कांकेर की अलवर में फंसी आदिवासी युवतियों का मामला माकपा का आरोप : भाजपा ने दर्द दिया, तो कांग्रेस भी दवा से कर रही इंकार
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने आज एक बहुत ही संवेदनशील और सनसनीखेज प्रकरण उजागर किया है, जिसमें कांकेर जिले की 19 से 24 वर्ष की 28 युवतियों के कोरोना संकट के कारण राजस्थान के अलवर में फंसे होने की पुष्ट जानकारी देते हुए आरोप लगाया है कि इसी तरह 3000 से अधिक आदिवासी युवा व युवतियां पूरे देश के विभिन्न राज्यों में फंसे पड़े हैं, जिन्हें भाजपा सरकार ने बिना किसी नियंत्रण, नियमन व शर्तों के प्राइवेट कंपनियों को बंधुआ मजदूरी के लिए सौंप दिया था। अब कांग्रेस सरकार भी उनकी घर वापसी की सुध नहीं ले रही है।
अपने आरोप की पुष्टि में माकपा ने एक ऑडियो व एक वीडियो रिकॉर्डिंग भी जारी किया है। वीडियो रिकॉर्डिंग में यह बच्चियां भूपेश सरकार से हाथ जोड़कर घर वापसी का इंतजाम करने के लिए प्रार्थना कर रही है। ऑडियो रिकॉर्डिंग माकपा राज्य सचिव संजय पराते से बातचीत का है, जिसमें इन लड़कियों ने अपनी हालत का बयान किया है, जिससे दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत किए गए एक बड़ी साजिश व फर्जीवाड़े की परत खुलती नजर आती है।
माकपा सचिव संजय पराते ने आज पत्रकारों को बताया कि भाजपा सरकार के समय दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत ग्रामीण आदिवासी बच्चों को रोजगार का प्रशिक्षण देने और उसके बाद न्यूनतम वेतन से अधिक पर काम देने की योजना बनाई गई थी और इस योजना के लिए केंद्र सरकार से फंड प्राप्त किया गया। यह प्रशिक्षण क्वेस कॉर्प लिमिटेड और अन्य प्राइवेट एजेंसियों के जरिए करवाया गया था। कांकेर जिले में यह प्रशिक्षण लाइवलीहुड कॉलेज में किया गया था। क्वेस कॉर्प लिमिटेड का ऑफिस अवंती विहार, रायपुर में है। प्रशिक्षण देने वाली इन कंपनियों ने इन आदिवासी युवाओं को सरकार की पूरी जानकारी में आउटसोर्सिंग के नाम पर कई प्राइवेट कंपनियों की गुलामी के लिए सौंप दिया, जो इन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं देती। इन प्राइवेट कंपनियों के लिए इन आदिवासी बच्चों से काम करवाने के लिए कोई नियम-शर्ते भी तय नहीं किए गए।
ऑडियो रिकॉर्डिंग से पता चलता है कि यह आदिवासी बच्चियां बहुत ही बुरी हालत में रह रही है और इन्हें महज आठ-नौ हजार रुपये देकर काम करवाया जा रहा हैं। इन्हीं पैसों से वे अलवर में किराए के मकान में रहते हैं, अपने लिए भोजन का प्रबंध करते हैं और बचाकर अपने घरों की आर्थिक मदद भी करते हैं। वर्ष 2017 में कांकेर के लाइवलीहुड कॉलेज से अलवर में भेजी गई इन युवतियों के वेतन में आज तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और लॉक डाऊन अवधि के दौरान मार्च से अभी तक उन्हें वेतन के रूप में फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है। क्वेस कॉर्प इन्हें 50% वेतन मिलने की बात कह रहा है, जबकि इस कंपनी के छत्तीसगढ़ प्रमुख अरुण राव को केवल 30% वेतन ही मिल रहा है।
माकपा सचिव पराते ने इस मामले को उजागर करते हुए और क्वेस कॉर्प कंपनी के अधिकारियों के साथ हुई बातचीत के हवाले से आरोप लगाया है कि पूरे प्रदेश से इस तरह प्राइवेट कंपनियों की बंधुआ चाकरी के लिए सुनियोजित रूप से सौंपे गये आदिवासी बच्चों में से 3000 से ज्यादा बच्चे आज भी कोरोना संकट के कारण अलग-अलग राज्यों में फंसे पड़े हैं और जिन्हें सुरक्षित ढंग से वापस लाने की सुध कांग्रेस सरकार भी नहीं ले रही है। माकपा नेता ने घर वापसी के इंतज़ाम के लिए हाथ जोड़कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से प्रार्थना करते हुए इन युवतियों का एक वीडियो भी जारी किया है। इसके साथ ही माकपा ने आज अलवर में फंसे कांकेर जिले के 37 लोगों में से 20 युवतियों की सूची जारी की है, जो घर वापसी के लिए पंजीयन कराने के बाद भी अभी तक इस इंतजार में बैठी है कि उनकी वापसी का कोई इंतजाम सरकार करेगी।
उन्होंने कहा कि पूरा मामला लॉकडाउन के कारण उजागर हुआ है। लॉकडाउन में फंसे इन आदिवासी बच्चों को वापस भेजने की कोई पहल इन प्राइवेट कंपनियों ने नहीं की है। क्वेस कॉर्प का कहना है कि यह जिम्मेदारी सरकार की है और सरकार को उन्होंने सूचित कर दिया है। राजस्थान सरकार उन्हें जाने की अनुमति नहीं दे रही है और छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें लाने की पहल नहीं कर रही है, तो वे क्या करें? माकपा का आरोप है कि वैसे तो दर्द भाजपा ने दिया है, लेकिन अब कांग्रेस भी उन्हें राहत की दवा देने के लिए तैयार नहीं है।
माकपा नेता पराते ने अलवर में फंसे बच्चों सहित अन्य राज्यों में फंसे 3000 से ज्यादा आदिवासी युवाओं को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार सुरक्षित ढंग से वापस लाने की मांग की है। इस संबंध में तथ्यों और ऑडियो-वीडियो सहित मुख्यमंत्री को एक पत्र भी उन्होंने लिखा है, जिसे उन्होंने मीडिया के लिए जारी किया है। पत्र में यह भी मांग की गई है कि उजागर हुए मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए ग्रामीण कौशल योजना के नाम पर आदिवासियों के साथ की गई धोखाधड़ी और उन्हें बंधुआ चाकरी में धकेलने की जांच कराई जाए और दोषियों को दंडित किया जाए।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल को माकपा राज्य सचिव द्वारा लिखा गया पत्र इस प्रकार है :
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
छत्तीसगढ़ राज्य समिति
नूरानी चौक, राजातालाब, रायपुर, छग
प्रति,
मुख्यमंत्री
छत्तीसगढ़ शासन,
नया रायपुर
विषय : अलवर में फंसी कांकेर की आदिवासी युवतियों को वापस लाने और ग्रामीण कौशल योजना की आड़ में आदिवासियों के साथ की गई धोखाधड़ी की जांच बाबत।
माननीय महोदय,
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से मैं आपका ध्यान निम्न तथ्यों की ओर आकर्षित करना चाहता हूं :
- पिछली भाजपा सरकार के समय राज्य में दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना चलाई गई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीणों को रोजगार के लिए प्रशिक्षित कर न्यूनतम वेतन या अधिक पर उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करना था। इस योजना के संचालन के लिए फंड केंद्र सरकार से दिया गया है।
- यह प्रशिक्षण क्वेस कॉर्प लिमिटेड और अन्य प्राइवेट एजेंसियों के जरिए करवाया गया था। वर्ष 2017 में कांकेर जिले में यह प्रशिक्षण लाइवलीहुड कॉलेज में किया गया था। क्वेस कॉर्प लिमिटेड का ऑफिस अवंती विहार, रायपुर में है। प्रशिक्षण देने वाली इन कंपनियों ने इन आदिवासी युवा एवं युवतियों को सरकार की पूरी जानकारी में आउटसोर्सिंग के नाम पर दूसरे राज्यों की कई प्राइवेट कंपनियों की गुलामी के लिए सौंप दिया है, जो इन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं देती। इन प्राइवेट कंपनियों के लिए इन आदिवासी बच्चों से काम करवाने के लिए कोई नियम-शर्ते भी तय नहीं किए गए हैं।
- कांकेर जिले से भी कई आदिवासी युवा-युवतियों को राजस्थान के अलवर में कई प्राइवेट कंपनियों में काम करने के लिए प्रशिक्षण के बाद भेजा गया है। केंद्र सरकार द्वारा अनियोजित लॉक डाऊन के कारण अभी तक वे वहां फंसे पड़े है। फिलहाल माकपा के पास 28 आदिवासी युवतियों (जिनमें से अधिकांश की आयु 19-24 वर्ष के बीच है) और 9 युवाओं की सूची है, जो वहां फंसे है। इनमें से 20 आदिवासी युवतियों ने छत्तीसगढ़ आने के लिए अपना पंजीयन भी कराया हुआ है।पता चला है कि पूरे देश के विभिन्न राज्यों में 3000 से ज्यादा आदिवासी युवा, जो निश्चित ही प्रवासी मजदूरों की श्रेणी में गिने जाएंगे, फंसे हुए हैं। इन युवाओं के बारे में सरकार आसानी से पता कर सकती है।
- इन आदिवासी लड़कियों के साथ टेलीफोनिक बातचीत से पता चला कि ये आदिवासी बच्चियां बहुत ही बुरी हालत में रह रही है और इन्हें महज आठ-नौ हजार रुपये देकर काम करवाया जा रहा हैं। इन्हीं पैसों से वे अलवर में किराए के मकान में रहते हैं, अपने लिए भोजन का प्रबंध करते हैं और बचाकर अपने घरों की आर्थिक मदद भी करते हैं। वर्ष 2017 में कांकेर के लाइवलीहुड कॉलेज से अलवर में भेजी गई इन युवतियों के वेतन में आज तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और लॉक डाऊन अवधि के दौरान मार्च से अभी तक उन्हें वेतन के रूप में फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है। निश्चित ही, ये परिस्थितियां बताती हैं कि भाजपा सरकार ने बिना किसी नियंत्रण, नियमन व शर्तों के ऐसी प्राइवेट कंपनियों को इन आदिवासी बच्चों को बंधुआ चाकरी के लिए सौंप दिया था।
इन लड़कियों के साथ बातचीत का रिकॉर्ड संलग्न है। - अलवर में फंसे आदिवासी युवा-युवतियों सहित विभिन्न राज्यों में इस तरह फंसे हुए सभी युवाओं को सुरक्षित ढंग से वापस लाने की जिम्मेदारी सरकार की है, जिसके निर्देश भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिए हैं।
- माकपा को आशा है कि इस विशेष मामले का तत्काल संज्ञान लेकर कांकेर जिले के इन 37 आदिवासी युवाओं की सुरक्षित ढंग से घर वापसी कराने के लिए आप उचित कदम उठाएंगे। इन आदिवासी लड़कियों द्वारा आपसे घर वापसी कराने के लिए, करबद्ध प्रार्थना का वीडियो भी संलग्न है।
- इसी तरह अन्य राज्यों में फंसे पड़े युवाओं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी और लड़कियां हैं, की पतासाजी कर उन्हें वापस लाया जाए, जिनकी संख्या 3000 से ऊपर बताई जा रही है। बिना किसी नियंत्रण, नियमन व शर्तों के ग्रामीण युवाओं को न्यूनतम वेतन से भी कम मजदूरी पर बाहरी राज्यों में कार्यरत प्राइवेट कंपनियों को सौंपना आदिवासियों के साथ एक बड़ी धोखाधड़ी और साजिश की ओर इशारा करता है।
- माकपा को आशा है कि आदिवासी मामलों के प्रति विशेष रूप से संवेदना रखने वाले मुख्यमंत्री के रूप में और अलवर प्रकरण से उजागर हुए तथ्यों की संवेदनशीलता को देखते हुए पिछले भाजपा राज में ग्रामीण कौशल योजना के नाम पर आदिवासियों के साथ की गई धोखाधड़ी और उन्हें बंधुआ चाकरी में धकेलने की जांच कराई जाएगी और दोषियों को दंडित किया जाएगा।
इस संवेदनशील आदिवासी मामले में सकारात्मक कार्यवाही की आशा के साथ – संजय पराते