आदिवासी चिंताओं पर फ़िर काम आए बी.के. मनीष
सुप्रीम कोर्ट ने उनके प्रयासों पर 16 दिसंबर को छग आरक्षण विवाद प्रकरण मेंअर्जेंट हियरिंग तय की|

छग शासन और राज्यपाल के बीच आरक्षण संशोधन विधेयकों का सवाल फ़ंस जाने से आदिवासी समाज में भारी बेचैनी थी| ऐसे में संवैधानिक जानकार बी.के. मनीष ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान जनजाति-हित में अंतरिम व्यवस्था पर टिप्पणी/स्पष्टीकरण की जरुरत की ओर दिलाया| न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने मामले की नजाकत को देखते हुए अंतरिम राहत के प्रश्न पर 16 दिसंबर को छग आरक्षण विवाद प्रकरण मेंअर्जेंट हियरिंग तय की है|

बी.के. मनीष ने योगेश ठाकुर, प्रकाश ठाकुर और विद्या सिदार की एसएलपी पर गुरु घासीदास अकादमी और छग शासन के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट से अक्टूबर में नोटिस कराया था| तब अंतरिम राहत इसलिए नहीं मिल सकी थी कि हाई कोर्ट के पक्षकार, विशेषत: छग शासन, सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंचे थे| इस नोटिस का जवाब देने के बजाए छग शासन ने अपनी एसएलपी दायर की और अंतरिम राहत के प्रश्न पर 18 नवंबर को नोटिस जारी कराया था| छग शासन की एसएलपी में सिर्फ़ गुरु घासीदास अकादमी को पक्षकार बनाया गया है जिसके अध्यक्ष अब शासन द्वारा कैबिनेट मंत्री का दर्जा पा चुके हैं| यह सुनवाई 1 दिसंबर को जूडीशियल ऑर्डर द्वारा तय की गई थी लेकिन नोटबंदी प्रकरण में संविधान पीठ बैठने के कारण टल गई| छग शासन ने स्पष्ट तौर पर सुप्रीम कोर्ट से सारी एसएलपी के निपटारे तक 12-32-14 आरक्षण रोस्टर जारी रखने की अंतरिम राहत का मौखिक निवेदन किया था| लेकिन दो दिसंबर को विधान सभा द्वारा 13-32-27 फ़ार्मूले के आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किए जा चुके हैं| 29 नवंबर को शासन ने सुप्रीम कोर्ट में पीएससी के पत्र समेत हलफ़नामा दिया कि हाई कोर्ट के 19 सितंबर के फ़ैसले से भर्तियां रुक गई हैं| लेकिन आरक्षण संशोधन विधेयक के उद्देश्यों के कथन में मुख्यमंत्री ने कहा है कि हाई कोर्ट के 19 सितंबर के फ़ैसले से पिछली स्थिति (15-18-14 और 16-20-14)आ गई है| इसी दरम्यान शासन 16-20-14 के रोस्टर से मेडीकल कोर्सेस में भर्ती भी कर चुका है जिससे जनजाति वर्ग को 110 से अधिक एमबीबीएस सीटों का नुकसान हुआ| इस सब पर अब शासन को सफ़ाई देनी पड़ेगी|

शीत अवकाश के ठीक पहले बी. के. मनीष के प्रयासों से सुनवाई तय हुई है| जनजाति हित में पहले भी बी. के. मनीष सुझाव दे चुके हैं कि 1996 के तीन जज पीठ के चत्तर सिंह बनाम राजस्थान फ़ैसले की नजीर से एससी-एसटी का 12-32आरक्षण बचा लिया जाए| लेकिन महाधिवक्ता और मुख्य सचिव ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था| शासन अंतरिम तौर पर भी 12-32-06 रोस्टर के लिए तैयार नहीं है| जनजाति-हित-विरोधियों और नादान लोगों ने यह अफ़वाह उड़ाई है कि हाई कोर्ट के 19 सितंबर के फ़ैसले से जनजाति आरक्षण की कटौती हुई है| जबकि विधिक तथ्य यह है कि उस फ़ैसले से छग में एससी-एसटी-ओबीसी का आरक्षण पूरी तरह शून्य हो गया है| एससी और सामान्य प्रवर्ग के कुछ अभ्यर्थियों ने पीएससी को 15-18-14 के रोस्टर से एसएलपी के अंतिम निपटारे तक भर्तियां करने का आग्रह तक कर दिया है| भारत में आज तक कहीं और किसी भी प्रवर्ग को उसके जनसंख्या अनुपात से अधिक का आरक्षण नहीं दिया गया है| छग राज्य गठन के बाद एससी को गलती से 16% आरक्षण बारह साल मिला| एससी को 16% आरक्षण देने की मांग कर के मुसीबत पैदा करने वाले व्यक्ति को कांग्रेस ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया है जबकि भाजपा-जोगी कांग्रेस भी इसी अनर्गल मांग को दुहरा रहे हैं| आदिवासी समाज के ज्यादातर संगठन कांग्रेस सरकार के साथ हैं जबकि एक बड़ा गुट फ़िलहाल आरक्षण के विवाद के सहारे चुनाव में तीसरा मोर्चा खड़ा करने में जुटा है| अ.ज.जा. शासकीय सेवक विकास संघ, सर्व आदिवासी समाज-भारत सिंह गुट और ओरांव प्रगतिशील समाज ने सुप्रीम कोर्ट की अपनी एसएलपी में 58% आरक्षण का समर्थन किया है इसलिए अब वह जनजाति हित में 12-32 की अंतरिम राहत नहीं मांग सकते| प्रकाश ठाकुर ने अपनी एसएलपी से विधिक सलाहकार बी.के. मनीष को अलग कर दिया है| ऐसे में स्पष्ट नहीं है कि आदिवासियों की मांग सुप्रीम कोर्ट में कौन रखेगा!

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