देश का पहला राज्य केरल जहां सभी सरकारी स्कूल हाईटैक, अब विश्वस्तरीय बनाने की तैयारी

कृष्णकांत

केरल ने अपने स्कूलों का कायापलट कर दिया. स्कूलों में बच्चों की कमी थी. बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जा रहे थे. सरकार ने 45 हजार स्मार्ट क्लास बना दी और एडमिशन की होड़ लग गई.

केरल देश का पहला राज्य है जहां सारे सरकारी स्कूल हाई-टेक हैं. अब इन स्कूलों को विश्वस्तरीय बनाने की तैयारी की जा रही है. मैं केरल कभी नहीं गया हूं, लेकिन दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट से यह सूचना मिली है.

खबर में कहा गया है कि राज्य के सारे सरकारी स्कूलों को हाई-टेक बनाने वाला केरल देश का पहला राज्य बन गया है. यहां कक्षा 8वीं से 12वीं तक के 45 हजार क्लासरूम मेंं प्रोजेक्टर, स्क्रीन, लैपटॉप और इंटरनेट जैसी सुविधाएं हैं. 2018-19 में पिछले सत्र की तुलना में 40 हजार ज्यादा एडमिशन हुए हैं. जबकि 2016 तक 5 हजार स्कूल छात्रों की कमी से जूझ रहे थे. कुछ स्कूल बंद होने की कगार पर थे, लेकिन अब एडमिशन के लिए लंबी लाइनें लग रही हैं. अब सरकार ने इस साल 141 स्कूलों को विश्वस्तरीय बनाने का लक्ष्य रखा है.

केरल के प्राथमिक स्कूलों को भी हाईटेक बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इसके तहत 9941 प्राथमिक स्कूलों में 23170 मल्टीमीडिया प्रोजेक्टर, 55086 लैपटॉप और यूएसबी स्पीकर लगाए जाने हैं. स्कूलों को विकसित करने की जिम्मेदारी केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (केआईटीई) के पास है जो एक सरकारी एजेंसी है.

इन सुधारों का असर रिजल्ट पर भी दिख रहा है. इस साल राज्य के 12,971 सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले सभी 100% बच्चे कक्षा 10 में पास हो गए. इनमें 7,216 सहायता प्राप्त स्कूल और 1060 गैर-सहायता प्राप्त स्कूल हैं.

केरल कुल बजट का 16.5% शिक्षा पर खर्च करता है.

पूरे भारत में स्कूलों की दुर्दशा से हम सब परिचित हैं. उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों में बच्चे नहीं आते, नतीजतन उन्हें बंद कर दिया जाता है या दूसरे स्कूलों के साथ मर्ज कर दिया जाता है. हालांकि, यूपी में भी प्रयास चल रहे हैं, लेकिन फिलहाल नाकाफी हैं.

दिल्ली का हाल केरल जैसा तो नहीं है, लेकिन दिल्ली में सरकार ने स्कूलों की दशा सुधारने के लिए बजट बढ़ाया है. दिल्ली के स्कूलों की हालत बाकी राज्यों से अच्छी है. यहां भी लोग अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूल में करवाने के लिए जीतोड़ प्रयास करते हैं. हो सकता है कि सरकार के प्रयास ईमानदार हों और कुछ साल में दिल्ली स्कूली शिक्षा के मामले में मॉडल बन जाए.

केरल के अलावा त्रिपुरा ऐसा राज्य है जिसका लिटरेसी रेट 100 फीसदी के करीब पहुंच चुका है.

यह पोस्ट इसलिए लिख रहा हूं कि आप सब यह जानें कि आपका सांसद ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाकर दूसरों को चिढ़ाएगा, सरकार हिंदू मुसलमान का खेल खेलेगी, इससे वे हमको, आपको और हमारे आपके राम रहीम को बदनाम करेंगे. लेकिन इससे हमारे बच्चों की बर्बादी नहीं रुकेगी. वे अशिक्षित घूमेंगे. वे भूख से, कुपोषण से मरेंगे. हम दुनिया के सबसे खराब जीवन स्तर वाले देशों में शुमार रहेंगे. नेता नारा लगाएगा कि वह हमें विश्वगुरु बनाएगा, लेकिन हम विश्व स्तरीय गोरू यानी पशुवत ही रह जाएंगे.

कहा ही गया है कि ‘साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः’ यानी बिना शिक्षा के हम सब बिना सींग, पूंछ वाले पशु हैं. यकीन मानिए कि सरकारों को बिना सींग-पूंछ वाले बुद्धिहीन बहुत भाते हैं. अगर केरल और त्रिपुरा 100 प्रतिशत साक्षरता के करीब हैं तो बाकी राज्य क्यों नहीं हैं? क्योंकि नेताओं ने जनता को अनपढ़ रखना चाहा है. स्कूलों की दुर्दशा इसका सबूत है. इसलिए सरकार पर दबाव डालिए कि वह आप सबके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन का उत्तम और समान इंतजाम करे.

(केरल की मुख्य सूचना और फोटो दैनिक भास्कर से ली है.)

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