अगले दिन सुर्खियां थीं नक्सल कैम्प ध्वस्त डिप्टी कमांडर गिरफ्तार :अनिल मिश्रा
बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार अनिल मिश्रा के अनुभवों का दस्तावेज : जीवंत कहानियों की नजर से देखिये बस्तर
भागो यहाँ से। ये गेट बन्द कर जल्दी। कोई नहीं आएगा। साहब चीखते रहे। उन्होंने मीडिया को पहचानने से इनकार कर दिया। पत्रकार आहत और ठगे खड़े रह गए। जिनसे रोज की मुलाक़ात उनका यह रवैया समझ से परे था।
उस थाने से 20 किलोमीटर दूर जंगल में मुठभेड़ हुई थी। सूचना जिला मुख्यालय तक पहुंची और पत्रकार बाइक लेकर स्पॉट के लिए रवाना हो गए।
जल्दी चलो। हो सकता है लाइव इनकाउंटर देखने को मिल जाए। एक रोमांच के नशे में बोला।
चल बे। वहां तक जाने कौन देगा। दूसरे ने अनुभव सामने रखा। बातों बातों में वे उस थाने तक पहुंच गए जिसकी जद में स्पॉट आता था। मुठभेड़ का घटनास्थल।
गाँव में कोई हलचल नहीं थी। यह इधर रोजमर्रा की बात है। इनकाउंटर क्या। गोली बर्बाद कर रहे होंगे। सरकार थोक में फोकट देती है। चलाओ जब मर्जी करे। उस पान दूकान वाले से सिगरेट का पैकेट देते हुए निश्चिन्तता से एक्सपर्ट व्यू रखा।
अरे नहीं। बड़ा एम्बुश था। बता रहे हैं कई मरे हैं। एक मीडिया वाले ने कहा। उसके झोले में वीडियो कैमरा था पर वह रास्ते भर इस चिंता में डूबा रहा कि बैटरी खत्म है।
सर सर। वह जोर जोर से हाथ हिलाकर एसडीओपी को बुलाता रहा। पर साहब उन्हें नहीं सन्तरी को फटकारते रहे। बन्द कर। बन्द कर। किसी को घुसने मत देना।
सन्तरी ने सबको ठेलकर बाहर किया और गेट बन्द कर दिया।
थाने के सामने 20 मीटर दूर एक चाय की दूकान थी। उसकी पटरियों पर इन्हें पनाह मिली। सामने से इनकाउंटर स्थल की ओर से पुलिस की बख्तरबन्द गाड़ियां एक के बाद एक पहुंचती रहीं और थाने के कम्पाउंड में जगह जगह नक्सली डम्प बर्तन कपड़े कंडोम दवाइयाँ उतरता रहा।
अब मरा तो चुके ही हैं भजिया खा लेते हैं। एक ने प्रस्ताव रखा। वो खुद को बड़ा इंटेलेक्चुअल समझता। बाकी चूतिये। गाँव के पत्रकार। सोचता इनकी वजह से अफसर ऐसे दुर्व्यवहार कर पाते हैं। इस पिछड़े नक्सल इलाके में अगर मीडिया मीडिया होती तो क्या उनकी मजाल थी कि ऐसे दुत्कार पाते।
वे निराश बैठे रहे। सब नाराज थे।
बेकार इत्ती दूर आये। ये विज्ञप्ति तो देते ही।
एसपी भी अंदर है।
पता नहीं कितने मरे हैं।
चलो चाय पीकर लौट चलते हैं। ये जो बयान भेजेंगे छाप लेंगे।
इसीलिए मैं बोलता हूँ। इनकी बजाना ही है।
वो एसडीओपी साला पहचान ही नहीं रहा।
थोड़ी देर और इंतज़ार करते हैं।
सब खामोश हो गए। थाने की बगल लहलहाते धान के खेत और पीछे घना जंगल। दाईं ओर बैलाडीला के पहाड़ माइनिंग के लिए किये जा रहे ब्लास्ट से रहरहकर थर्रा उठते।
20 मिनट। गाड़ियों की आमद बन्द हो गयी। नक्सल साहित्य और सामग्री क्लासीफाइड ढंग से कम्पाउंड में सजा दी गई। कम्पाउंड में एन बीचोबीच एक बड़ी टेबल के इर्दगिर्द 10 प्लास्टिक की कुर्सियां लगाई गईं। ड्राईफ्रूट बिस्किट पानी की बोतलें और काफी।
एक जवान को उस चाय के टपरे पर हरकारा बनाकर भेजा गया।
सर आप लोग को बुला रहे।
सजी हुई टेबल पर एप्पल के टुकड़ों के साथ प्रेस कांफ्रेंस शुरू हुई।
२ काजू के टुकड़ों पर खत्म।
इंटेलिजेंस इनपुट था। हमने दो टीम बनाई। सुबह 4 बजे रवाना हुए जवान। 9 बजे जंगल में उनका सन्तरी दिखा।
लो लो। बिस्किट लो। एसपी साहब विनम्र अफसर। बेहतर मेजबान।
नहीं। ब्लास्ट नहीं हुआ।
20 के लगभग थे। कैम्प था। सामान काफी मिला है।
कुछ घायल भी हुए। वो उन्हें खीचकर ले गए। स्पॉट पर काफी खून था।
नहीं। अपनी ओर कोई नुकसान नहीं हुआ है।
एक पकड़ में आया है। बड़ा आदमी है। डिप्टी कमांडर।
कहाँ है सर। एक साथ कई स्वर।
हमें मिलाइये।
अरे नहीं। नहीं। उससे अभी पूछताछ हो रही। अभी नहीं। साहब ने टालना चाहा।
नहीं सर। इतनी दूर आये हैं तो मिलके ही जाएंगे। उसने बैग में रखा कैमरा टटोला। लाइव का युग है।
अरे बैठो तो सही।
टेबल के एक कोने में खड़ा थानेदार अंदर भागा।
काफी सर्व हुई।
रिकवरी लिखो। साहब ने एक कागज खोला।
नक्सल वर्दी। जूते। साहित्य। बैटरी और फ्लैशगन। वायर। टिफिन। महिलाओं के अंतर्वस्त्र। दवाइयाँ और कंडोम।
देख रहे हो। साले बनते कामरेड हैं और महिलाओं का शोषण। इसको जरूर लिखो। साहब पूरे रौ में थे।
एसडीओपी ने उनके कान में कुछ कहा।
एक सिपाही उन्हें जिंदा नक्सली से मिलाने ले चला। थानेदार के कक्ष की बगल से नीम अँधेरे से गुजरता ठंडा गलियारा और उसके सिरे पर सीखचों के पार से फूटती बल्ब की पीली रौशनी।
वह बदहवास था। श्यामवर्ण। ठिगना। लम्बे बालों वाला। लगभग 55 साल का आदिवासी। महुए के नशे में धुत। वो तो खड़ा भी नहीं हो पा रहा था।
क्या नाम है तुम्हारा।
कहाँ से आया है।
क्या पुलिस वाले मारे।
जवाब नदारद।
उसकी लम्बाई से बड़ी काले रंग की वर्दी। सर पर बेढब सी टोपी जिसपर एक स्टार बना था। रेड स्टार। भूमिगत क्रांतिकारी सेना का सिपाही।
वे बाहर निकले तो साहब जा चुके थे। एसडीओपी ने सबसे हाथ मिलाया।
रास्ते में एक जगह वे नोट्स एक्सचेंज करने और उत्सर्जन के इरादे से रुके।
वर्दी तो तभी पहनाये जब अपन मिलने की जिद किये। वो बोला जो खुद को होशियार समझता था।
हाँ। साइज की नहीं थी।
करना क्या है।
अपन तो भैया इसमें नहीं पड़ेंगे। एक ने निर्णय दिया।
तो सब वही।
डन।
अगले दिन सुर्खियां थीं। नक्सल कैम्प ध्वस्त। डिप्टी कमांडर गिरफ्तार।
समाप्त।
अनिल मिश्रा 14 अक्टूबर।