले।।
वतन पर मिटने वालो का ये ही बाकि निशाँ होगा।।
ये वो लाइनें है जो हम बच्चपन से सुनते आ रहे है। जब भी कोई देशभक्ति कार्यक्रम हो शहीदों को याद करते हुए ये लाइनें जरूर दोहराई जाती रही है। लेकिन पिछले कुछ सालों से जैसे-जैसे देश की आजादी के साल गुजरते गये वैसे-वैसे ये लाइनें भी फीकी पड़ती गयी।
बड़े ही शातिराना तरीके से आज कुछ लोग और कुछ पार्टियां इतिहास को बदलने पर तुली हुई है।
लेकिन हम ऐसे शातिर लोगो का और ऐसे झूठ का जवाब देंगे।
UDey Che
सन्दर्भ:
1. & 2.
K. C. Yadav – हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति
मनोहर प्रकाशक दिल्ली, 1992
पृ. सं. – 188