संविधान मौन हुआ। शासक मुंह जोर है।।

आज की कविता : 1

संविधान मौन हुआ।
शासक मुंह जोर है।।

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ये लिंचिंग का दौर है।
नृशंसता का ठौर है।।

करता है कत्ल कोई।
कातिल कोई और है।।

शिकायत करें किससे।
जब राजा ही चोर है।

अपराधी सभासद हैं।
तो हत्यारा महापौर है।।

चाल चरित बगुले का।
शिकार पर ही जोर है।।

माली हालत खस्ता है।
उधार पे टिकी कौर है।।

गिरगिट भी चकित है।
रंग रोगन चहुं ओर है।।

कानून लंगड़ा लूला है।
और न्याय बिन डोर है।।

विकास नंगा दौड़ रहा।
वाह वाह का शोर है।।

चीर हरण आम हुआ।
काली घटा घनघोर है।।

सत्य भी पराजित है।
झूठा ही सिरमौर है।।

संविधान मौन हुआ।
शासक मुंह जोर है।।

=——इजराईल खान-=

आज की कविता : 2

भारत माता की…जय….

सब के सब हो जाएंगे बरी
जिसने मारा रामदीन को
जिसने मारा अलादीन को
जिसने मारा कमला को भी
जिसने मारा सलमा को भी

सब के सब हो जाएंगे बरी
जिसने मारा ईमानों को
जिसने मारा खलिहानों को
जिसने मारा कुल्हाड़ी को
जिसने मारा घर-बाड़ी को

सब के सब हो जाएंगे बरी
जिसने मारा बच्चा-बच्चा
जिसने मारा गेंहू कच्चा
जिसने मारा रिक्शा-ठेला
जिसने मारा गांव का मेला

सब के सब हो जाएंगे बरी
जिसने मारा ज़िंदा ख़ून
जिसने मारा था क़ानून
जिसने मारा पुलिस का थाना
जिसने मारा कवि दीवाना

सब के सब हो जाएंगे बरी
जिसने मारा दुकानों को
जिसने मारा अनजानों को
जिसने मारा स्कूलों को
जिसने मारा था फूलों को

सब के सब हो जाएंगे बरी
जिसने मारा वोट-चुनाव
जिसने मारी व्यास-चिनाव
जिसने मारे लाखों लोग
जिसने मारा सुख और सोग

सब के सब हो जाएंगे बरी
जिसने मारा भाईचारा
जिसने मारा मुल्क़ हमारा
आंखों का सब आब हमारा
जिसने मारा ख़्वाब हमारा

सब के सब हो जाएंगे बरी
15 अगस्त, 26 जनवरी
सारे पद, सारी कैटेगरी
सब के सब हो जाएंगे बरी

भारत माता की…जय….

  • मयंक सक्सेना

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