14 साल या अधिक आजीवन कारावास काट चुके कैदियों की रिहाई का मामला, हाईकोर्ट अधिवक्ता अमरनाथ पाण्डे की जनहित याचिका पर आया ऐतिहासिक फैसला
बिलासपुर। प्रदेश के जेलों में 14 वर्ष या उससे अधिक की आजीवन कारावास की सजा काट चुके कैदियों के मामले में दायर जनहित याचिका पर ऐतिहासिक फैसला देते हैं हाईकोर्ट ने कहा है कि आजीवन कारावास की सजा पूरी कर चुके कैदियों की रिहाई के प्रकरणों पर विचार एवं निर्णय के लिए छत्तीसगढ़ जेल नियम 1968 के तहत गठित प्रिजन रिव्यू बोर्ड की साल में दो बैठक होनी अनिवार्य है। इस बैठक में दो साल पहले नामंजूर किए गए प्रकरणों पर भी विचार किया जा सकता है। एक्टिंग चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने कहा कि क्रिमिनल कोर्ट के पीठासीन जज अपना अभिमत देने के अधिकार का प्रयोग औपचारिक तरीके से नहीं करेंगे।
अमरनाथ पाण्डेय ने एडवोकेट रजनी सोरेन के जरिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका प्रस्तुत कर बताया था कि प्रदेश की जेलों में आजीवन कारावास के तहत सजा काट रहे कई कैदी 14 साल की सजा पूरी होने के बाद भी रिहा नहीं किए गए हैं। हाईकोर्ट ने पिछले साल बिलासपुर, रायपुर, अंबिकापुर, दुर्ग और जगदलपुर जेल की स्थिति पर संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिवों को संबंधित जेलों में लीगल एड कौंसिल, पैरालीगल वालंटियर के साथ निरीक्षण करने के बाद राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव के जरिए रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा एडवोकेट सुनील ओटवानी के जरिए विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत कर जानकारी दी गई थी कि 234 कैदी उम्र कैद की सजा पूरी करने के बाद भी जेलों में हैं। अक्टूबर 2018 में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 6 सप्ताह के भीतर गाइड लाइन तय कर प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। वहीं राज्य शासन की तरफ से बताया गया कि 2017 से लेकर 2019 तक कुल 411 कैदियों की रिहाई की गई है। इसमें रायपुर केंद्रीय जेल के 131, दुर्ग के 26, बिलासपुर के 112, अंबिकापुर के 92 और जगदलपुर के 50 कैदी शामिल हैं। साथ ही बताया गया कि 25 फरवरी 2019 की स्थिति में 67 प्रकरण राज्य शासन के समक्ष विचाराधीन है। हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2019 को सुनवाई पूरी होने के बाद निर्णय सुरक्षित रखा था। जिसका ऐतिहासिक फैसला आज आया है । जिससे प्रदेश के जेलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों को बड़ी राहत मिली है।