“खाड़ी के देश और भारतीय मुस्लिम” —
कोरोना संकट से विश्व व्यवस्था में बड़े बदलावों की सुगबुगाहट हो रही है । इस परिप्रेक्ष में भारतीय मुसलमानों की स्थिति और भारत पर इसके संभावित प्रभावों को देखना समीचीन है । हालाँकि ,भारत में लम्बे समय से साम्प्रदायिक दंगे होते रहे हैं जिसमें लाखों लोग ( दोनों धर्मों के) प्रभावित हुए हैं उसके वाबजूद वैश्विक स्तर पर भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर बहुत अधिक चिंता व्यक्त नहीं की जाति रही है लेकिन 2014 के बाद जिस तरह से मुस्लिमों के प्रति केंद्र सरकार व आरएसएस प्रायोजित नफरत का एजेंडा चलाया जा रहा था उससे न केवल देश के अंदर बड़ी बैचेनी हो रही है बल्कि इसका असर अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जा रहा है । हाल में जिस तरह खाड़ी देशों ने भारत में इस्लामोफोबिया पर कड़ी आपत्ति जताई है उसके फलस्वरूप भारतीय विदेश मंत्री व विदेश मंत्रालय को इन देशों से तुरन्त बात करनी पड़ी है । इसका परिणाम हमें मोदी सरकार के रुख में आये कुछ परिवर्तन के रूप में देखने को मिल रहा है । मोदीजी ने न केवल कोरोना को किसी जाति, धर्म , नश्ल मजहब से जोड़े जाने के खिलाफ ट्वीट किया बल्कि ईद पर मुसलमानों से अधिक इबादत करने की अपील भी की । यह मोदी जी के कट्टर हिंदुत्ववादी चरित्र से अलग चरित्र है । इसके अलावा नफरत फैलाने वाले लोगों के खिलाफ भी पुलिस द्वारा त्वरित कार्यवाही की जा रही है । बीजेपी के विधायक द्वारा मुसलमानों का बहिष्कार करने की अपील का संज्ञान बीजेपी अध्ययक्ष ने लिया है और उनके खिलाफ कार्यवाही किये जाने की बात की है जो आश्चर्यचकित करने वाली घटना है जबकि बीजेपी समर्थक व नेता निरन्तर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं । यह सब अप्रत्याशित है । इसका कारण यह नहीं कि इन लोगों का हृदय परिवर्तन हो चुका है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की हो रही आलोचना के असर के कारण यह परिवर्तन हो रहा है । इसका अर्थ है भारतीय कूटनीतिज्ञ इसके परिणामों को समझ रहे हैं । धार्मिक आजादी पर नजर रखने वाली अमेरिकी एजेंसी USCIRF ने इस बार की अपनी रिपोर्ट में भारत को उन 14 देशों की लिस्ट में रखा है जहाँ अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न लगातार बढ़ रहे हैं । 2004 के बाद भारत को इस सूची में पहली बार रखा गया है जब गुजरात दंगों के कारण भारत को इस सूची में रखा गया था । मोदी सरकार द्वारा कश्मीर से अनुच्छेद 370 , 35 A को हटाने, CAA व NRC लाने के कारण अल्पसंख्यकों पर बड़े प्रभाव पड़ने का उल्लेख इस रिपोर्ट में किया गया है । इसके अतिरक्त मानव अधिकारों पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस विषय में चिंता व्यक्त की है । कोरोना के प्रभाव से विश्व सहित अमेरिका पर बड़े प्रभाव पड़ने के आसार हैं । ट्रम्प का अगला चुनाव जीतना मुश्किल लग रहा है और ऐसा लगता है कि अमेरिका लम्बे समय तक अब विश्व का दरोगा बने रहने की स्थिति में नहीं रहेगा । मिडिल ईस्ट के देशों का रुख अब चीन व रूस की ओर हो रहा है । सऊदी अरब अपने देश में नागरिक अधिकारों के मामले में सुधार कर रहा है जिसकी पश्चमी देश निरन्तर आलोचना करते थे । यदि सभी मुस्लिम देश एक मजबूत गठजोड़ बनाने में कामयाब होते हैं तो इसका असर न केवल विश्व व्यवस्था पर पड़ेगा बल्कि विश्व भर के मुसलमानों की स्थिति पर भी इसका असर पड़ना लाजिमी है ।
अनेक मुस्लिम विद्वान व कूटनीतिज्ञ लम्बे समय से विश्व भर में मुसलमानों के उत्पीड़न पर चिंता ही व्यक्त नहीं कर रहे हैं बल्कि इस्लामिक देशों के मजबूत गठजोड़ बनाये जाने पर बल भी दे रहे हैं । 1923 ईसवी में ( पश्चिमी देशों UK, फ़्रांस के दबाव पर ) तुर्की द्वारा खलीफा के पद को समाप्त करने से मुस्लिम देशों में एकता बनाये रखने का राजनीतिक आधार खत्म किया गया था । अमेरिका व पश्चमी देशों द्वारा मुस्लिम देशों में पाए जाने वाले पेट्रोलियम पदार्थों के कारण निरन्तर हस्तक्षेप किया जाता रहा है । इस्लामिक चरमपंथ का आविष्कार भी पश्चिमी देशों मुख्यतया अमेरिका द्वरा ही किया गया जिस कारण मुसलमानों को टारगेट करना आसान हो गया है । किसी भी वस्तु, स्थान व समुदाय पर अत्यधिक दबाव डालने पर परिवर्तन अवश्यंभावी होता है , सँभवतः इस्लामिक देशों में इसका आरंभ हो चुका है । चीन, रूस , ईरान सहित मध्य पूर्व के देश एक गुट बना पाते हैं , जिसकी संभावना व्यक्त की जा रही है तो यह नई विश्व व्यवस्था को बनाने में महती भूमिका निभा सकता है । ईरान व सऊदी सहित अन्य इस्लामिक देश आपसी रिश्ते सुधारने में सहमत हो सकते हैं । खाड़ी के देश काफी संपन्न हैं तो ईरान व पाकिस्तान टेक्नोलॉजी में इनसे आगे हैं । रूस व चीन के साथ गठबंधन बनने पर ये देश सैन्य तकनीकी में बड़ी छलांग लगा सकते हैं । ईरान द्वारा सैन्य मिसाइल का सफल प्रक्षेपण व परमाणु परीक्षण की तैयारी को भी इस परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए । भारत पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ना तय है । भारत के संबन्ध पाकिस्तान को छोड़कर सभी इस्लामिक देशों के साथ गहरे व मजबूत रहे हैं । आरएसएस , बीजेपी व अन्य कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों के अतिरिक्त अन्य सभी दल व अधिसंख्य हिन्दू धर्मनिरपेक्ष रहे हैं । सदियों तक एक साथ रहने से दोनों धर्म के लोगों के बीच सांस्कृतिक रूप से बहुत अधिक समानता है । भारत को अनावश्यक मुस्लिम विरोध व इस्लामोफोबिया का बड़ा नुकसान हो सकता है न केवल व्यापार व आर्थिक स्तर पर बल्कि सामरिक व कूटनीतिक स्तर पर भी । दुबई में बीआर शेट्टी के व्यापारिक साम्राज्य पर की गई कार्यवाही व सौरभ भारद्वाज जैसे नौकरीपेशा लोगों पर कार्यवाही इसका आरंभ मात्र है । हमारे देश के लोगों को यह समझना चाहिए कि वर्तमान दौर किसी धर्म, समुदाय व जाति के खिलाफ नफरत का नहीं है । विश्व आज चरमपंथ को स्वीकार नहीं करता । अमेरिका पर अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता । वह देश अपने हितों के लिए देशों को बर्बाद कर देता है । पहले यहाँ भी हिंदुत्ववादियों को चरमपंथी बनाएगा उसके बाद इन चरमपंथी हिंदुओं को आतंकवादी बताकर कार्यवाही करेगा व अपना सैन्य अड्डा भारत में स्थापित करेगा ।
इस नई विश्व व्यवस्था में इस्लामिक देश इतना तो मजबूत हो ही जायेंगे कि वे विभिन्न देशों में मुस्लिम हितों की रक्षा कर सकें , चाहे म्यांमार में हो या चीन व रूस में । रोहिंग्या, उइगर व चेचेन्या में ये देश किसी समझौते तक पहुंच सकते हैं । कश्मीर पर भी इसका असर अवश्य पड़ेगा ।
हम निरन्तर सरकार से मांग करते रहे हैं कि वह भारत की सामासिक संस्कृति को ध्यान में रखकर कार्य करे । भारत का संविधान धर्म निरपेक्ष राष्ट्र का निर्माण करता है , उसी के अनुपालन में भारत की एकता , अखण्डता और सार्वभौमिकता सुरक्षित रह सकती है । कट्टरपंथ व कट्टरपंथी कभी भी देश का भला नहीं कर सकते ।
कमल कुमार