छत्तीसगढ़ : क्वारंटाइन सेंटर, भ्रष्टाचार और मौतें


(आलेख : संजय पराते)

जब मैं यह रिपोर्ट लिख रहा हूं, 3 गर्भवती माताओं और 4 बच्चों सहित एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है छत्तीसगढ़ के क्वारंटाइन सेंटरों में। इनमें से कुछ लोगों की सांप के डंसने से, तो खाना गले में फंसने से भी कुछ लोगों की मौत हुई है। साफ है कि इन अभागों और हतभागों को समय पर इलाज की सुविधा भी नहीं मिली! दो लोगों ने इन क्वारंटाइन सेंटरों की बदइंतजामी से परेशान होकर आत्महत्याएं भी की है और दसियों लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए यहां से भागना बेहतर समझा है। इन केंद्रों में ठूंसे गए प्रवासी मजदूरों को कोरोना का कम, भूख से मरने का डर ज्यादा सता रहा है।

लेकिन सरकार सक्रिय है। वह प्रशासन को प्रवासी मजदूरों की देखभाल के सख्त निर्देश दे रही है। प्रशासन के अधिकारी भी मस्त है। वह इन निर्देशों के पालन में इन प्रवासी मजदूरों को सोने के लिए सड़ी दरी दे रहे हैं, पौष्टिक भोजन के रूप में खराब बदबूदार खाना तथा रोज दोनों समय आलू-प्याज की पानीदार सब्जी दे रहे हैं। दाल के नाम पर पीला पानी पिला रहे हैं और यह सब प्लेटों की जगह अखबारी कागजों में परोसा जा रहा है। पनीली दाल फर्शों पर बहकर मिट्टी में मिल रही है और गले हुए अखबार के मिट्टी सने टुकड़ों के साथ खाना पेट में उतारने के लिए मजदूर मजबूर है। तस्वीरें भी यही कहानी बयां कर रही है। यह तस्वीर पत्रकार प्रफुल्ल ठाकुर के सौजन्य से कवर्धा जिले के सहसपुर लोहारा की आई है। प्रदेश के रसूखदार मंत्री मोहम्मद अकबर इसी जिले से ही ताल्लुक रखते हैं।

यहां तक कि अधिकारी लिखित आदेश दे रहे हैं कि जिन मजदूरों के नाम राशन कार्ड पर चढ़े हैं, उन्हें भोजन न दिया जाए और वह अपना खाना घर से मंगवाने के लिए बाध्य हैं। महासमुंद जिले के पिथौरा जनपद पंचायत के कार्यपालन अधिकारी ने अपने आदेश की कंडिका-4 में ऐसे ही निर्देश पंचायत को दिए हैं, जिसकी प्रति मुझे दलित-आदिवासी मंच की नेता राजिम केतवास से मिली है। साफ है कि सरकार प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश दे रही है, कलेक्टर जिला पंचायत और जनपद पंचायत के अधिकारियों को आदेश दे रहे हैं, पंचायत अधिकारी सरपंचों को आदेश दे रहे हैं और ग्राम पंचायतों के पास क्वारंटाइन केंद्रों में रहने वाले मजदूरों की व्यवस्था करने के लिए कुछ भी नहीं हैं। वे इन मजदूरों को घर से खाना मंगवाने के लिए बाध्य कर रहे हैं। कोविड-19 के प्रोटोकाल और फिजिकल डिस्टेंसिंग को बनाए रखने की चिंता किसी को नहीं है। चिंता यही है कि कोई मजदूर कहीं भूख से न मर जाये, जिसके लिए उसे सख्त निर्देश दिए गए हैं। अन्य कारणों से मजदूर मरते हैं तो उनकी बला से!

इसी प्रकार मुंगेली जिले की लोरमी में स्थित एक धर्मशाला को क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाकर भेड़-बकरियों की तरह आंध्र प्रदेश के 45 प्रवासी मजदूरों को बंद कर दिया गया है और उन्हें अछूतों की तरह गेट के बाहर से खाने के पैकेट दिए जा रहे हैं। खाने की गुणवत्ता बहुत खराब है और एक दिन इतनी खराब थी कि मजदूरों ने सड़ा, बदबूदार खाना खाने से ही इंकार कर दिया। इस मामले की तस्वीर दबंग न्यूज़ के माध्यम से सामने आई है। मामला सामने आने के बाद अपने कुकर्म और नाकामियों को छिपाने के लिए अब इन अधिकारियों ने मजदूरों पर ही आरोप लगा दिया है कि वह खाने में दारू-मुर्गा की मांग कर रहे हैं। कितना हास्यास्पद और अमानवीय है यह सब!

उल्लेखनीय है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ के 19216 क्वारंटाइन सेंटरों में 203581 प्रवासी मजदूरों को रखा गया हैं। राज्य सरकार का तो दावा है कि 7 लाख लोगों को क्वारंटाइन में रखने की उसकी क्षमता है और इसका प्रबंध भी कर लिया गया है, लेकिन 2 लाख लोगों को भी वह ठीक से नहीं रख पा रही है।

आज भी छत्तीसगढ़ के तीन लाख से ज्यादा पंजीकृत व गैर पंजीकृत मजदूरों की वापसी नहीं हुई है। वे अब सरकारी बसों या ट्रेनों के इंतजार में थकने के बाद सड़कों को नाप रहे हैं। वे भूखे हैं, प्यासे हैं, बीमार हैं। लेकिन सरकारी घोषणाएं उन्हें राहत देने के लिए जमीन पर उतर नहीं रही हैं। क्वारंटाइन सेंटरों में भी वे अमानवीय व्यवहार के शिकार हो रहे हैं। उनका कोरोना टेस्ट तक नहीं हो रहा है। उन्हें किसी डॉक्टर का सहारा तभी मिलता है, जब उनसे उनमें कोरोना वायरस के सभी लक्षण पैदा हो जाए। इससे पहले इलाज की मांग करना भी उनके लिए गुनाह है।

बदइंतजामी के इसी आलम के कारण एक मजदूर की कोरोना वायरस से मौत हो चुकी है और बीमारों की संख्या 500 छूने जा रही है। सक्रिय मामले अभी भी 400 से ऊपर है। जो बीमार ठीक हो चुके हैं, उन पर यह वायरस फिर से हमला कर रहा है। जो छत्तीसगढ़ लगभग संक्रमण मुक्त था, अब वह राज्य “संक्रमित छत्तीसगढ़” में बदल रहा है।

मुख्यमंत्री राहत कोष में लगभग 70 करोड़ रुपये जमा है। यह सब पैसे दानदाता संस्थाओं, कर्मचारी संगठनों और उदारमना लोगों ने इस आशय से दिए थे कि अपने प्रशासनिक ताकत के बल पर इस दान का सरकार सदुपयोग करेगी। लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लग रही है। प्रवासी मजदूरों को राहत और क्वारंटाइन केंद्रों के इंतजाम की आड़ में सरकारी संरक्षण में ही जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। ऊपर उल्लेखित तीनों मामलों में किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही न होने से इसी बात को बल मिलता है।

(लेखक संजय पराते छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!