आदिवासी-हित में अंतरिम राहत को रोकने के लिए छग शासन ने खर्चे करोड़ रुपए

आदिवासी समाज के असहयोग से फ़िर हारे बी. के. मनीष

रायपुर । सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को भूपेश सरकार के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अंतरिम राहत पर बहस को टलवा दिया| न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने सिंघवी को बताया कि ख़ास अंतरिम राहत के प्रश्न के लिए मेंशनिंग कर के आज की तारीख मांगी गई थी| क्या आप बहस करने के लिए तैयार नहीं हैं पूछे जाने पर सिंघवी ने बात को वरिष्ठता का सहारा लेकर घुमा लिया| निजी आदिवासी पक्षकार के लिए एक एडवोकेट ने छत्तीसगढ में आरक्षण के संवैधानिक संकट पर ध्यान दिलाया लेकिन न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि इस मुद्दे पर राज्य शासन को सुना जाना जरूरी है| अगली सुनवाई 16 जनवरी को तय की गई है|

आदिवासी संगठनों ने तकरीबन तीन करोड़ रुपए चंदे के बावजूद मजबूत अधिवक्ता या लीगल रिसर्च पर ध्यान नहीं दिया है| छग सर्व आदिवासी समाज- भारत सिंह गुट, जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ और ओरांव प्रहतिशील समाज ने पिछले 58% आरक्षण प्रावधान का सुप्रीम कोर्ट की एसएलपी में समर्थन कर रखा है| इसलिए अब वह छग शासन द्वारा 76% आरक्षण प्रावधान पर जोर दिए जाने पर 50% की सीमा के भीतर जनजाति हित में 12-32 की अंतरिम राहत की मांग नहीं कर सकते| अपनी गलती सुधारने की भी कोई कोशिश आदिवासी संगठनों द्वारा नहीं की जा रही है| प्रकाश ठाकुर ने अनुसूचित क्षेत्रों के विशेष आरक्षण के नंदकुमार गुप्ता प्रकरण पर गुरु घासीदास अकादमी प्रकरण के साथ एसएलपी दायर करने का सुझाव ठुकरा दिया| अन्य अधिवक्ता के द्वारा नंदकुमार गुप्ता प्रकरण में एसएलपी दायर की गई जिस पर बिना नोटिस जारी किए सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी के तीसरे हफ़्ते तक के लिए मामला टाल दिया| इससे आदिवासी हितों के तर्क को भारी धक्का पहुंचा है| विद्या सिदार और योगेश ठाकुर आर्थिक अभाव में शुक्रवार 16 दिसंबर की सुनवाई के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता तय नहीं कर सके| बी.के. मनीष द्वारा जनजाति-हित में तत्काल अंतरिम राहत लाने की यह कोशिश आदिवासी संगठनों के लालच और नादानी की वजह से नाकामयाब हो गई|

( वर्षों से आदिवासी हित पर न्यायिक लड़ाई लड़ रहे युवा नेता योगेश सिंह ठाकुर के फेसबुक पोस्ट के आधार पर )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!