छात्र छात्राओं के सोशल मीडिया अकाउंट तक अब एम एच आर डी की पहुँच : उपलब्धिओं को बताना या निजता का हनन ?

केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 03 जुलाई 2019 को देश भर उच्च शिक्षा संस्थानों को एक निर्देश जारी किया गया है जिसके अनुसार सभी उच्च शैक्षणिक संस्थाओं से अपेक्षित है कि वे अपने समस्त छात्रों के सोशल मीडिया एकाउंट्स , ट्विटर/ फेसबुक / इंस्टाग्राम को संस्था के और MHRD के ट्विटर /फेसबुक / इंस्टाग्राम के अकाउंट से कनेक्ट करें। देखने में मामूली से लगने वाले इस आदेश को इस व्यापक सन्दर्भ में समझने की जरूरत है.

आप जब अपना फेसबुक अकाउंट देखते हैं , तब आप पाते होंगे कि , यदि आपने किसी वस्तु के बारे में पहले कभी सर्च किया है तो उससे सम्बंधित विज्ञापन बार बार दिखाए जाते हैं। इसी प्रकार , जिस प्रकार के समाचारों , व्यक्तिओं , आदि को आपने लाइक किया है , उसके समान सूचनाएँ , समाचार भी आपको बार बार दिखाए जाते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हम जो भी कुछ शेयर करते हैं उसके आधार पर न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन के बारे में जैसे हमारे मित्र , पारिवारिक सदस्य , हम कहाँ घूमने गए और वस्तुओं , व्यक्तिओं , विचारों के बारे में हमारी प्राथमिकताएं जानी जा सकती हैं बल्कि हमें ऐसे विज्ञापन , सूचनाएँ , समाचार पहुंचाए जा सकते हैं जिनसे अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सोच प्रभावित हो सके। आपने कुछ महीने पहले यह भी पढ़ा होगा कि किस प्रकार केम्ब्रिज एनालिटिका नामकी कंपनी ने फेसबुक से लाखों लोगों के व्यक्तिगत डाटा चोरी किये थे और भारत में भी यह आरोप लगाए गए थे कि उस डाटा को राजनितिक दलों को दिया गया.

दरअसल , व्यक्तिओं से सम्बंधित सामान्य सा नज़र आने वाला डाटा- हम क्या पहनते हैं , क्या कहते हैं , किसको पसंद करते हैं , किसको नापसंद करते हैं , यह आज की दुनिया का सबसे शक्तिशाली हथियार हो गया है। उसी प्रकार जैसे किसी समय , भूमि , पूँजी , थे या शीतयुद्ध के समय परमाणु बम थे , या सूचना क्रांति के समय मॉडेम की स्पीड थी. आज डाटा सबसे बड़ा हथियार है। जिसके पास मनुष्यों से सम्बंधित जितना ज्यादा डाटा रहेगा , आर्टिफिशल इंटेलीजेंस जैसी टेक्नोलॉजी को का उपयोग करके उसके पास , मानव प्रजाति के व्यवहार और सोच को नियंत्रित करने का उतना बड़ा हथियार रहेगा।

भारत सरकार और अमेरिका के बीच विवाद का एक बहुत बड़ा कारन , डाटा का स्वामित्व भी है। अमेज़न , फेसबुक जैसी कंपनियां , भारत के लोगों के डाटा को भारत के बाहर स्टोर करती हैं , जिसका भारत विरोध कर रहा है। मुकेश अम्बानी ने इसे ‘डाटा उपनिवेशवाद ‘ की संज्ञा देते हुए इसपर जल्दी ही कानून बनाने की बात की है।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि , आपके फेसबुक, ट्विटर आदि में उपलब्ध सूचना , का यदि दुरूपयोग हो और उससे आपको कोई हानि हो , तो फेसबुक या ट्विटर का कोई उत्तरदायित्व हो , इस प्रकार का कोई भी कानून देश में अभी नहीं है।

इस पूरे परिप्रेक्ष्य में आप , केंद्र सरकार द्वारा शैक्षिक संस्थानों को जारी निर्देश को समझ सकते हैं। छात्र , छात्राओं के सोशल मीडिया अकाउंट तक एक्सेस का अर्थ होगा , उनकी व्यक्तिगत सूचनाओं , उनकी पसंद , उनकी नापसंद, सब सूचनाओं तक पहुँच। क्या यह करने के पहले ,यह सुनिश्चित किया जाएगा कि छात्रों से सम्बंधित सूचना का कोई भी उपयोग उनकी सहमति से होगा , या फिर उनसे सम्बंधित सूचना का दुरुपयोग नहीं होगा ? इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी ? छात्रों से सम्बंधित व्यक्तिगत सूचनाओं तक केंद्र सरकार के एक मंत्रालय की पहुँच उनके ऊपर एक डिजिटल निगरानी रखने जैसी नहीं होगी ? क्या यह लगभग तीन करोड़ छात्र -छात्राओं की निजता का हनन नहीं होगा ?

इस परिप्रेक्ष्य मे, इस आदेश के जारी होने के बाद , काफी विरोध के बीच द क्विंट , समाचार पत्र द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में , मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा कहा गया है कि , यह अनिवार्य नहीं होगा और छात्रों की इच्छा पर होगा। किन्तु आदेश में साफ़ लिखा है कि संस्थानों के सोशल मीडिया चैंपियंस से यह अपेक्षित होगा कि वे छात्रों के सभी सोशल मीडिया एकाउंट्स , फेसबुक , ट्विटर , इंस्टाग्राम आदि को एम् एच आर डी के फेसबुक , ट्विटर , इंस्टाग्राम एकाउंट्स से जोड़ें। इसमें कहीं नहीं लिखा है कि यह छात्रों की सहमति से होना चाहिए। और फिर सवाल यह भी है कि जो छात्र इससे असहमति जताते हैं , उन्हें वर्गीकृत कर , भेदभाव नहीं किये जायेंगे , इस बात की क्या गारंटी है ?

डाक्टर अनुपमा सक्सेना , शिक्षाविद , बिलासपुर , छत्तीसगढ़

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