अघोषित युद्ध के बीच फंसे जवानों और आदिवासियों के बीच के फासले कुछ ऐसे होंगे दूर

बीजापुर से मुकेश चंद्राकर की मार्मिक रिपोर्ट

बस्तर में सुरक्षाबल के जवानों की स्थिति को समझने के लिए इससे बेहतर कोई दूसरा वीडियो मैंने तो आज तक नही देखा। इस वीडियो के दो पहलुओं को समझने से पहले पूरे वाकये को समझना होगा।

कोबरा 204 बटालियन के जवानों को गश्त सर्चिंग के दौरान बीजापुर के बासागुड़ा थानाक्षेत्र के बुडगीचेरु के एक घर मे ट्रेक्टर से गिरकर घायल हुआ एक युवक मिला। इस युवक व इनके परिजनों के पास यह व्यवस्था नही थी कि उसे अस्पताल ले जा सकें ।इलाज़ के लिए इस युवक को अस्पताल पहुंचाना ज़रूरी था । सो जवानों ने चारपाई यानी कि, देशी एम्बुलेंस में नवतप्पा की झुलसती गर्मी में घायल युवक को अपने कंधे पर लादकर पूरे 5 कि. मी. का सफर तय किया, और उसे अस्पताल पहुंचाया। अब घायल की स्थिति सामान्य बनी हुई है ।
वीडियो में आप देख रहे होंगे कि, जवान उस घायल युवक को अस्पताल पहुंचाने के लिए एक झोपड़ीनुमा घर से चारपाई निकाल रहे हैं। रोते बिलखते परिजन जवानों को मना कर रहे हैं। एक 6 साल की बच्ची (शायद घायल की बेटी) भी रोते हुए जवानों से अकेले ही लड़ रही है। मतलब साफ है, कि ग्रामीणों को जवानों पर बिल्कुल भी विश्वास नही है। घायल युवक के परिजनों को जवानों की मंशा पर संदेह हो रहा है। परिजनों के मन में जवानों के प्रति खौफ है। जवानों के प्रति अविश्वास है, कि कहीं जवान उस घायल का एनकाउंटर न कर दें या उसे जेल में न ठूंस दें। इस तरह की की कई घटनाएं हुई भी है । यह सब बस्तर के लिए सामान्य बातें हो गयी है । पर इस बीच कुछ इस तरह के मंजर भी होते हैं , संवेदना और प्रेम व सहयोग की भावनाओं से लबरेज भी जवान होते हैं । तो दूसरी तरफ जवानों की मंशा बिल्कुल साफ है। जवान अपनी ड्यूटी के अलावा मानवता का धर्म निभाते हुए उस घायल का इलाज करवाना चाहते हैं।

वीडियो को देखने के बाद आसानी से समझा जा सकता है कि बस्तर में युद्ध की परिस्थिति ने किस हद तक ग्रामीणों के दिल दिमाग में जवानों के प्रति ज़हर भर डाला है। यही वजह है कि माओवादियों के आधार इलाके के आदिवासी जवानों को अपना दुश्मन मानते हैं। नक्सलवाद के खात्मे के लिए बेहद ज़रूरी है कि, सरकार और पुलिस पहले ग्रामीणों का विश्वास जीते।
खैर, जब ये घायल युवक स्वस्थ होकर वापस अपने घर लौटेगा तो न केवल घायल युवक के परिजनों का बल्कि पूरे गांव का विश्वास सुरक्षा बल के जवानों पर बढ़ जाएगा।
ऐसे सभी जवान जो माओवादी इलाके के ग्रामीणों को मजबूरी को समझते हैं और मानते हैं कि उनके इलाके में होने भर से वे माओवादी नही हो जाते , उन्हें हमारा सलाम !
साथ ही शासन से अपील कि ईनाम व पदोन्नति केवल ईनामी के लिए नही बल्कि इस तरह की मानवता के लिए भी हो ।

मुकेश चंद्राकर

One thought on “अघोषित युद्ध के बीच फंसे जवानों और आदिवासियों के बीच के फासले कुछ ऐसे होंगे दूर

  • June 2, 2019 at 1:22 pm
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    Mukesh ji, nice article. Kudos to you for bringing truth, bitter truth. I want you contact no. If you don’t have any problem, pls forward me your contact no.
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