भारत के पहले लोकपाल जस्टिस पीसी घोष बन गए हैं
भारत के पहले लोकपाल जस्टिस पीसी घोष
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष देश के पहले लोकपाल बन गए हैं. राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी की गई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने उनके नाम की सिफ़ारिश की थी.
समिति के सदस्य और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बैठक में भाग नहीं लिया था.
आईए जानते हैं कि कौन हैं देश के पहले लोकपाल बने जस्टिस पीसी घोष
1952 में जन्मे जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (पीसी घोष) जस्टिस शंभू चंद्र घोष के बेटे हैं. उन्होंने अपनी क़ानून संबंधी पढ़ाई कोलकाता से ही की. साल 1997 में वे कलकत्ता हाईकोर्ट में जज बने.
दिसंबर 2012 में वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. इस पद पर रहते हुए उन्होंने एआईएडीएमके की पूर्व सचिव ससिकला को भ्रष्टाचार के एक मामले में सज़ा सुनाई.
8 मार्च 2013 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर उनकी पदोन्नति हुई.
इसके बाद 27 मई 2017 को वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद से रिटायर हुए. जस्टिस घोष ने अपने सुप्रीम कोर्ट कार्यकाल के दौरान कई अहम फ़ैसले दिये.
सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद जस्टिस घोष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से जुड़ गए थे.
सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए जस्टिस राधाकृष्णन की बेंच में उन्होंने फ़ैसला सुनाया था कि जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की प्रथाएं पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का उल्लंघन हैं.
जस्टिस आरएफ़ नरीमन के साथ, उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में शामिल बीजेपी नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और अन्य के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश के आरोप तय करने के लिए ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिये थे.
लोकपाल बेंच में एक अध्यक्ष के अलावा सात और सदस्य होंगे, जिनमें से 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य और 50 प्रतिशत एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिलाओं से होने चाहिए.