रूढ़ी परम्पराओं के साथ ४६ परगानों देवी देवताओं ने मनाया भादों मेला
महामारी के नाश के लिए ग्रामीणों ने पेन पुरखों से माँगी आशीर्वाद
प्रकाश ठाकुर
कांकेर:- बस्तर अपनी अनूठी परम्पराओं कला संस्कृति और रहन सहन के लिए पुरी दुनिया में मशहूर है….जहाँ बस्तर के प्राकृति प्रेमी आदिवासियों के देवी देवताओं भी ख़ास महत्व रखते है जिसके बगैर बस्तर की कल्पना ही अधूरी है…बस्तर के देवी देवता या पेन पुरखा आदिवासियों के लिए बड़े ही मायने रखते है जो सादियों से उनका आस्था का केंद्र बने हुए है, लेकिन इस बार वैश्विक महामारी कोरोना ने आदिवासियों के उन देवी देवताओं को भी अपने गिरफ्त में ले लिया । जिनसे वे अपने व अपने नये फसलों सहित मवेशियों के लिए सलामती की दुआ मांगते है ।
आस्था का केंद्र कहे जाने वाले बस्तर में अक्सर आदिवासियों के देवी देवताओं का अदभुत रूप बड़ी आसनी से अक्सर देखने को मिल जाते है, जो अन्य लोग के आकर्षण का केंद्र होता है । बस्तर के आदिवासी सदियों से अपने घर परिवार की खुशहाली खेत खलिहान मवेशियों की खैरियत के लिए इसी तरह अपने देवी देवताओं को अपने अनोखे अंदाज में पूजते आ रहे है । रियासत काल से बस्तर में चली आ रही देव मेला का आयोजन होता है जहां रूढ़ि परंपरा का आज भी निर्वहन बस्तर में किया जाता है ।
इसी कड़ी में नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के आदिवासी बाहुल आमाबेडा क्षेत्र में भी देवी देवताओं का भादों मेला बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया इस मेले में तकरीबन ४६ परगना के देवी देवताओं ने शिरकत कर गाँव की खुशहाली के लिए अपना आशीर्वाद प्रदान किया जो क्षेत्र में भादों मेला के नाम से प्रख्यात है…..भादों मेले के बाद ही बस्तर के आदिवासी समुदाय को उनके देवी देवताओं से नवाखाई पर्व मानने की अनुमति देते है जिसमे नये फसल को ग्रहण करने का हक आदिवासीयों को होता है इस बार नवाखाई का पर्व २७ अगस्त को आदिवासी समुदाय मनायेगा ।
भादों माह में मनाये जाने वाले देव मेला के विषय पर पुजारी,सदस्य,ग्रामीण बताते है की इस मेले का आयोजन का मुख्य मकसद संकटों का नाश करना होता है जिसमे वे अपने घर परिवार गाँव घर की खुशहाली, नये फसलों के कीटों के नाश तथा अपने मवेशियों को बारिश में होने वाले महामारी से बचाव के लिए इस मेले का आयोजन करते है ।
बस्तर में माडिया मुरिया,गोंड,धुव्रआ,हल्बा,भतरा,दोरला रियायत काल से इस परब को मनाते आते रहे है । यह मेला अमावस्या के अंधेरे में भादों मास में आयोजित किया जाता है जिसमे आमाबेड़ा क्षेत्र के ४६ परगनाओं के सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है जिसमे प्रमुख रूप से दंतेश्वरी माता, कुंवारी माता शीलता माता सहित आदिवासियों के अन्य देवी देवताओं का मेले में समागम होता है १५ दिनों पहले ही इस मेले का न्योता क्षेत्र के सभी देवी देवताओं को भिजवाया जाता है जिसके बाद देवी देवता इस मेले में शिरकत करते है । जहाँ ४६ गाँवों से तेल हल्दी मंगवाया जाता है और सभी देवता भंगाराम देवगुडी में एकत्रित हो पूजा आर्चना कर परम्परिक वाद्ययंत्रों की धुन पर झूमते हुए गाँवों की परिक्रमा करते है और तमाम परगनों से आये तेल हल्दी को गाँवों से बाहर विदा कर संकटों के नाश के दुआ माँगी जाती है ।
इस समय पुरे दुनिया के लिए महामारी का सबब बन चुका कोरोना ने आदिवासियों के देवी देवताओं को भी प्रभावित किया है जिसके चलते कोंडागांव क्षेत्र देवी देवता इस मेले में शिरकत नहीं सके फिर भी आमाबेड़ा के देवी देवता झमाझम बारिश के बावजूद इस मेले पहुचे जहां क्षेत्र के ग्रामीण भी हर्षोल्लास के साथ इस मेले में शामिल होकर महामारी जल्द से जल्द खत्म होने की दुआ मांगी गई सदियों से बस्तर की अनूठी परम्पराएं अपने अनोखेपन के लिए दुनिया में मशहूर है यहा की कला संस्कृति रहन-सहन की अलग ही पहचान है जो बस्तर को सबसे अलग पहचान देती है । जिनमें बस्तर के देवी देवता या पेन पुरखे भी महत्वपूर्ण है । आदिवासी आज भी अपने सलामती के लिए उन परम्पराओं का निर्वहन कर रहे जो रियायत काल से चला रहा है । जिन चीजों को अन्य लोगों अपने दैनिक जीवन के उपयोगो में इस्तेमाल करते है उन्ही चीजों से आदिवासी समुदाय अपने देवी देवताओं को अर्पण कर पुरे समाज की खुशहाली की दुआ मांगते है ।
प्रकाश ठाकुर