केंद्र और राज्य द्वारा 20 वर्षों से छत्तीसगढ़ के जंगलों के किये गए विनाश की वजह से इस बार गंभीर सूखे का संकट

केंद्र और कार्पोरेट के आगे नतमस्तक रही रमन सरकार का एकमात्र लक्ष्य रहा छत्तीसगढ़ की बहुमूल्य प्राकर्तिक संपदा की लूट

आलोक शुक्ला

रायपुर । सरगुजा के हसदेव अरण्य स्थित परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के लिए जंगलो का सफाया किया जा रहा हैं। यह वही वन क्षेत्र हैं जिसे पर्यावरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण बताते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 2009 में खनन पर प्रतिवंध लगा दिया गया था । लेकिन शीघ्र ही अदानी कंपनी के मुनाफे के लिए केंद्र की कांग्रेस और राज्य की भाजपा सरकार ने मिलकर इस वन क्षेत्र के विनाश की अनुमति जारी कर दी थी ।

वर्ष 2011-12 में रमन सरकार के वन विभाग ने जंगल की जैव विविधता, हाथी की उपस्थिति को छुपाकर, जंगल के घनत्व को कम दिखाकर फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव के आधार पर वन स्वीकृति मांगी और कांग्रेस सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने आंख बंद करके स्वीकृति जारी कर दी कारण दोनों के केंद्र में अडानी था। हालांकि उस बन स्वीकृति को NGT ने वर्ष 2014 में खारिज कर दिया परंतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खनन जारी हैं और जब तक अंतिम फैसला आएगा वन क्षेत्र ही खत्म हो जाएगा।

खनन और उद्योगों के लिए पिछले 20 वर्षों में जिस पैमाने पर छत्तीसगढ़ के जंगलों के विनाश किया हैं उससे सूखे का संकट पैदा होना ही हैं। 1400 मिलीलीटर वर्षा वाले हमारे राज्य में इस बार गंभीर सूखे का संकट हैं। राज्य सरकार हमेशा केंद्र और कारपोरेट के आगे नतमस्तक रही या यूं कहें कि छत्तीसगढ़ की बहुमूल्य प्राकर्तिक संपदा की लूट का एक मात्र लक्ष्य रमन सरकार का रहा ।

राज्य के जंगल -जमीन – पानी और उस पर निर्भर समुदाय, वन्य जीव और पर्यावरण को बचाने की सोच रमन सरकार की रही ही नही बल्कि इनके विनाश के लिए सवैधानिक नियमो और कानूनों को ताक पर रखकर कार्य किया गया। कहा जाता हैं कि जब छत्तीसगढ़ में हजारों मेगावाट बिजली के पावर प्लांट के लिए Mou हो रहे थे तो सिर्फ प्रति मेगावाट के लिए रेट फिक्स था । उधोगपतियों को छूट थी कि आबादी क्षेत्र से लेकर घने जंगल या दो सिंचित जमीनों में जहाँ लगाना है प्लांट लगा लो। खनन को केंद्र में रखकर विकास की नीति निष्चित ही विनास की और ले जाएगा। छत्तीसगढ़ की सरकार को इस पर पुनर्विचार करना होगा।

यदि हमारे राज्य में 44 प्रतिशत( अब सिर्फ आकंड़ों में हैं) जंगल हैं तो उसे बचाने की भी जिम्मेदारी लेनी होगी पर्यावरण और विकास के बीच एक संतुलन लाना होगा और यदि सिर्फ कारपोरेट मुनाफा चिंता का विषय रहा तो हम सब को उस लूट और मुनाफे की कीमत चुकानी लड़ेगी ।

(आलोक शुक्ला छतीसगढ़ बचाओ मोर्चा के संयोजक हैं और जल जंगल जमीन की लड़ाई से जमीनी तौर पर जुड़े हैं )

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