गौठान में न दाना न पानी बांध दिए सैकड़ों मवेशी , दो दिन में भूख-प्यास से मस्तूरी जनपद के दो गौठान में मरे 40 गाय

बिना किसी तैयारी के योजना लागू करने का आ रहा दुष्परिणाम

रायपुर । मस्तूरी जनपद के अनेक गौठान का हैं बुरा हाल है । बेजुबान गाय-बैल भूख प्यास से मर रहे हैं ,यहा तक कि इन्हें लावारिश कुत्ते प्रतिदिन अपना शिकार बना रहे हैं । खबर है की सोन लोहरसी और पचपेड़ी पंचायत के गौठान में दो दिन के भीतर 40 मवेशियों ने भूख-प्यास से दम तोड़ दिया है ।

प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले दो दिन के भीतर सोन लोहरसी के गौठान में 22 गायों की मृत्यु हो गयी । ग्रामीणों के अनुसार गौठान गांव से गांव से काफी दूर है जिसकी वजह से पशुओं की देखरेख नहीं हो पा रही थी । गुरुवार की सुबह उन्हें जब पता चला कि काफी संख्या में जानवर खत्म हो चुके हैं तब जाकर उन्हें पता चला । ग्रामीणों ने बताया कि कई जानवरों को कुत्ते नोच चुके थे । गौठान में चारा बिल्कुल भी नहीं था, तब जाकर गांव ग्रामीणों ने गौठान का दरवाजा खोल पशुओं को बाहर निकाल दिया ।

ऐसी ही खौफनाक खबर मस्तूरी जनपद के ही ग्राम पचपेड़ी से आ रही है । यहां भी गौठान में 18 पशुओं के भूख और प्यास से मारे जाने खबर है । पचपेड़ी ग्राम पंचायत के गौठान का हैं बुरा हाल-बेजुबान गौ माता भूख प्यास से मौत,यहा तक लावारिश कुत्ते प्रतिदिन अपना शिकार बना रहे हैं । यहां के ग्रामीणों में खूब आक्रोश है उन्होंने इसके लिए गांव के सरपंच के साथ जनपद अधिकारियों को भी दोषी बताया है ।

गुरुवार की सुबह जैसे ही इस बात की सूचना जनपद मुख्यालय पहुंची तो अधिकारी चुपके से दोनों गांव पहुंच गए और मरे हुए पशुओं की लाशें ठिकाने लगवाने शुरू कर दिए । इतनी सारी मात्रा में एक साथ पशुओं के दफनाने की व्यवस्था नहीं होने के कारण गोवंश की यह लाशें कुत्तों का शिकार बनने लगे । पता चला है किस मामले को दफनाने के लिए दोनों गांवों में दो जेसीबी भेज दिया गया है ।

*बिलापुर कलेक्टर संजय अलंग से जब भूमकाल समाचार ने इस विषय पर सरकार का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने गौठान और गाय सुनते ही फोन काट दिया । वहीं मस्तूरी के विधायक व पूर्व कृष्णमूर्ति बांधी ने भूपेश सरकार की गौठान योजना को पूरी तरह अव्यवहारिक बताते हुए कहा कि चारे की व्यवस्था नही और गायों को बिना देखरेख के बांध दिया गया है । गाय भूख से तड़प तड़प कर मर रहे हैं।*

छत्तीसगढ़ प्रदेश के कांग्रेसी सरकार ने वादे तो कुछ और किए थे पर जैसे ही सत्ता में आए तो सप्लायर, एनजीओ और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने की योजना लागू करनी शुरू कर दी । हालांकि नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजना छत्तीसगढ़ के परिवेश के हिसाब से एक अच्छी योजना साबित हो सकता है । इससे छत्तीसगढ़ के किसानों का आर्थिक स्थिति सुधारा जा सकता था । किंतु बिना किसी तैयारी के इस योजना को लागू कर दिया गया अतः परिणाम अब धीरे-धीरे सामने भी आने लगे हैं । छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में अधिकांश स्थानों में गोचर जमीन तो पहले से ही अवैध कब्जा के शिकार हो चुके हैं । अब इन परिस्थितियों में कहीं-कहीं गौठान के लायक जगह भी है तो वहां गोवंश के लिए चारे और पानी का भी ठीक से इंतजाम नहीं हो पा रहा है । जिन लोगों को जवाबदारी दी गई है उन्हें बस अपने स्वार्थ से मतलब है । अधिकांश स्थानों से शिकायत आ रही है कि गाय भूखे प्यासे मर रहे हैं पर सरकार और प्रशासन स्थिति सुधारने नियंत्रण करने के बजाय अपनी पूरी ताकत इसे छुपाने में लगा रहे हैं ।

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